Golden Era With Dev Anand. कैसे ‘अछूत कन्या’ ने बदली Dev साहब की ‘किस्मत’? कैसे मिला Evergreen Star का टैग? पंजाब से बंबई तक, सुहाने सफर की ‘सुनहरी दास्तान’.
Mumbai : फिल्मी दुनिया एक ऐसा गहरा सागर है जिसमें डूब जाने को हर कोई बेताब रहता है… लेकिन ऐसा नहीं है कि फिल्मी दुनिया में काम करने वाला हर अभिनेता शुरू से ही एक्टर बनना चाहता था. कुछ ने परिवार की मर्जी से एक्टिंग को चुना तो कुछ लोगों ने खुद को बदला और आगे चलकर अभिनय को अपना पेशा बनाया. ऐसे ही एक Superstar के बारे में आज हम बात करने वाले हैं जिनका नाम था Dev Anand. बताया जाता है कि वो पहले कुछ और बनना चाहते थे. लेकिन वक्त और हालात ने ऐसी करवट ली कि वो सब कुछ छोड़ कर अभिनेता बन गए.
त्रिदेव के नाम से मशहूर तिकड़ी

एक वक्त ऐसा भी था जब हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में बस तीन ही नाम हुआ करते थे. राज कपूर, दिलीप कुमार और देव आनंद. उस दौर में अभिनेता और भी बहुत थे लेकिन डंका बस इसी तिकड़ी का बजता था. पूरे बॉलीवुड में ये तिकड़ी त्रिदेव के नाम से मशहूर थी. राज कपूर और दिलीप कुमार के बारे में हम आपको अगली स्टोरी में बताएंगे. आज बात करेंगे तिकड़ी के सबसे खास देव साहब की. देव आनंद कहें या एवरग्रीन स्टार, गाइड कहें या ज्वेल थीफ. फिल्मी दुनिया में कदम रखते ही देव आनंद ने अपनी खूबसूरती और अदाकारी का ऐसा जलवा बिखेरा कि हर कोई उनका दीवाना हो गया. देश विदेश में करोड़ों चाहने वाले… एक के बाद एक रिकॉर्डतोड़ फिल्में, लड़कियों में उनका ज़बरदस्त क्रेज़, ये सब किसी सपने के सच होने जैसा था. कुछ किस्से तो ऐसे भी मशहूर हैं कि उन्हे ना पाने के दुख में लड़कियां आपनी ज़िंदगी तक खत्म कर लेती थी. आप हैरान हो रहे होंगे लेकिन उस वक्त वाकई ऐसा होता था… लेकिन हम सुनी सुनाई बातों में ना पड़कर सीधे आपको देव साहब से जुड़े कुछ और दिलचस्प किस्से बताएंगे. और शुरुआत करेंगे उनकी जिंदगी के सबसे खूबसूरत यानि शुरुआती पलों के साथ.
पंजाब से बंबई तक का सफर
देव आनंद का जन्म 26 सितंबर 1923 को पंजाब के शंकरगढ़ तहसील के गांव में एक हिंदू परिवार में हुआ था. उनका पूरा नाम धरमदेव पिशोरीमल आनंद था. लेकिन जब वो फिल्मों में आए तो लोग उन्हे देव आनंद के नाम से बुलाने लगे. देव साहब ने अपनी स्कूलिंग पंजाब के ही Sacred Heart School से की थी. दसवीं पास करने के बाद उन्होने धर्मशाला के एक सरकारी कॉलेज से पढ़ाई की और उसके बाद उन्होने लाहौर जाकर इंग्लिश लिट्रेचर में बीए किया. बीए पास करने बाद वो अपना घर छोड़ कर बंबई नौकरी करने आ गए. वहां उन्होने चर्चगेट में मिलिट्री सेंसर ऑफिस में नौकरी करना शुरू किया. इसके बाद उन्होने एक अकाउंटिंग फर्म में एक क्लर्क के रूप में काम किया.
‘अछूत कन्या’ ने बदली ‘किस्मत’

ज़िंदगी ठीक ठाक चल रही थी कि तभी 1946 में देव साहब की जिंदगी ने ऐसा टर्न लिया कि हमेशा के लिए उनकी किस्मत बदल गई… 23 साल के धरमदेव पिशोरीमल आनंद ने थिएटर में ‘किस्मत’ और ‘अछूत कन्या’ जैसी दो फिल्में देखीं… वो दादा मुनि यानि अशोक कुमार को एक्टिंग करते देख इतने प्रभावित हुए कि उनके अंदर भी फिल्मों में काम करने की इच्छा जागी. वो किस्मत के इतने धनी थे कि उनको इसके लिए ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ा. इसकी वजह थी उनका परिवार. देव साहब ऐसे समृद्ध परिवार से आते थे जिनकी लगभग हर जगह जान पहचान थी. दिखने में स्मार्ट और हैंडसम तो वो थे ही. उस वक्त के फिल्मी हीरो भी उनकी चमक के आगे फीके पड़ जाते थे… बस इन्ही सब बातों ने बड़े आराम से फिल्मी दुनिया में उनकी एंट्री करवा दी.
‘हम एक हैं’ से फिल्मों में Entry

