
India बनेगा विश्वगुरु, चीन-पाकिस्तान और बांग्लादेश की उलटी गिनती शुरु !
India के ना’पाक’ पड़ोसी हुए बेचैन !
चीन की नींद उड़ गई है, जिनपिंग के हाथपांव फूल गए हैं, बांग्लादेश में भी हलचल बढ़ गई है और तो और पाकिस्तान के फील्ड मार्शल मौलाना मुनीर की भी उलटी गिनती शुरु हो गई है. जिसके चलते पाकिस्तान के पीएम शाहबाज शरीफ भी बेसुध होते नज़र आ रहे हैं. क्योंकि अब पाकिस्तान को किसी भी वक्त एक ऐसा झटका लग सकता है कि पाकिस्तान चारों खाने चित हो सकता है. और भारत (India) के ये ना’पाक’ पड़ोसी अपना माथा पीटते हुए नज़र आ सकते हैं.
ख़तरे में पाकिस्तान की ज़मीन
हमेशा भारत में आतंकी हमलों की फिराक में रहने वाला पाकिस्तान, अब अपनी ज़मीन को बचाने के लिए जद्दोजहद करता हुआ नज़र आ सकता है. ताजा हालात ये है कि पाकिस्तान की खुद की ज़मीन खतरे में है, जो बताता है कि ऑपरेशन सिंदूर से घुटने पर आ चुके पाकिस्तान, कि अब कब्र खुदने वाली है. सच तो ये है कि पाकिस्तान की बर्बादी से जुड़ी एक बड़ी ख़बर सामने आ गई है. और इस ख़बर को पुख्ता किया है रूस के विदेश मंत्री के हालिया दावे ने, दरअसल रूस के विदेश मंत्री लावरोव के हालिया दावे के बाद इस्लामाबाद में हुकमारानों की बैठकों का दौर शुरु हो सकता है, सब के सब अपनी-अपनी कुर्सी बचाने की दौड़ में शामिल होने वाले हैं. साथ ही चीन-बांग्लादेश भी सोच में पड़ गए हैं कि आखिर अब क्या करें..?
रूस के दावे ने बढ़ाई टेंशन
रूस के विदेश मंत्री लावरोव का दावा है कि अफगानिस्तान को नाटो में शामिल किए जाने की प्लानिंग है. रूस के मंत्री ने खुलकर बताया है कि अमेरिका और बाकी पश्चिमी देश अफगानिस्तान को नाटो में शामिल करने की तैयारी में है. इस ख़बर को जानने के बाद आपके दिमाग में सवाल उठ रहा होगा कि आखिर अफगानिस्तान के NATO में शामिल होने से पाकिस्तान कैसे बर्बाद होगा..? NATO में अफगानिस्तान की एंट्री से पाकिस्तान की बढ़ती मुसीबत के भारत के लिए क्या मायने होंगे..? NATO में अफगानिस्तान की एंट्री से चीन-बांग्लादेश कैसे प्रभावित होंगे..? तो चलिए इन बातों का जवाब भी जान लेते हैं !

पाकिस्तान की शामत आने वाली है !
सबसे पहले बात पाकिस्तान की कर लेते हैं. तो बात ये है कि पाकिस्तान का पश्चिमी हिस्सा पूरी तरह से अफगानिस्तान से सटा हुआ है.और अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद से ही पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच बॉर्डर पर तनाव के हालात देखे गए हैं. अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच बॉर्डर की लंबाई करीब 2500 किलोमीटर से ज्यादा है. ऐसे में अफगानिस्तान के नाटो में शामिल होने की ख़बर आने वाले वक्त में सच हुई तो अफगानिस्तान पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हो जाएगा. और अफगानिस्तान की तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार को एक झटके में वैश्विक परिवेश में बड़े स्तर पर मान्यता मिल जाएगी. क्योंकि 2021 में अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी के बाद तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता हासिल कर ली थी. जिसके बाद से बड़े स्तर पर भले ही अफगानिस्तान के साथ कई देशों के रिश्ते धीरे-धीरे मजबूत होते दिखे हों. लेकिन एक बात किसी से छिपी नहीं कि आर्थिक नज़रिए से बड़े पैमाने पर ख़ासकर पश्चिमी देशों ने अफगानिस्तान की तालिबान की अगुवाई वाली सरकार को आधिकारिक तौर पर मान्यता अबतक नहीं दी थी.
NATO और अमेरिका की भूमिका समझिए
अब NATO को समझ लेते हैं. दरअसल NATO का पूरा नाम North Atlantic Treaty Organization है. नाटो में वर्तमान में कुल 32 सदस्य हैं. जिसमें से 30 सदस्य देश यूरोप के हैं, जबकि दो अमेरिकी देश भी नाटो के सदस्य हैं. नाटो की पहचान दुनिया के एक बड़े सशक्त सैन्य संगठन के तौर पर है. नाटो के संविधान के मुताबिक नाटो में शामिल सदस्य देशों की ज़मीन पर नाटो अपना सैन्य बेस बना सकता है. और तो और नाटो के किसी भी सदस्य देश पर हुआ हमला नाटो पर हुआ हमला माना जाता है. और ये बात किसी से छिपी नहीं है कि नाटो में भले ही कितने भी देश क्यों न शामिल हो. हकीकत यही है कि अनौपचारिक रुप से अमेरिका ही नाटो का मुखिया है. जो बताता है कि NATO की अफगानिस्तान में एंट्री पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर अमेरिका के दखल को मजबूत कर देगी.
