Sabji Price Hike: बुलंदशहर
🌧️ बरसात ने Sabji Price Hike को दी ‘VIP Pass’
बुलंदशहर में बारिश क्या हुई, मंडी में सब्ज़ियों को जैसे सोने का तमगा मिल गया। Sabji Price Hike की ऐसी रफ्तार कि गोभी ने सोने को भी पछाड़ दिया। कल तक जो गोभी 25 रुपये किलो बिकती थी, आज वो ₹120 किलो में आम आदमी का मजाक उड़ा रही है। टमाटर भी कोई कद्दू नहीं है — ₹80 किलो में लाल-लाल गाल दिखा रहा है।
Sabji Price Hike ने रसोई को बना दिया म्यूजियम
कभी थाली में चार सब्ज़ियां सजती थीं — अब वो फोटो फ्रेम में टंग गई हैं। Sabji Price Hike ने रसोई को ऐसा ‘विरासत स्थल’ बना दिया है जहां सब्ज़ी दिखती नहीं, बस याद आती है। लोग थाली में आलू रखकर टमाटर की फोटो लगाकर खा रहे हैं। मजदूर कहता है — ‘भइया! अब तो रोटी चटनी से धोनी पड़ रही है।’ सब्ज़ी अमीरों के ड्राइंग रूम की शोभा बन गई है।
Sabji Price Hike और प्रशासन की गहरी दोस्ती

किसी को शक है क्या? बरसात में खेत डूबे, ट्रक वालों ने किराया बढ़ाया, मंडी में दलालों ने दाम बढ़ाया — और प्रशासन ने आंख मूंद ली। Sabji Price Hike पर प्रशासन का एक ही फॉर्मूला — ‘कृपया आम जनता स्वयं व्यवस्था संभाले’। मंडी में हर ठेले पर एक ही डायलॉग — ‘बारिश हो गई है साब, रेट तो बढ़ेंगे ही।’ किसान रो रहा है, ग्राहक रो रहा है — दलाल और अफसर हंस रहे हैं!
Sabji Price Hike: गरीब की थाली में अब सपना भी महंगा
सब्ज़ी के नाम पर सब्ज़ी गायब। बच्चों की फीस, स्कूल ड्रेस, दवाइयां, किराया — ये सब पहले ही कमर तोड़ चुके थे। अब हरी सब्ज़ियों ने वो भी पूरा कर दिया जो बाकी था। सवाल उठता है — प्रशासन ने आखिर क्या तैयारी की थी? मंडी में छापेमारी क्यों नहीं? सस्ता बाजार कहां? Sabji Price Hike पर कोई रोक नहीं — बस मीटिंगों में आश्वासन की गर्मी!
Sabji Price Hike: कब सुधरेगी मंडी, कौन रोकेगा मंडी माफिया?

कभी-कभार अफसर फोटो खिंचवाने मंडी पहुंच भी गए तो सब्ज़ियां देखकर लौट आते हैं — क्योंकि वहां सब्ज़ियां नहीं, सोना बिकता है। आम आदमी पूछ रहा है — क्या सस्ती सब्ज़ी मांगना गुनाह है? बरसात में हर साल फसल बर्बाद होगी — क्या तैयारी है? ट्रांसपोर्टेशन पर मनमानी क्यों? मंडी में माफिया कौन? जवाब किसी के पास नहीं। जनता बस आस लगाए बैठी है कि शायद कोई सुन ले!
Sabji Price Hike: अब तो दाल-रोटी भी हो गई ‘शाही भोज’!
Sabji Price Hike ने हालात ऐसे बना दिए हैं कि अब लोग एक-दूसरे को सब्ज़ी नहीं, नमक उधार मांगने लगे हैं। जिनके घर महीने में कभी पुलाव-कोफ्ते की खुशबू उठती थी, वहां अब दाल-रोटी भी किसी शाही भोज से कम नहीं लगती। किचन में आलू, प्याज और मिर्च के अलावा कुछ नहीं बचा — वो भी अगर ससुराल से या पड़ोस से मदद न मिली हो तो। और तो और, शादी-ब्याह में रिश्तेदार भी पूछने लगे हैं — ‘सब्ज़ी बनी है या सिर्फ फोटो खींच के दिखा देंगे?’ हद तो ये है कि गरीब की थाली से हरी सब्ज़ी पहले गायब हुई, अब दाल-चावल भी लाइन में हैं। प्रशासन चुप है, माफिया मस्त है — और जनता बस सोशल मीडिया पर Sabji Price Hike के मीम्स शेयर कर अपनी भूख मार रही है!
Written by khabarilal.digital Desk
🎤 संवाददाता:सुरेंद्र सिंह भाटी
📍 लोकेशन: बुलंदशहर, यूपी
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