
Chaudhary Charan Singh. मोरारजी देसाई ने कैबिनेट से निकाला तो चरण सिंह ने गिरा दी सरकार. एक किसान के PM बनने की Anokhi Kahani||
प्रधानमंत्री सीरीज़: देश के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की कहानी
इंदिरा के खिलाफ गुस्सा, बनी जनता पार्टी की सरकार
इमरजेंसी के बाद बदला सियासी माहौल
1975 की इमरजेंसी के बाद देश में इंदिरा गांधी और कांग्रेस के खिलाफ जबरदस्त गुस्सा था। इस गुस्से ने 1977 के लोकसभा चुनाव में ऐसा माहौल बनाया कि कांग्रेस को अपनी सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा। इंदिरा गांधी अपनी रायबरेली सीट तक नहीं बचा पाईं, और देशभर में कांग्रेस केवल 189 सीटों पर सिमट गई। विपक्षी नेताओं ने मिलकर जनता पार्टी गठबंधन बनाया और चुनाव जीता। जीत के बाद प्रधानमंत्री पद के लिए तीन बड़े दावेदार सामने आए:
मोरारजी देसाई, जो पहले दो बार प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए थे।
बाबू जगजीवन राम, उस समय के सबसे बड़े दलित नेता।
चौधरी चरण सिंह, जो खुद को सबसे बड़ा जाट और किसान नेता मानते थे।
लंबे मंथन के बाद मोरारजी देसाई देश के चौथे प्रधानमंत्री बने। उनकी कहानी हम पिछले एपिसोड में बता चुके हैं। आज बात होगी चौधरी चरण सिंह की, जो देश के पांचवें प्रधानमंत्री बने।
मोरारजी देसाई और चौधरी चरण सिंह का टकराव
सियासी गलियारों में यह बात किसी से छिपी नहीं थी कि Morarji Desai और चौधरी चरण सिंह के बीच हमेशा से तनातनी रही। देसाई सरकार में चरण सिंह को गृह मंत्रालय दिया गया, लेकिन वे इससे खुश नहीं थे। उनका सपना था प्रधानमंत्री की कुर्सी। चरण सिंह, देसाई को ‘Do-Nothing Prime Minister’ कहकर तंज कसते थे। उनका मानना था कि देसाई किसी की नहीं सुनते और सभी फैसले खुद लेते थे। दूसरी ओर, देसाई कहते थे कि वे चरण सिंह का ‘चूरन’ बना देंगे। यह टकराव धीरे-धीरे जनता तक पहुंचने लगा।
देसाई ने चरण सिंह को कैबिनेट से निकाला
पहली बार बने दो उप-प्रधानमंत्री
जोड़तोड़ की राजनीति से PM की कुर्सी तक पहुंचे
जोड़-तोड़ की सियासत से बने प्रधानमंत्री
देसाई सरकार के गिरने के बाद नई सरकार बनाने की कवायद शुरू हुई। लोकसभा में बहुमत के लिए कम से कम 50% सीटों का समर्थन जरूरी था। कांग्रेस के पास 189 सीटें थीं, विपक्ष के पास 227, और चरण सिंह की पार्टी भारतीय लोक दल के पास 48 सीटें थीं। जनता पार्टी के पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त समर्थन था, लेकिन चरण सिंह यह मौका गंवाना नहीं चाहते थे। जनता दल में चल रही अंदरूनी उठापटक का फायदा उठाते हुए इंदिरा गांधी ने चरण सिंह की पार्टी को समर्थन देने का प्रस्ताव रखा, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। इस तरह, 28 जुलाई 1979 को चौधरी चरण सिंह देश के पांचवें प्रधानमंत्री बने।
इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी का किस्सा
चौधरी चरण सिंह के प्रधानमंत्री बनने से पहले का एक दिलचस्प किस्सा है। रामचंद्र गुहा अपनी किताब में लिखते हैं कि गृहमंत्री के रूप में चरण सिंह देसाई की कैबिनेट में दूसरे नंबर की हैसियत से काम करने को तैयार नहीं थे। उनका मानना था कि अगर इमरजेंसी के लिए जिम्मेदार इंदिरा गांधी को गिरफ्तार करवाया जाए, तो उन्हें देशभर में ख्याति मिलेगी। दरअसल, 1977 के लोकसभा चुनाव प्रचार में इंदिरा गांधी ने सरकारी पैसे से खरीदी गई 100 जीपों का इस्तेमाल किया था। इस भ्रष्टाचार के आरोप में उनकी गिरफ्तारी का फैसला लिया गया।
इंदिरा के समर्थन से बनी, फिर गिरी सरकार
Indira के सहारे बनी चौधरी चरण सिंह की सरकार
देसाई सरकार गिरी तो फिर सरकार बनाने की रेस शुरू हो गई. लोकसभा में कम से कम 50 फीसदी का बहुमत जरूरी था. कांग्रेस के पास 189 सीट थीं. विपक्ष के पास 227 और चरण सिंह की पार्टी भारतीय लोक दल के पास 48 सीटें थीं. इस चुनाव में जनता पार्टी के पास इतने वोट थे कि वो सत्ता की दावेदारी कर सके. इसलिए चौधरी चरण सिंह पीएम बनने का मौका छोड़ना नहीं चाहते थे. जनता दल के बीच चल रही उठापटक के बीच कांग्रेस ने इसका फायदा उठाना चाहा. 77 का लोकसभा चुनाव हार चुकी Indira Gandhi ने चरण सिंह की पार्टी को सपोर्ट करने का ऑफर दे दिया. जिसे चरण सिंह ने स्वीकार कर लिया. और इस तरह वो 28 जुलाई 1979 को देश के पांचवें प्रधानमंत्री बने.
क्रिकेट और तंबाकू से नफरत
चौधरी चरण सिंह की कुछ खास बातें उन्हें औरों से अलग बनाती थीं। वे क्रिकेट से सख्त नफरत करते थे। उनका मानना था कि क्रिकेट देश के युवाओं को ‘निकम्मा’ बना देता है। इसके अलावा, वे सिगरेट और तंबाकू के भी सख्त खिलाफ थे। उनकी यह नफरत इतनी थी कि वे ऐसे लोगों को अपनी पार्टी से चुनाव का टिकट तक नहीं देते थे।