अफगानिस्तान में होगा बड़ा बदलाव ?
अगर अफगानिस्तान नाटो का सदस्य बनता है तो सबसे पहले तो वहां पर नाटो अपना सैन्य बेस बनाने के लिए स्वतंत्र हो जाएगा. जिसका सीधा सा मतलब है अफगानिस्तान में फिर से अमेरिका सहित हर उस पश्चिमी देश की एंट्री हो जाएगी जो वर्तमान में नाटो का सदस्य है. ऐसे हालात में अफगानिस्तान के साथ पाकिस्तान की अगर बात बिगड़ती है या फिर किसी मुद्दे पर अफगानिस्तान के खिलाफ पाकिस्तान जाता है. तो उसका सीधा सा मतलब होगा कि पाकिस्तान नाटो के खिलाफ चला गया. जोकि पाकिस्तान के लिए एक बड़ी मुसीबत साबित होगा. और ये सबने पिछले कई सालों में देखा है कि पाकिस्तान वैसे भी वक्त बे वक्त अफगानिस्तान के साथ सीमा विवाद को लेकर उलझा हुआ नज़र आता रहा है.
India को क्या लाभ मिलेगा ?
अबतक बात NATO में अफगानिस्तान की एंट्री की हुई है. अब इससे भारत को क्या लाभ मिल सकता है. वो भी समझ लीजिए. दरअसल ऑपरेशन सिंदूर के बाद से ही पाकिस्तान घुटनों पर है. पाकिस्तान में गृह युद्ध के हालात दिख रहे हैं. बलूचिस्तान में पाकिस्तान की आर्मी भागती नज़र आ रही है. तो वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान के अंदर सिंधु देश की आजादी की मांग भी उठने लगी है. ऐसी स्थिति में अगर अफगानिस्तान, नाटो में शामिल हो जाता है. तो अबतक अफगानिस्तान बॉर्डर पर पाकिस्तान की जो चालबाजी देखी जाती थी. वो खत्म हो जाएगी और अपने पश्चिमी हिस्से की बचाने की जंग में पाकिस्तान उलझ जाएगा. क्योंकि तालिबान कई बार ये बात दोहरा चुका है कि वो भारत को एक मित्र देश मानता है. और हाल के सालों में चाहे बात अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद की बात हो या उससे पहले की, अफगानिस्तान के मुश्किल दिनों में भारत ने हर बार अफगानिस्तान की हर संभव मदद की है. और अफगानिस्तान में तालिबान के नेतृत्व वाली जो सरकार है वो भी भारत के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने के लिए, प्रयास करती नज़र आई है. ऐसे हालात में अफगानिस्तान का नाटो में शामिल होना, भारत के लिए ट्रंप कार्ड साबित हो सकता है, क्योंकि अगर अफगानिस्तान के हाथ मजबूत होंगे, तो पाकिस्तान की मुसीबत बढ़नी तय है.
चीन-बांग्लादेश की हालत होगी पतली ?
अब बात चीन-बांग्लादेश की भी कर लेते हैं. दरअसल चीन एशिया सहित पूरी दुनिया का सरपंच बनने के लिए कई सालों से परेशान है.चीन ने साउथ चाइन सी में अपनी दादागीरी दिखाने की कई बार कोशिश की है..तो वहीं PoK में CPEC यानि China-Pakistan Economic Corridor बनाकर चीन ने पाकिस्तान को मोहरा बनाकर भारत के इर्द गिर्द भी अपनी चाल चल दी थी..ऐसे में अगर अफगानिस्तान NATO में शामिल होता है, तो चीन की दुनिया का सरपंच बनने की चाहत तो दूर की बात चीन की एशिया का मुखिया बनने की चाहत भी धरी की धरी रह जाएगी. क्योंकि NATO में अफगानिस्तान की एंट्री एशिया में अमेरिका के हाथ मजबूत कर देगी.
चीन-अमेरिका के बीच सरपंच बनने की लड़ाई !
हर कोई जानता है कि अमेरिका और चीन के बीच बीते कई सालों से बड़े स्तर पर सुपर पावर बनने की कोल्ड वॉर जारी है. अमेरिका, नाटो के जरिए अफगानिस्तान में बेस बनाकर चीन पर नकेल कसने की प्लानिंग कर सकता है. साथ ही जो बांग्लादेश इस वक्त चीन के इशारे पर बहुत उछल रहा है, और तमाम मुद्दों पर भारत के खिलाफ बोलने की हिमाकत करता है. वो भी अपने आका को घिरता देखकर असमंजस में पड़ जाएगा कि आखिर अब करें तो करें क्या..? जाएं तो जाएं कहां..?
India, अमेरिका को कैसे मैनेज करेगा ?
