Blue Drum Kanwar
एक रंग… नीला! एक वस्तु… प्लास्टिक का ड्रम! और उससे जुड़ी अनगिनत खौफनाक कहानियाँ, जो पिछले कुछ समय से पश्चिमी उत्तर प्रदेश की हवाओं में तैर रही थीं। मेरठ के चर्चित सौरभ हत्याकांड के बाद यह साधारण सा नीला ड्रम, डर, दहशत और अनहोनी का प्रतीक बन गया था। एक ऐसा प्रतीक, जिसे देखकर बच्चे तो क्या, बड़े-बड़ों के दिलों में भी एक अजीब सी सिहरन दौड़ जाती थी। सोशल मीडिया ने इस डर को इतना फैलाया कि नीला ड्रम अब सिर्फ ड्रम नहीं, बल्कि एक चलता-फिरता ‘हौवा’ बन चुका था। लेकिन अब इसी Blue Drum Kanwar की एक तस्वीर ने पूरे नैरेटिव को पलटने की कसम खा ली है।
जब ‘डर के प्रतीक’ पर ‘आस्था’ ने किया सर्जिकल स्ट्राइक
कल्पना कीजिए, कांवड़ मार्ग पर हजारों केसरियाधारी शिवभक्तों के बीच एक कांवड़िया कंधे पर वही ‘बदनाम’ नीला ड्रम उठाए चला आ रहा हो। पहली नजर में कोई भी चौंक जाए, शायद पुलिस भी दो पल के लिए अलर्ट हो जाए। लेकिन जब पास जाकर देखो तो पता चलता है कि उस ड्रम में खौफ नहीं, बल्कि 120 लीटर पवित्र गंगाजल भरा है। यह अद्भुत और प्रेरणादायक नजारा बागपत के बड़ौत-बुढ़ाना कांवड़ मार्ग का है, जहाँ हरियाणा के नरेला स्थित लामपुर गांव के एक शिवभक्त ने समाज के मन में बैठे डर के ‘रावण’ का दहन करने का बीड़ा उठाया है।
मिलिए ‘डर के डॉक्टर’ से, ये है अनोखी Blue Drum Kanwar का मिशन
यह ‘सामाजिक इंजीनियर’ कांवड़िया जब अपनी यात्रा पर निकला, तो उसका मकसद सिर्फ भोलेनाथ का जलाभिषेक करना नहीं था। उसका मिशन बड़ा था। उसने उस प्रतीक को चुना, जिससे लोग सबसे ज्यादा डरते थे। खरबरीलाल.डिजिटल से बात करते हुए उन्होंने कहा, “हमने नीले ड्रम को इसलिए चुना ताकि समाज के दिमाग से यह फितूर निकल जाए। जिस ड्रम ने एक बेटे को निगला और डर फैलाया, अब वही ड्रम हजारों लोगों के मन में शांति और भक्ति का संचार करेगा। रंग या वस्तु पापी नहीं होती, पापी होती है इंसान की सोच और उसके कर्म।” इस Blue Drum Kanwar का हर कदम, डर पर आस्था की जीत का एक ऐलान है।
सोशल मीडिया के फैलाए ‘वायरस’ का ‘गंगाजल’ से इलाज
यह घटना सोशल मीडिया और 24×7 न्यूज के उस चेहरे पर भी एक करारा तमाचा है, जो सेंसेशन के लिए डर को बेचता है। जिस नीले ड्रम की तस्वीरों ने महीनों तक लोगों को डराया, आज उसी नीले ड्रम की तस्वीरें एक सकारात्मक संदेश के साथ वायरल हो रही हैं। यह कांवड़िया सिर्फ गंगाजल नहीं ढो रहा, बल्कि वह अपने कंधे पर एक सामाजिक जिम्मेदारी ढो रहा है। वह हमें सिखा रहा है कि नकारात्मकता का जवाब और अधिक नकारात्मकता से नहीं, बल्कि एक सकारात्मक और साहसिक कदम से दिया जाता है।
सिर्फ कांवड़ नहीं, एक चलती-फिरती क्रांति
यह सिर्फ एक अनोखी कांवड़ नहीं है; यह एक चलती-फिरती क्रांति है। यह इस बात का सबूत है कि भक्ति सिर्फ मंदिर में घंटी बजाने या पूजा करने का नाम नहीं है। सच्ची भक्ति वह है जो समाज में व्याप्त अंधविश्वास, डर और कुरीतियों पर प्रहार करे। इस एक कांवड़िये ने बिना किसी भाषण या जुलूस के, चुपचाप अपने से वह कर दिखाया है जो बड़ी-बड़ी संस्थाएं और सरकारें भी नहीं कर पातीं।
क्या सफल होगा यह ‘आस्था का अभिषेक’?
अब सवाल यह उठता है कि क्या एक भक्त की यह यात्रा, समाज के मन में गहराई तक बैठे डर को सच में धो पाएगी? क्या लोग अब नीले ड्रम को शक की निगाह से देखना बंद कर देंगे? इसका जवाब तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इस कांवड़िये ने एक चिंगारी तो सुलगा ही दी है। उसने साबित कर दिया है कि अगर इरादे नेक हों और आस्था सच्ची हो, तो खौफ के सबसे बड़े प्रतीक को भी श्रद्धा का सबसे बड़ा सिम्बल बनाया जा सकता है।
Written by khabarilal.digital Desk
🎤 संवाददाता: राहुल चौहान
📍 लोकेशन: बागपत, यूपी
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