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City Hospital Negligence Death का मामला नजीबाबाद में स्वास्थ्य तंत्र की बेरुखी की जीती-जागती मिसाल बनकर सामने आया है। गर्भवती महिला शीतल की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के बाद हॉस्पिटल ने न सिर्फ परिजनों को सूचना दिए बिना शव भेज दिया, बल्कि जिम्मेदार डॉक्टर भी मौके से फरार हो गया
City Hospital Negligence Death: नजीबाबाद का ‘डॉक्टरी ड्रामा’ या ‘सुनियोजित सौदा’?
चार दिन के भीतर नजीबाबाद में दूसरी जच्चा की मौत, और इस बार फिर मंच पर वही कलाकार – City Hospital.
नाम के साथ ‘सिटी’ तो जोड़ लिया, लेकिन इलाज का सिस्टम गांव के झोलाछाप से भी बदतर।
25 वर्षीय शीतल, जो गर्भावस्था में अस्पताल पहुंची थी – वहां से जीवन नहीं, लाश लेकर लौटी।
ऑपरेशन के बाद ‘मौत’, सूचना से पहले ‘शव’ पहुंचा
पीड़ित पति मोहित कुमार का कहना है कि उसकी पत्नी का सीजर ऑपरेशन हुआ, बच्ची तो जन्मी लेकिन शीतल नहीं बची।
और फिर जो हुआ उसने इंसानियत का पोस्टमार्टम कर दिया – बिना बताए, बिना अनुमति के, पत्नी का शव गांव भेज दिया गया।
हॉस्पिटल वालों ने ना कोई कॉल किया, ना जानकारी दी — सिर्फ लाश ‘डिलीवर’ कर दी।
City Hospital Negligence Death: डॉक्टर फरार, जवाब गायब, इंसाफ लापता

जब परिवार वालों ने सवाल पूछे, तो जवाब नहीं मिला — सिर्फ टालमटोल।
और जब पुलिस पहुंची तो डॉक्टर फाइलें छोड़कर फरार, शायद अगले ऑपरेशन के लिए किसी और गांव की तैयारी में।
पीड़ित परिवार ने आरोप लगाया कि ये सिर्फ लापरवाही नहीं, सुनियोजित हत्या है।
City Hospital Negligence Death: सड़क पर रोता इंसाफ, सील हुआ अस्पताल

मृतका के परिजन और गांव वाले पहुंचे अस्पताल – आंसू और आक्रोश दोनों लेकर।
रोड जाम, नारेबाज़ी और हंगामा। पुलिस प्रशासन को मौके पर आना पड़ा, हालात काबू में करने के लिए।
CMO खुद पहुंचे, और सिटी हॉस्पिटल को सील कर दिया।
कह दिया गया कि जांच होगी – लेकिन सवाल ये है कि कब तक ‘जांच’ के नाम पर मौतों को बहाना मिलेगा?
City Hospital Negligence Death: सिस्टम की सर्जरी कब होगी?
इस घटना ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं:
क्या प्राइवेट अस्पतालों में मानवता का कोई रेट कार्ड नहीं?
क्यों हर गरीब की जान सिर्फ एक ऑपरेशन टेबल की दूरी पर खत्म हो जाती है?
और जब लाश घर पहुंच जाए, तभी क्या सिस्टम जागता है?
City Hospital Negligence Death: ‘जननी’ मरी और व्यवस्था मौन रही
जिस देश में मां को देवी कहा जाता है, वहां एक जच्चा की मौत पर सिस्टम का ये रवैया मूर्तियों के आगे अगरबत्ती और जीवित औरतों के लिए चुप्पी जैसा है।
शीतल की मौत सिर्फ एक लाश नहीं, बल्कि हेल्थकेयर माफिया के सिस्टम पर दर्ज हुआ खून का दाग है।
ये केस बता गया कि अस्पताल अब सेवा का नहीं, सेठों का धंधा बन चुका है — जहां जिंदगी की EMI मौत से पहले कट जाती है।
कब जागेगा ‘वाइट कोट’ में छुपा सिस्टम का काला सच?
CMO के आने से अस्पताल तो सील हो गया, लेकिन सवाल अब भी खुले हैं —
कितने और पोस्टमार्टम होने चाहिए, ताकि डॉक्टर जिम्मेदारी समझें?
कब तक ‘ऑपरेशन फेल हुआ’ कहकर ‘व्यवस्था पास’ होती रहेगी?
इस मामले में अगर ठोस कार्रवाई नहीं हुई तो आने वाला कल पूछेगा —
“क्या अस्पताल में इलाज के नाम पर लाशों की डिलीवरी होती रहेगी?”
जनता का कफन अब साइलेंट मोड में नहीं रहेगा
पीड़ित परिवार की चीखें, गांव वालों का विरोध, सड़क पर इंसाफ की पुकार – ये सब केवल आज की न्यूज हेडलाइन नहीं हैं।
ये आने वाली पीढ़ियों को दी गई खामोश धमकी है कि – “बीमार पड़ना तुम्हारा अधिकार है, पर जिंदा रहना नहीं!”
अब जनता कह रही है –
या तो डॉक्टर जवाब दें, या कानून उन्हें बताए कि ‘सफेद कोट’ की इज्ज़त कैसे बचाई जाती है।
वरना अगली बार हॉस्पिटल नहीं, जंजीरों से घिरा कसाईघर होगा – और मरीज नहीं, मोमबत्ती मार्च होंगे।

 
         
         
         
        