आपके दिमाग में इस वक्त ये सवाल भी आ रहा होगा कि नाटो में अफगानिस्तान की एंट्री के बाद India , अमेरिका को कैसे मैनेज करेगा..? तो इसका सीधा सा जवाब यही है कि अगर किसी भी देश की चाहत इस वक्त सुपर पावर बनने की है. तो उसे एशिया में अपना दखल बढ़ाकर रखना होगा. और ये तब ही पॉसिबल होगा जब वो भारत के साथ अच्छे संबंध रखेगा. क्योंकि भारत न सिर्फ एशिया का बल्कि आर्थिक नज़रिए से इस वक्त दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार है. ऐसे में एशिया में अपनी दखल बढ़ाने के लिए अमेरिका को हर स्थिति में भारत से अच्छे संबंध की दरकार रहेगी. क्योंकि चीन के साथ अमेरिका पंगा भले ही न ले, लेकिन अमेरिका चीन के साथ दोस्ती किसी भी सूरत-ए-हाल में नहीं बढ़ाना चाहता है. क्योंकि अमेरिका वही देश है जो साउथ चाइन सी के मुद्दे पर खुलकर चीन को कई बार हड़का चुका है. और तो और चीन के विरोध के बावजूद अमेरिका कई बार ताइवान को खुले तौर पर समर्थन दे चुका है. और अमेरिका जता चुका है कि वो हर स्थिति में ताइवान का साथ देने से पीछे नहीं हटेगा. महज यही एक बात अमेरिका और चीन के रिश्तों का सच बताने के लिए काफी है. ऐसे हालात में नाटो में अफगानिस्तान की एंट्री, अमेरिका को भारत के करीब आने पर मजबूर करेगी. साथ ही साथ अमेरिका, चीन के मुकाबले भारत के ज्यादा करीब आने की दिशा में कदम आगे बढ़ा सकता है.
अमेरिका, भारत पर डोरे डालेगा !
अब सवाल उठता है कि अगर अमेरिका, भारत के ज्यादा करीब आता है, तो क्या अमेरिका भारत को अपने इशारे पर नचाने की कोशिश करेगा..? क्या अमेरिका को अपने इरादों में कामयाबी मिलेगी, तो इसका सीधा जवाब है- नहीं. क्योंकि अमेरिका ये बात जानता है कि भारत एक गुट निरपेक्ष देश है. मतलब भारत एक ऐसा देश है, जो शांति का पक्षधर है और भारत वैश्विक स्तर पर कभी भी किसी देश के इशारे पर नहीं चलता, बल्कि भारत हमेशा अपने फैसले खुद लेता है और पूरी दुनिया ये बात कई बार देख भी चुकी है. रूस के साथ भारत के मजबूत रिश्ते इसकी सबसे बड़ी बानगी है.
भारत की अमेरिका को दो टूक !
अमेरिका हज़ार बार रूस के साथ भारत (India) की डिफेंस डील का विरोध कर चुका है. लेकिन इसके बावजूद भारत ने खुले मंच से हर बार यही कहा है कि भारत अपने हितों के लिए अपने फैसले लेने के लिए स्वतंत्र है. भारत को जिस देश के साथ व्यापार करने से लाभ मिलेगा, भारत उस देश के साथ व्यापार करेगा. ये बात बताती है कि भारत किसी के बहकावे में नहीं आता है, जिससे स्पष्ट हो जाता है कि अमेरिका चाहकर भी भारत पर कोई दबाव नहीं बना सकता है. और तो और इतिहास के पन्ने भी इस बात की गवाही से भरे पड़े हैं, चाहे फिर बात 1971 की हो या फिर ज़िक्र भारत के परमाणु परीक्षण के दौर का हो. भारत ने हर बार अमेरिका के दबाव का जवाब अपनी कूटनीति से बेहतरीन तरीके से दिया है. ऐसे हालात में स्पष्ट हो जाता है कि अफगानिस्तान की नाटो में एंट्री होने के बाद भी अमेरिका को भारत से अपने रिश्ते ज्यादा मजबूत रखने की लगातार दरकार रहेगी, तभी वो एशिया में अपने हित साध पाएगा.
बहरहाल नाटो में अफगानिस्तान की संभावित एंट्री को लेकर रूस का दावा और उससे एशिया में स्थिति भारत (India) के पड़ोसी देशों पर पड़ने वाले प्रभाव अभी संभावनाओं के खेल में उलझे हुए हैं. क्योंकि अभी कुछ भी पुख्ता नहीं है, सिवाए इस बातके, कि आने वाला वक्त भारत का है. आने वाले वक्त में न सिर्फ एशिया बल्कि वैश्विक मंच पर भी भारत की स्थिति पहले से और ज्यादा मजबूत होती हुई दिखेगी. साथ ही अगर अफगानिस्तान की नाटो में एंट्री होती है, तो कई मायनो में ये बात पाकिस्तान, चीन और बांग्लादेश को घुटनों पर ला देगी. जिससे भारत का विश्व गुरु बनने का विज़न और भी ज्यादा मजबूत होता हुआ नज़र आ सकता है.