
fighter jet engine
आज के हालात में जब जंग के बादल हर वक्त भारत के ऊपर मंडरा रहे हैं..एक तरफ चीन तो दूसरी तरफ पिद्दी पाकिस्तान भारत के खिलाफ लगातार साजिश रच रहा है। भारत अपनी रक्षा प्रणाली को कैसा मजबूत कर रहा है। ऐसा कौन सा कदम उठा रहा है,जिससे उसकी सैन्य ताकत में इजाफा हो रहा है। खासकर वायु सेना को लेकर भारत की तैयारी कितनी मुकम्मल है। फाइटर जेट बनाने की पंक्ति में हम कहां खड़े हैं। fighter jet engine ks लिए आत्मनिर्भर होने में अभी और कितना वक्त लगेगा?इन सारे सवालों के जवाब आज तलाशते हैं।

दिल्ली: आज की जंग लड़ाकू विमानों और ड्रोन की है। किस देश के पास कितना ताकतवर फाइटर जेट है,उससे ही जंग की दिशा और दशा तय होती है। इस मामले में अमेरिका सबसे आगे हैं, क्योंकि उसके पास दुनिया के बेहतरीन फाइटर जेट और बमवर्षक विमान हैं। यही नहीं ड्रोन प्रणाली में भी अमेरिका दुनिया के दूसरे देशों से बहुत आगे है।दूसरा नंबर रूस का आता है। जिसके पास पांचवीं पीढ़ी तक के लड़ाकू विमान हैं. जिसे वो भारत को भी बेचना चाहता है। लेकिन भारत रूस के इस प्रोजक्ट में रुचि नहीं दिखा रहा है।

तीसरे नंबर पर चीन का स्थान है,चीन छठवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान बनाने में जुटा है। और उसके पास पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट हैं। इसके बाद फ्रांस का नंबर आता है, जिसके पास चौथी पीढ़ी तक के फाइटर जेट हैं।
जेट इंजन पर कुछ देशों की बादशाहत कायम
अमेरिका,रूस,फ्रांस चीन ये सारे देश अपने fighter jet engine खुद बनाते हैं। लिहाजा दुनिया के बेहतरीन फाइटर जेट इनके पास ही हैं। और बाकी देश इनके ऊपर निर्भर हैं। रूस,अमेरिका,फ्रांस की बात तो ठीक है, लेकिन चीन का हमसे इतना आगे निकलना कहीं से भी ठीक नहीं है। क्योंकि चीन हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है।यहां बता दें कि, किसी भी फाइटर जेट की ताकत उसका इंजन होती है। भारत लगातार अपना fighter jet engine बनाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन बहुत ज्यादा खर्चीला होने के कारण हम अभी इस कतार में काफी पीछे हैं। जबकि चीन अपने प्रोजेक्ट पर पानी की तरह पैसा बहा रहा है।

भारत ने अमेरिका से fighter jet engine के लिए करार किया था, जिसे तेजस विमान में लगना था। लेकिन अमेरिका की जिस कंपनी से भारत का करार हुआ है, वो fighter jet engine देने में तय समय से ज्यादा का वक्त लगा रही है। जिससे तेजस विमान तैयार नहीं हो पा रहे हैं।
fighter jet engine बनाना नहीं आसान काम
जैसा कि हम सब जानते हैं कि, भारत हथियारों के मामले में अब आत्मनिर्भर होने की कोशिश कर रहा है। fighter jet engine के लिए भी उसकी यही कोशिश है। चूंकि fighter jet engine बनाना एक जटिल प्रक्रिया है। भारत ने रुस से इसके लिए मदद मांगी थी। लेकिन दोस्त होने के बावजूद उसने हमारी मदद नहीं की। फ्रांस जिसके राफेल को भारतीय वायुसेना ने अपने बेड़े में शामिल किया है,उससे भी भारत की इस संबंध में बात चल रही है। फ्रांस इसके लिए कुछ हद तक तैयार भी है। लेकिन अभी इसमें वक्त है। भारत को अपना स्वदेशी इंजन बनाने में कम से कम 15 साल लगेंगे।

fighter jet engine बनाने में भारत क्यों पीछे है?
यहां सवाल उठता है कि, आखिर भारत fighter jet engine में इतना पीछे क्यों है? क्यों हम आज तक अपना fighter jet engine नहीं बना पाए? किस कारण हम इस पंक्ति में इतने हो गए?ये जानते हुए भी कि, हम चारों तरफ दुश्मनों से घिरे हैं। हमने ऐसी कोशिश क्यों नहीं की।दरअसल fighter jet engine बनाना सबसे कठिन काम माना जाता है। fighter jet engine बनाने वाले इंजीनियरों का दिमाग बहुत तेज होता है, उन्हें इसके लिए कई सालों तक कड़ी मेहनत करनी पड़ती है।