देव साहब की ज़बरदस्त लुक्स और कॉन्फिडेंस देख कर प्रभात फिल्म एंड प्रोडक्शन कंपनी ने उन्हे सबसे पहला ब्रेक दिया. इसके अलावा गुरू दत्त साहब के साथ भी उनके संबंध काफी अच्छे थे. लिहाज़ा साल 1946 में ही वो पहली बार लीड एक्टर के तौर पर ‘हम एक हैं’ फिल्म में नज़र आए. फिल्म में उन्होने उस वक्त की मशहूर एक्टर दुर्गा खोटे के साथ काम किया. उस फिल्म में कई सारे लोगों ने अपना डेब्यू किया था. लेकिन देव आनंद के काम की सबने सराहना की. इसके बाद देव 1947 में फिल्म ‘मोहन’ में दिखाई दिए जो एक एवरेज फिल्म साबित हुई लेकिन देव साहब को फिर भी काफी लाइमलाइट मिली. उसी साल उनकी तीसरी फिल्म ‘आगे बढ़ो’ रिलीज़ हुई. और फिर अगले साल चौथी फिल्म ‘विद्या’ से वो सिनेमा जगत का चमकता सितारा बन गए. इसी फिल्म में देव साहब अपने सपनों की रानी सुरैय्या से पहली बार मिले और पसंद करने लगे… लेकिन सुरैय्या तब बड़ी स्टार थीं और देव साहब अभी इंडस्ट्री में नए ही थे. लेकिन किस्मत ने उनका साथ दिया और एक हादसे ने दोनों को करीब ला दिया. फिल्म के एक गाने ‘किनारे-किनारे चले जाएंगे’ की शूटिंग के दौरान उनकी नाव पलट गई थी. उस दिन अभिनेत्री सुरैय्या के साथ बड़ा हादसा हो सकता था. लेकिन देव आनंद ने अपनी जान पर खेल कर उन्हे पानी में डूबने से बचा लिया. इस हादसे से बाद सुरैय्या भी देव साहब को पसंद करने लगीं. फिर तो ये जोड़ी ऐसी छाई कि एक के बाद एक करीब 6 फिल्मों ने दोनों ने एक साथ काम किया उस वक्त की सुपरहिट जोड़ी कहलाई.
एवरग्रीन स्टार का टैग और विवाद

अगले साल आई फिल्म ‘ज़िद्दी’ ने देव आनंद को हिंदी सिनेमा के बड़े सितारों में शुमार कर दिया था. इस फिल्म में उनके साथ मशहूर अदाकारा कामिनी कौशल की जोड़ी को भी दर्शकों ने खूब पसंद किया. यहां से शुरू हुआ उनकी कामयाबी का सफर जो 6 दशक तक चलता रहा. बैक टू बैक उनकी कई फिल्में जैसे जीत, निराला, मधुबाला, अफसर, सज़ा, सनम, बाज़ी, टैक्सी ड्राइवर, पॉकेट मार, CID, पेइंग गेस्ट, शराबी, प्रेम पुजारी और जॉनी मेरा नाम, ने उनके नाम के आगे Evergreen Star का टैग लगा दिया. साल 1958 में आई फिल्म ‘काला पानी’ ने Box Office पर सफलता के कई झंडे गाड़े. इसी फिल्म के चलते देव साहब कई विवादों में भी घिरे. बॉलीवुड सोर्सेज़ की मानें तो ‘काला पानी’ के बाद वो उस ज़माने की लड़कियों के सबसे फेवरेट स्टार बन गए थे. उस फिल्म में काले कोट पैंट में देव साहब ने लड़कियों को अपनी तरफ ऐसा आकर्षक किया कि वो उनके लिए पागल हो गईं. लड़कियां हर हाल में उन्हे पाना चाहती थीं… लेकिन एक अकेले देव साहब कितनों को मिल सकते थे. वो तब तक शादी भी कर चुके थे. लिहाज़ा उनको ना पाने के गम में कई लड़कियों ने अपनी जान तक दे दी थी. ये मामला इतना उछला कि सुप्रीम कोर्ट को देव साहब के काले कपड़े पहनने पर रोक लगा दी.
एक्टर से बने डायरेक्टर और प्रोड्यूसर

‘काला पानी’ के बाद आई देव साहब की फिल्म मुनीम जी, लव मैरिज, काला बाज़ार, हम दोनों और गाइड में शानदार अभिनय करते हुए उन्होने बेस्ट एक्टर का फिल्मफेयर अवॉर्ड् अपने नाम किया. फिल्मों में अभिनय करने के अलावा देव आनंद ने कई फिल्मों को प्रोड्यूस और डायरेक्ट भी किया था. जिन्होने अच्छा बिज़नेस किया. बतौर निर्माता निर्देशक उनकी आखिरी फिल्म चार्जशीट थी जो कि साल 2011 में आई थी. देव साहब ने अपने 6 दशक के लंबे करियर में करीब 100 से ज्यादा फिल्मों में काम किया जो किसी बड़ी अचीवमेंट से कम नहीं है.
प्यार सुरैय्या से, शादी कल्पना से

