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हाईवे बना हाय-वे – Firozabad Underpass Protest ने खोल दी विकास की पोल
जहां सरकार पुल बनाने का दावा करती है, वहां Firozabad Underpass Protest ने बता दिया कि ये पुल नहीं, जनता की नब्ज काटने का काम करते हैं।
गांव मोहम्मदाबाद के लोग सड़क पार करते हैं, जैसे गंगा पार कर रहे हों — हर बार डरते हैं कि इस बार बचेंगे या नहीं।
ग्रामीण उतरे सड़क पर, क्योंकि शासन बैठा फ़ाइल पर – Firozabad Underpass Protest की वजह
एनएचएआई साहबान ने पहले मोहम्मदाबाद में अंडरपास की स्वीकृति दी, फिर ‘कट’ मारकर कह दिया कि अंडरपास नगला महादेव पर बनेगा।
अब गांववालों ने भी कह दिया — “तू कागज चला, हम लट्ठ चलाएंगे।” और धरने पर बैठ गए।
अंडरपास नहीं, जले हुए सीने का ‘एग्जिट पॉइंट’ चाहिए – Firozabad Underpass Protest का दर्द
ग्रामीणों का कहना है — “हमारे खेत, दुकानें, स्कूल सब सड़क के पार हैं। हर दिन सड़क पार करते हुए लगता है कि जान बचा ले जाना भी ‘सपना’ हो गया है।”
अंडरपास को लेकर प्रोटेस्ट (Firozabad Underpass Protest) सिर्फ एक निर्माण की मांग नहीं है, ये उस दर्द की आवाज़ है जो हर हॉर्न के साथ धड़कता है।
भाकियू की राजनीति या वाकई समस्या? – Firozabad Underpass Protest में सस्पेंस
भारतीय किसान यूनियन भानु गुट की मांग है कि अंडरपास नगला महादेव कट पर बने। अब जनता पूछ रही है – “हमें सुरक्षा चाहिए या संगठन की सुविधा?”
किसी को वोट चाहिए, किसी को नोट चाहिए, लेकिन गांव वालों को सिर्फ एक छोटा सा रास्ता चाहिए — वो भी अफसरों को नागवार है।
धरने की धमकी से आई सिस्टम की घबराहट – Firozabad Underpass Protest का असर
जब भाकियू ने धरने की चेतावनी दी, तब अफसरों को ‘फीलिंग’ आई कि कहीं ये मामला 4G नेटवर्क की तरह तेज़ न फैल जाए।
तुरंत पांच सदस्यीय कमेटी बना दी गई — जिसे सरकारी भाषा में “मामला ठंडा करने की आइसक्रीम टीम” कहा जाता है।
गांववालों का अजीब गणित, स्कूल + खेत + दुकान = अंडरपास चाहिए!
गांववालों का तर्क बड़ा सिंपल है — “जब ज़िंदगी के तीनों ज़रूरी ठिकाने रोड के दूसरी ओर हैं, तो सरकार हमारी लाशें गिनकर अंडरपास बनाएगी क्या?”
Firozabad Underpass Protest का ये सीधा सवाल अफसरों के टेढ़े जवाबों पर भारी पड़ गया।
इंस्पेक्टर साहब आए, समझाया और फिर “घर भेजा” – Firozabad Underpass Protest का क्लाइमैक्स
जैसे ही पुलिस मौके पर पहुंची, इंस्पेक्टर अंजीश कुमार ने वही पुराना नुस्खा अपनाया — “समझाइश की गोली और घर बैठो की गोली।”
गांववाले थोड़ा नरम पड़े, लेकिन चेतावनी दे दी — “इस बार अंडरपास नहीं बना, तो अगली बार सड़क नहीं खाली।”
कमेटी जांचेगी, रिपोर्ट बनेगी, फ़ाइल घूमेगी – लेकिन अंडरपास…?
एनएचएआई के प्रोजेक्ट मैनेजर बोले — “हमने जांच के लिए टीम गठित की है।”
मतलब अब टीम जांच करेगी कि गांव वाकई दो हिस्सों में बंटा है या यह जनता की “भावनात्मक अफवाह” है।
जब तक टीम लौटेगी, ग्रामीणों का धैर्य एक्सपायरी डेट पार कर जाएगा।
विकास की चेकबुक में गांवों का खाता बंद है – Firozabad Underpass Protest इसका ताजा सबूत
सरकारें स्मार्ट सिटी, बुलेट ट्रेन, और डिजिटल इंडिया के लिए रात-दिन बजट पास करती हैं।
लेकिन जब गांव में अंडरपास चाहिए होता है, तब योजनाएं भी “Under Process” हो जाती हैं।
Firozabad Underpass Protest बताता है कि ‘विकास’ की गाड़ी एक्सप्रेसवे पर दौड़ती है, गांव की गली में नहीं।
कट से कट गया भरोसा – Firozabad Underpass Protest बन गया भरोसे का बैरियर
सरकार ने अंडरपास स्वीकृत कर कट मारा, अब जनता ने भी कह दिया — “अब हमारी बारी है।”
अब देखना है कि यह आंदोलन सड़क बनवाएगा या फिर एक और सरकारी ‘ड्राफ्ट’ की चक्की में पिस जाएगा।

 
         
         
         
         
         
        