बहुत सारे रिसर्च करने होते है। जिसमे अरबों-खरबों रुपया पानी की तरह बहाया जाता है। तब जाकर कहीं एक इंजन तैयार होता है। जितने भी लड़ाकू विमान होते हैं, वो हमेशा एक्टिव मोड में रहते हैं। लिहाजा इनका इंजन इस तरह डिजाइन करना होता है कि, इनका परफॉर्मेंस तगड़ा हो।
किन-किन पैमानों पर परखा जाता है जेट इंजन?
fighter jet engine बनाते वक्त जिस बात का सबसे ज्यादा ख्याल रखा जाता है वो है हाई टेम्परेचर मटीरियल्स। फाइटर जेट का इंजन इस तरह डिजाइन होना चाहिए कि, वो 1,600 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा का तापमान बर्दाश्त कर सके। एक फाइटर जेट के इंजन को तैयार करने से पहले हजारों टेस्ट किया जाता हैं। फिर उसका अप्रूवल लिया जाता है। जब सारे पैरामीटर पर इंजन खरा उतरता है, तब जाकर इंजन को सर्विस के लिए तैयार माना जाता है।

फाइटर जेट के इंजन में सिरेमिक कोटिंग,सुपरअलॉय और कम्पोजिट्स जैसी टेक्नोलॉजी जरूरी है। इसके साथ ही मिसाइलों से निकलने वाला धुआं भी जेट के इंजन पर खासा असर डालता है। लिहाजा जब जेट इंजन इन सारे पैमानों पर खरा उतरता है, तब जाकर किसी फाइटर जेट इंजन को सर्विस के लिए तैयार माना जाता है।इंजन में जरा सी चूक उसे फेल करा सकती है।
चीन कैसे निकल गया हमसे इतना आगे?
बात अगर हमारे सबसे बड़े दुश्मन चीन के बारे में करे तो ,उसने लड़ाकू विमानों का इंजन बनाने के लिए अरबों रुपया पानी की तरह बहा दिया। सालों मेहनत की। कई बार उसके प्रोजेक्ट फेल हो गए,लेकिन उसने हार नहीं मानी। लगा रहा, दूसरे माध्यमों से भी इंजन बनाने की कोशिश की। टेक्नोलॉजी को चुराया। रूस के AL-31 और अमेरिका के F119 को रिवर्स इंजीनियर करने की कोशिश की। साइबर जासूसी के जरिए दूसरे देशों के फाइटर जेट इंजन बनाने के तरीकों की फाइलों को हैक करके उसका भी इस्तेमाल किया।

तब जाकर चीन अपना fighter jet engine बनाने में सफल हो पाया। इसका नतीजा ये है कि, चीन के पास आज WS-10 इंजन बनाने की क्षमता है। चीन का ये दावा है कि उसने WS-15 इंजन भी बना लिया है, जिसे वो अपने फाइटर जेट J-20 में रूसी इंजन से रिप्लेस करेगा।
भारत क्यों नहीं पूरा कर पा रहा अपना प्रोजेक्ट?
जहां तक भारत की बात है तो भारत ने अपना स्वदेशी इंजन बनाने की शुरुआत 1986 में कर दी थी। लेकिन इस प्रोजेक्ट को धरातल पर उतारने के लिए जितने पैसे और संसाधन की जरूरत थी,सरकार ने उसे मुहैया नहीं कराया। चीन जहां अपना इंजन बनाने के लिए अरबों-खरबों डॉलर खर्च कर रहा था, वही भारत ने इसके मुकाबले केवल 350 से 500 मिलियन डॉलर ही खर्च किया। जो कि ऊंट के मुंह में जीरा के बराबर है।

पहले की सरकारों की न तो इच्छा शक्ति उस तरह की थी, और ना ही राजनीतिक दृढ़ संकल्प। लिहाजा भारत अपने कावेरी इंजन को बनाने में आज तक सफल नहीं हो पाया। आज भी कावेरी इंजन को सफल बनाने के लिए जिस संसाधन और जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूर है. वो मुहैया नहीं करवाया जा सका है। मोदी सरकार इस दिशा में कदम बढ़ा रही है। लेकिन इसमें सबेस बड़ा पेंच है, किसी विदेशी कंपनी से हमारी डील होना। अगर ये डील फाइनल हो गई तो, हम 20230 या 35 तक अपना इंजन बना पाएंगे।
मोदी सरकार की कोशिश रंग लाएगी?
मोदी सरकार अपने इस प्रोजक्ट को पूरा करने के लिए लगातार फ्रांस से बात कर रही है। जिसका नतीजा है कि, फ्रांस की कंपनी Safran के साथ एडवांस मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट बनाने की दिशा में काम चल रहा है। विदेशी कंपनियों में डील के साथ ही भारत को अपनी स्वदेशी कंपनियों को खड़ा करने के लिए भी निवेश की सीमा को बहुत ज्यादा बढ़ाना होगा। उन्हें वो सारे संसाधन मुहैया कराने होंगे, जो किसी फाइटर जेट इंजन के परीक्षण के लिए जरूरी है। तब जाकर कहीं हम अपने मकसद में कामयाब हो पाएंगे।

क्योंकि विदेशी कंपनियों के भरोसे बैठकर हम काम नहीं कर सकते हैं. लिहाजा भारत सरकार को कुछ ऐसा करना होगा, कि जल्द से जल्द हम इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो सकें। चीन को देखते हुए हमारे लिये ये जरूरी भी है
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