कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष उदयभान की छुट्टी, भूपेंद्र हुड्डा को फिर मिली बड़ी जिम्मेदारी
Congress News : पिछले लंबे समय से हरियाणा कांग्रेस में प्रदेशाध्यक्ष को लेकर चल रही खींचतान के साथ ही नेता प्रतिपक्ष को लेकर चल रही बहस को पार्टी हाई कमान ने अब विराम दे दिया है। कांग्रेस हाई कमान की ओर से हरियाणा कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष पद से चौधरी उदयभान की छुट्टी कर दी गई है। उदयभान के स्थान पर पूर्व मंत्री Rao Narender Singh को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है। इसके साथ ही पार्टी की ओर से एक बार फिर से पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी Bhupinder Singh Hooda पर भरोसा जताते हुए उन्हें विधायक दल के नेता घोषित किया गया है। बता दें कि राव नरेंद्र सिंह और भूपेंद्र सिंह हुड्डा 24 अगस्त को बिहार में हुई कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) की मीटिंग में बुलाया गया था। यहीं दोनों के नाम पर मुहर लगी थी।
18 साल बाद गैर दलित प्रदेश अध्यक्ष

कांग्रेस ने 18 साल बाद गैर दलित को प्रदेश अध्यक्ष की कमान दी है। साल 2007 में फूलचंद मुलाना से कांग्रेस का दलित प्रदेश अध्यक्ष युग शुरू हुआ था। मुलाना सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहे थे। उसके बाद अशोक तंवर, कुमारी सैलजा और फिर उदयभान प्रदेश अध्यक्ष बने। ये सभी SC समाज से थे। राव नरेंद्र सिंह और भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नाम पर कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग में सहमति बनी थी।
इसलिए किया राव का चयन

अक्टूबर 2024 के विधानसभा चुनाव में OBC वोटरों का रूझान भाजपा की तरफ रहा था। भाजपा ने OBC नायब सैनी को चुनाव का चेहरा बनाया था। कांग्रेस राव नरेंद्र के जरिए इसी साल बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव को भी साधने की कोशिश में है।
लंबे अंतराल के बाद अहीरवाल को कमान

राव इंद्रजीत के साल 2014 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने के बाद से कांग्रेस लगातार अहीरवाल में चुनाव हार रही है। इस बार भी 12 में से सिर्फ एक सीट पर जीत मिली। यह 53 साल बाद मौका है जब कांग्रेस ने अहीरवाल के किसी नेता को प्रदेश की कमान सौंपी है। इनसे पहले राव निहाल सिंह 1972 से 77 तक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे थे।
विधायक और मंत्री रह चुके हैं राव नरेंद्र
राव नरेंद्र सिंह तीन बार के विधायक रह चुके हैं. साथ ही हरियाणा सरकार में मंत्री पद की जिम्मदारी भी संभाल चुके हैं। उन्होंने 1996, 2000 में अटेली से और 2009 में नारनौल से विधानसभा चुनाव जीता था. वहीं प्रदेश सरकार में स्वास्थ्य मंत्री भी रह चुके हैं।
इसलिए फिर नेता प्रतिपक्ष बने हुड्डा !

विधानसभा चुनाव के दौरान भूपेंद्र सिंह हुड्डा को कांग्रेस पार्टी ने खुली छूट दी थी। इस दौरान कुमारी सैलजा लगातार इसका विरोध करती रहीं। उन्होंने टिकट आवंटन को लेकर भी नाराजगी जताई थी औऱ 14 दिन तक प्रचार से दूर रही थीं। हुड्डा अपने समर्थकों को टिकट दिलाने के लिए भी कामयाब हुए थे, लेकिन हार के बाद उन पर सवाल उठे। अहम बात है कि कांग्रेस हाईकमान को हुड्डा को साइडलाइन करना आसान नहीं है, क्योंकि अधिकांश विधायक उनके समर्थन में थे। दूसरी बड़ी वजह यह रही कि यदि हुड्डा की जगह किसी अन्य विधायक को विधानसभा का नेता प्रतिपक्ष बनाया जाता तो कांग्रेस में फूट हो जाती। इसको लेकर चुनाव के बाद हुई समीक्षा में भी खुलासा हो चुका है। ऑब्जर्वर की रिपोर्ट में भी ये बात सामने आई थी कि पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा को ही नेता प्रतिपक्ष बनाया जाए। पार्टी के सीनियर विधायक बीबी बत्रा, रघुवीर कादियान, गीता भुक्कल भी हुड्डा के पक्ष में ही पैरवी कर रहे थे।
तीसरी बड़ी वजह उनका जाट समुदाय से होना है। यह कांग्रेस का बड़ा वोट बैंक है। विधानसभा चुनाव में समाज का कांग्रेस को पूरा साथ मिला। हाईकमान भी जानता है कि जाट समाज को नाराज कर वह हरियाणा में अच्छा प्रदर्शन कभी नहीं कर पाएगी। राज्य में 50 प्रतिशत के करीब जाट वोट हैं, और इस वोट बैंक में सबसे अधिक वोट प्रतिशत कांग्रेस के ही पक्ष में रहता है।
31 विधायकों ने रखा था हुड्डा का नाम
अक्टूबर में विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस विधायक दल का नेता भी नहीं चुन पाई थी। 18 अक्टूबर 2024 को इसे लेकर चंडीगढ़ में मीटिंग हुई थी। करीब डेढ़ घंटे चली मीटिंग में ऑब्जर्वर के तौर पर राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, राज्यसभा सांसद अजय माकन, पंजाब के नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा के अलावा छत्तीसगढ़ के पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंह देव शामिल हुए थे. मीटिंग में ऑब्जर्वरों ने सभी विधायकों से विधायक दल के नेता का नाम फाइनल करने के लिए वन टू वन बातचीत कर उनकी राय जानी थी। तब 37 में से 31 विधायक हुड्डा को विधायक दल का नेता बनाने के पक्ष में थे।