देव साहब की पत्नी का नाम कल्पना कार्तिक था जिनसे उन्होने साल 1954 में शादी की थी. कल्पना कार्तिक भी उस समय की मशहूर एक्ट्रेस हुआ करती थीं. दोनों की जोड़ी ने एक साथ कई फिल्मों में काम किया, एक दूसरे से प्यार किया, प्यार का इज़हार किया और फिर शादी कर ली. इस तरह से देव आनंद तो अपनी जिंदगी में आगे बढ़ गए लेकिन एक ज़माने में उनका पहला प्यार रहीं सुरैय्या ताउम्र उनका इंतज़ार करती रहीं. देव और सुरैय्या एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे. शादी करना चाहते थे, लेकिन सुरैय्या की दादी उनकी शादी के खिलाफ थीं. इस वजह से ही ये प्रेमी जोड़ा बिछड़ गया और कभी एक न हो पाया. देव साहब की जिंदगी में कल्पना कार्तिक आईं और दोनों ने घर बसा लिया. लेकिन सुरैय्या वहीं ठहरी रहीं. उन्होने कभी शादी नहीं की… इस तरह के तमाम किस्से आपको बॉलीवुड गलियारे में मिल जाएंगे.
पर्सनल लाइफ और परिवार

खैर… हम आगे बढ़ते हैं और आपको बताते हैं कि कल्पना कार्तिक से शादी के बाद देव साहब की दो संतानें हुईं. उनके बेटे सुनील आनंद ने भी हिंदी सिनेमा को अपने करियर के तौर पर चुना और कई फिल्में में काम किया. लेकिन वो अपने पिता की तरह एक सफल एक्टर नहीं बन पाए. सुनील अपनी घरेलू फिल्म प्रोडक्शन कंपनी नवकेतन से जुड़े रहे और फिल्में बनाते रहे. देव साहब की दूसरी संतान हैं देवीना आनंद. जिनका फिल्मी दुनिया से कोई नाता नहीं रहा. देव आनंद के दो भाई और एक बहन भी थीं जिनके नाम चेतन आनंद, विजय आनंद और शीला आनंद था. बड़े भाई चेतन आनंद भी फिल्म लाइन से ही थे जिन्होने कई बड़ी फिल्मों का निर्देशन किया था. इनके दूसरे भाई विजय आनंद भी फिल्म मेकर और प्रोड्यूसर थे. देव की छोटी बहन का नाम शीला कांता कपूर है. वो एक जर्नलिस्ट थीं और उनके पति कुलभूषण कपूर एक डॉक्टर थे. देव साहब की बहन के चार बच्चे हुए जिनमें एक शेखर कपूर बड़े फिल्म निर्माता हैं जिन्होने ‘मिस्टर इंडिया’ और ‘बैंडिड क्वीन’ जैसी कई सफल फिल्में बनाईं.
रास नहीं आई राजनीति

इमरजेंसी के बाद देव आनंद ने राजनीति में भी कदम रखा… साल 1977 में उन्होंने एक नेशनल पार्टी ऑफ़ इंडिया नाम से एक पॉलीटिकल पार्टी बनाई जो तत्कालीन प्रधानमंत्री Indira Gandhi के खिलाफ थी. उनकी पार्टी को विपक्षी पार्टी जनता दल का समर्थन भी मिला. लेकिन देव साहब को राजनीति ज्यादा रास नहीं आई और जल्द ही उनका मोह भंग हो गया. लेकिन हिंदी सिनेमा को नया आयाम देने वाले एवरग्रीन स्टार देव आनंद को पद्मभूषण और दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड समेत कई बड़े पुरुस्कारों से सम्मानित किया गया. वो एक ऐसे लीजेंड्री एक्टर थे जो ना सिर्फ जीते जी बल्कि दुनिया से रुख़सती के बाद भी नए कलाकारों के लिए किसी एक्टिंग स्कूल से कम नहीं हैं. साल 2011 में दिल का दौरा पड़ने से 88 साल की उम्र में उन्होने दुनिया को अलविदा कह दिया था. लेकिन वो जब तक जिए, ज़िंदादिली से जिए… अपनी आखिरी सांस तक मुस्कुराते रहे और अपने चाहने वालों को इंस्पायर करते रहे. देव साहब भले ही आज हम सब के बीच में नहीं हैं, लेकिन उनकी शानदार अदाकारी और उनकी फिल्में हमेशा हमारे बीच में उनकी यादों को संजो कर रखेंगी. अगर आप भी देव साहब के फैन हैं और उनके सफरनामे पर हमारी ये स्टोरी अच्छी लगी हो कमेंट करके ज़रूर बताएं.
