
Broken Road Pilibhit-कहां जा रहा है विकास का पैसा?
पीलीभीत शहर की एक अहम सड़क, जो रेशम विभाग और जिला पुनर्वास दिव्यांग केंद्र को जोड़ती है, वर्षों से बदहाल पड़ी है। Broken Road Pilibhit नाम से कुख्यात यह सड़क अब गड्ढों और पानी की झील में तब्दील हो चुकी है। इस रास्ते से रोज़ाना दिव्यांगजन, छात्र और आम नागरिक गुजरते हैं, लेकिन नेताओं और अफसरों की आंखें मूंदे हैं। बीजेपी सरकार के ‘गड्ढा मुक्त’ वादे इस सड़क पर मज़ाक बन चुके हैं। कभी वरुण गांधी तो अब जितिन प्रसाद जैसे नेता भी इस सड़क की सुध नहीं ले पाए। यह सड़क अब विकास की असफलता और सिस्टम की संवेदनहीनता का प्रतीक बन चुकी है।
पीलीभीत से रिपोर्ट। संवाददाता सकुश मिश्रा
Broken Road Pilibhit बना सिस्टम का पोस्टर बॉय
Broken Road Pilibhit–पीलीभीत में विकास की असल तस्वीर देखनी हो तो यहां की सड़कों पर एक चक्कर लगाइए। यहां सड़क नहीं, ‘झूला’ मिलता है, जिसमें गड्ढे इतने गहरे हैं कि सरकार की नीयत भी छुप जाए। यही सड़क जिले के रेशम विभाग और दिव्यांग पुनर्वास केंद्र को जोड़ती है, लेकिन हालत ऐसी है कि खुद पैदल चलना चुनौती है, व्हीलचेयर की तो बात ही छोड़िए!
हर साल करोड़ों की सड़कें बनती हैं, टूटती हैं, फिर से बनती हैं — लेकिन इस सड़क को शायद ‘विकलांगों’ के इस्तेमाल के चलते विकास की दौड़ से बाहर कर दिया गया है। जो रास्ता दिव्यांगों के लिए जीवनरेखा होना चाहिए, वो खुद वेंटिलेटर पर है।
Broken Road Pilibhit: जहां सरकार की संवेदनाएं गड्ढों में गुम हैं
ये सड़क कोई देहात की कच्ची पगडंडी नहीं है। ये टनकपुर हाईवे और माधोटांडा रोड को जोड़ने वाला मेन कनेक्शन है। यहां से सरकारी कर्मचारी, छात्र, मरीज, और खासतौर पर दिव्यांगजन रोज़ाना गुजरते हैं। लेकिन इस सड़क की हालत देखकर लगता है कि सरकार के ‘गड्ढा मुक्त अभियान’ को खुद गड्ढे निगल गए हैं।
आसपास के तालाब का पानी अक्सर सड़क पर आ जाता है, और लोगों को लगता है वो सड़क नहीं, गांव की पोखर पार कर रहे हैं। कई बार तो दिव्यांग व्हीलचेयर में ही बीच सड़क में फंस जाते हैं — लेकिन जिम्मेदार अधिकारी शायद इस दृश्य को “डेली रूटीन” मान बैठे हैं।
नेताओं की चुप्पी, अफसरों की अनदेखी – सब बराबर के हिस्सेदार
पीलीभीत की ये हालत सालों पुरानी है, लेकिन अब तक न किसी विधायक को दर्द हुआ, न किसी सांसद को ज़मीन की धड़कन सुनाई दी। कभी वरुण गांधी यहां के सांसद रहे, अब जितिन प्रसाद हैं — दोनों ने इस सड़क से ज़्यादा अपने बयानों को चमकाया।
जिला प्रशासन तो जैसे इस सड़क को देख ही नहीं पाता। शायद अफसरों की गाड़ियां उड़ती हैं, इसलिए सड़क की ज़रूरत उन्हें नहीं पड़ती। अगर कभी किसी दिन इस सड़क पर योगी जी का काफिला निकल जाए, तो क्या पता सड़क चमत्कार से बन जाए!
जर्जर सड़कों का सच: आँकड़ों में पोल
आइए जरा पीलीभीत में सड़कों के विकास पर नजर डाल लेते हैं-
Pilibhit Jerjer Sadak का दर्द: नेताओं का ढोंग
विकास के पोस्टर में नहीं दिखेगा Broken Road Pilibhit
सरकारी योजनाओं के पोस्टर में चमचमाती सड़कें, मुस्कुराते बच्चे और हरे-भरे वृक्ष होते हैं। लेकिन ज़मीनी सच? वो Pilibhit की सड़कों की शक्ल में हर रोज़ पीड़ा देता है। काश, अफसर-नेता कभी कैमरा बंद कराकर इस सड़क पर चलें — शायद तब कुछ एहसास हो।
जब एक दिव्यांग केंद्र तक की सड़क ही दिव्यांग हो, तो समझ लीजिए कि सिस्टम की रीढ़ पहले ही टूट चुकी है। सवाल सिर्फ एक सड़क का नहीं है, ये उस सोच का सवाल है जो विकलांगों की सुविधा की बजाय उन्हें सहानुभूति से देखने में ही विकास मानती है।
Pilibhit की टूटी सड़कें अब सिर्फ सड़क नहीं, ये हमारे सिस्टम की असफलता का प्रतीक बन चुका है — गड्ढों में गिरे सपनों और व्हीलचेयर में फंसे अधिकारों का चुप होता हुआ सच।
Benhur college रेलवे फाटक से पॉलीटेक्निक होते हुएं बिलगवां तक रोड में इतने गड्ढे है कि पैदल चलना मुश्किल होता है यह रोड 5 वर्ष से खराब है और बरसात में तो 3 फिट पानी भर जाता है जिससे सड़क पर यात्री चोटिल हो जाते है