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Firozabad Sewer Crisis ने वार्ड 57 में स्मार्ट सिटी के दावों की पोल खोल दी है। बारिश के बाद गटर का गंदा पानी घरों में घुस गया, जिससे लोग बदबू और बीमारियों के बीच जीने को मजबूर हैं। शिकायतों के बावजूद नगर निगम बेखबर है, और जनता आंदोलन की चेतावनी दे रही है।
फिरोजाबाद।संवाददाता-मुकेश कुमार बघेल
20 जून 2025
वार्ड 57 में गटर बना सिस्टम, घरों में घुसा ‘विकास’
Firozabad Sewer Crisis– वार्ड नंबर 57, नगला बरी – जहां सरकारें बदलती रहीं, सभासदों के चेहरे चमकते रहे, लेकिन गटर की वही पुरानी गंध अब लोगों के सांसों में उतर आई है। Sewer Crisis यहां कोई दुर्घटना नहीं, बल्कि सिस्टम की वो स्थायी गंध है, जिसे नगर निगम ने आदत बना दिया है। दो दिन की बारिश और गटर फूट कर सड़क से होते हुए घरों में घुस गया। जी हां, अब जनता के ड्राइंग रूम में विकास नहीं, नालों की नमी तैरती है।
सुहागनगरी में गटर बना ‘शोभा यात्रा’
कभी चूड़ी, कभी कांच, और अब गटर – फिरोजाबाद की पहचान बदल रही है। वार्ड 57 के लोग अब घर के बाहर नहीं, घर के भीतर छाता लेकर चलते हैं। पार्षद शारिक सलीम का चेहरा पोस्टर पर चमकता है, लेकिन वार्ड की सड़कें कीचड़ में लिपटी हैं। बच्चे स्कूल जाने से पहले प्रार्थना नहीं, फिसलने का डर लेकर निकलते हैं। ये है वो स्मार्ट सिटी, जहां तकनीक नहीं, तटबंध टूटा गटर शासन चला रहा है।
Firozabad Sewer Crisis: नगर निगम के कानों में रबर डाले अफसर
रियाजुद्दीन की आवाज़ गटर की गंध में दब गई है। महीनों से शिकायतें हो रही हैं, लेकिन नगर निगम के अफसर इतने व्यस्त हैं कि उन्हें शायद Sewer Crisis का मतलब भी अब Google से पूछना पड़े। ZSO संदीप भार्गव “टीम भेजेंगे” की रटी रटाई स्क्रिप्ट दोहरा रहे हैं — जैसे नगर निगम का काम सिर्फ ड्रामे का रिहर्सल रह गया हो। सफाई नहीं, सीवर लाइन की आत्मिक मुक्ति चल रही है।
Firozabad Sewer Crisis: नेता फोटोज में, जनता गटर में
विधायक हों या पार्षद, चुनाव के वक्त गली-गली दिखते हैं। अब वही गलियां गटर में डूबी हैं और नेता कैमरे के बाहर ग़ायब। यही विकास का ‘नया मॉडल’ है — वोट डालो, फिर गटर में डूबो। जनता की चीख अब सिर्फ खबरों की हेडलाइन बनती है, कार्रवाई की कोई चुप्पी तोड़ने नहीं आता। और अगर कभी आता भी है तो सिर्फ “मैं टीम भेज रहा हूं” का बहाना बनाकर।
Sewer Crisis: आंदोलन की धमकी नहीं, अब गटर में बगावत चाहिए
मुहल्लेवासी अब चेतावनी नहीं, चप्पलों से लोकतंत्र को जगाने की तैयारी में हैं। अगर यही स्मार्ट सिटी है, तो फिर अंधेरे में रहने वाले गांव कहीं बेहतर हैं। कम से कम वहां गटर शासन नहीं करता। यहां तो हर साल गंदगी की बारिश होती है, अफसरों का भाषण चलता है, और जनता की किस्मत बदबू में गलती रहती है।
जब Sewer Crisis ही विकास बन जाए, तो समझिए सिस्टम सड़ चुका है
वार्ड 57 की ये कहानी सिर्फ एक गली की नहीं, पूरे सिस्टम की पोस्टमार्टम रिपोर्ट है। जहां जनता की चीख पर सिर्फ गूंगे अधिकारी, बहरे नेता और अंधा प्रशासन बैठा है। अगर Sewer Crisis ही आधुनिकता का पैमाना है, तो फिर भारत को ओडोमीटर नहीं, गटरमीटर से नापा जाना चाहिए। काश, वोट मांगने वालों को भी एक बार इस पानी में डुबकी लगानी पड़े — तब समझ आए कि जनता सिर्फ वोट नहीं, बदबू में सांसें गिन रही है।
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