Bulandshahr CHC में वाटर कूलर सूखा, मरीज बेहाल
Bulandshahr CHC-बुलंदशहर के शिकारपुर CHC में मरीजों की प्यास बुझाने को लगाया गया वाटर कूलर खुद ही पानी को तरस रहा है। भीषण गर्मी में अस्पताल में आए लोग इधर-उधर पानी के लिए भटकते नजर आए, लेकिन प्रशासन को सुध नहीं। लाखों की योजनाएं सिर्फ कागजों तक सीमित हैं, ज़मीनी हकीकत है—सूखा सिस्टम और प्यासे मरीज।
📌 Written by: Khabrilal.Digital Desk
जब वाटर कूलर भी प्यासा हो जाए: बुलंदशहर CHC में ‘नल-नक्शा’ सब झूठा
Bulandshahr CHC-उत्तर प्रदेश की स्वास्थ्य योजनाएं सिर्फ कागजों में हाइड्रेटेड हैं, ज़मीनी हकीकत तो सूखी ज़ुबानों और प्यासे अस्पतालों की चीख पुकार है। बुलंदशहर के शिकारपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र यानी CHC में लाखों की योजनाओं की क़ीमत पर एक वाटर कूलर लगाया गया था – ताकि मरीजों को ठंडा पानी मिल सके। लेकिन अफ़सोस, अब वही कूलर खुद सरकारी व्यवस्था की तरह “सूखा” पड़ा है।
गर्मी अपने चरम पर है, मरीज बेहाल हैं, लेकिन CHC प्रशासन का पसीना भी नहीं निकल रहा। क्योंकि यहां न प्यास उनकी है, न परवाह।

कूलर है लेकिन पानी नहीं, सिस्टम है लेकिन ज़िम्मेदारी नहीं। Bulandshahr CHC
शिकारपुर CHC का वाटर कूलर अब एक सरकारी शोपीस बन चुका है। लाखों की योजनाओं से चमकाए गए अस्पताल के इस कोने में जब एक सुरक्षाकर्मी अपनी प्यास बुझाने पहुंचा, तो हकीकत ने खुद उसके चेहरे पर तमाचा जड़ दिया। बटन दबाने पर न पानी निकला, न कोई आवाज़ आई। यानी नल भी शायद सरकारी वेतन पर है – “काम न करना, बस लगे रहना।”
गार्ड ने खुद बताया कि नगर पालिका की ओर से लगाया गया था ये कूलर, लेकिन महीनों से खराब पड़ा है। पूछने पर वही पुराना सरकारी राग – “फाइल चल रही है, इंजीनियर आएगा, आदेश का इंतज़ार है।”

मरीजों की हालत—प्यासे हो या बीमार, पानी के लिए बाहर दौड़ो सरकार!
भीषण गर्मी में अस्पताल में भर्ती और ओपीडी के मरीज पानी की तलाश में अस्पताल परिसर छोड़कर दुकानों की ओर भागते हैं। सोचिए, जिनके पैरों में सूजन है, जिनके शरीर में बुखार है, उन्हें ठंडा पानी नसीब नहीं। बाहर से पानी खरीदकर लाना मजबूरी बन चुकी है। अस्पताल में इलाज से पहले अब एक और लाइन लगती है – “पानी कहां मिलेगा?”
कहने को स्वास्थ्य मंत्रालय करोड़ों झोंकता है—”बदल रहा है उत्तर प्रदेश”, लेकिन असल में सिर्फ स्लोगन बदलते हैं, हालात नहीं।
CHC प्रभारी और प्रशासन की चुप्पी—जिम्मेदार कौन? Bulandshahr CHC
स्थानीय लोगों का आरोप है कि इस कूलर को लेकर कई बार CHC प्रशासन को लिखित और मौखिक शिकायतें दी जा चुकी हैं, लेकिन जनाब का रूटीन तो तय है—”शिकायत फाइल में, फाइल दराज़ में और दराज़ भगवान भरोसे।”
CHC प्रभारी की चुप्पी इस बात का सबूत है कि यहां ‘प्रभारी’ नाम का कोई जीव सक्रिय नहीं है। लगता है कूलर और प्रभारी, दोनों को ही गर्मी से कोई फर्क नहीं पड़ता।

बुलंदशहर में गर्मी नहीं, सरकारी सिस्टम मार रहा है!
ये सिर्फ एक वाटर कूलर की कहानी नहीं, ये उस सिस्टम की तस्वीर है जो मरीज को इंसान नहीं, नंबर मानता है। जब एक अस्पताल में मरीज को पानी के लिए तरसना पड़े, तो समझ लीजिए ये लोकतंत्र नहीं, ठकंत्र है। जहां योजनाएं सिर्फ फोटो खिंचवाने और फाइलों में टिक मार्क लगाने के लिए होती हैं।
शिकारपुर CHC में अब इलाज से पहले एक चेतावनी बोर्ड लग जाना चाहिए—
“प्यासे मत आओ, पानी लाओ। यहां सिर्फ इमारत है, व्यवस्था नहीं।”
Bottom Line: वोटर प्यासा, सिस्टम मदमस्त। Bulandshahr CHC
बुलंदशहर का यह CHC उस कड़वे सच की मिसाल है, जिसमें करोड़ों की योजनाओं के बीच इंसानियत दम तोड़ रही है। जहां एक वाटर कूलर के खराब होने पर हफ्तों तक कोई सुध न ले, वहां ICU काम करेगा, ये सोचना भी पाप है।
क्या यही है नया उत्तर प्रदेश? क्या यही है सिस्टम की संवेदनशीलता?
सवाल बहुत हैं, जवाब नहीं—क्योंकि जवाबदेही भी शायद ‘वाटर कूलर’ की तरह ठंडे बस्ते में है।
