Bulandshahr Hindu Woman Kidnapping पर Hindu संगठनों का बवाल
Bulandshahr Hindu Woman Kidnapping केस में विवाहिता की बरामदगी ना होने से ग्रामीणों और हिंदू संगठनों का गुस्सा फूटा। बजरंग दल, आरएसएस और सैकड़ों ग्रामीणों ने औरंगाबाद थाने पर धरना दिया। तीन थानों की पुलिस मौके पर पहुंची और चार दिन में बरामदगी का वादा किया। प्रशासन पर ‘मूकदर्शक’ होने के आरोप लगे और ग्रामीणों ने चेतावनी दी कि यह आख़िरी चेतावनी है।
📍Location: जनपद बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश
📆दिनांक: 27 जून 2025
✍️रिपोर्टर: सुरेंद्र सिंह भाटी
बुलंदशहर में प्रेम का ‘पंथनिरपेक्ष अपहरण’, थानों में संवैधानिक नींद और आश्वासनों की खैरात!
जनपद बुलंदशहर का प्रशासन इन दिनों शायद किसी मूक व्रत पर है—एक हफ्ता बीत गया, विवाहिता गायब, गांवों में उबाल और थानों में ‘उपवास’। घटना इतनी ‘सीधी’ है कि उसे पढ़कर भी पुलिस की आंखें टेढ़ी हो गईं। गाँव ईलना से गैर समुदाय का अधेड़ इस्तकार, छः महीने पहले ब्याही हिन्दू विवाहिता को भगाकर ले गया और थाना औरंगाबाद अब तक यही तय कर रहा है कि “हनीमून पैकेज के तहत अपहरण था या धार्मिक पर्यटन!”
थाने की चौखट पर आस्था खड़ी, अफसरों के चेहरों पर सरकारी ‘फेसक्रीम’। Bulandshahr Hindu Woman Kidnapping

गुरुवार को थौना गांव से उठे सैकड़ों ग्रामीण बजरंग दल के जिला संयोजक विपिन चिकारा, आरएसएस के रवि बजरंगी और समाजसेवी दयाराम सिंह की अगुवाई में औरंगाबाद थाने पहुंचे—थाना शायद वर्षों बाद इतना जागा, जितना कभी खुदा की कसमों से भी नहीं जागता। पुलिस की फाइलों में लड़की तो ‘लापता’ है, लेकिन अफसरों की जुबान पर वही पुराना वाक्य: “हम प्रयास कर रहे हैं… चार दिन दीजिए।”
चार दिन का झूठ, प्रशासन की पिचकारी, और जनता के सवाल। Bulandshahr Hindu Woman Kidnapping
धरने की भनक लगते ही स्याना और खानपुर के थानेदार भी मौके पर आ धमके—ना, लड़की बरामद करने नहीं, प्रदर्शनकारियों को चाय पिलाने। थानों का टोटल बजट अब शायद “फ्लास्क” और “आश्वासन” में खर्च हो रहा है। विवाहिता के भाई संजय ने तो उस ‘गैंग-ऑफ-इस्तकार’ के और दो साथियों के नाम भी दे दिए, लेकिन एफआईआर की स्याही शायद सरकारी रजाई में सूख रही है।

DM-SSP मौन, प्रेम कहानी मौजूदा, और संविधान कॉमा पर अटका। Bulandshahr Hindu Woman Kidnapping
पूरे प्रशासन का रवैया ऐसा है जैसे विवाहिता ने खुद इस्तकार को बुलेट पर बैठाकर भगाया हो। महिला सुरक्षा के नाम पर थानों में लगी दीवारों पर स्लोगन लिपे पड़े हैं—“बेटी बचाओ”—लेकिन ज़मीनी हकीकत यही है कि बेटी गायब है और बचाने वाले थाने में चाय पी रहे हैं।

धरना प्रदर्शन खत्म हुआ, अफसर चैन की सांस ले बैठे। लेकिन ग्रामीणों का अल्टीमेटम अब भी टिका है—चार दिन बाद अगर लड़की नहीं मिली, तो सत्ता की आंखों पर से चश्मा उतरवाना पड़ेगा।
