
BJP UP President
BJP UP President: कुर्सी के लिए चल रही “अनंत प्रतीक्षा”
सुनिए जी, अगर आप भी BJP UP President के नाम का इंतज़ार कर-कर के थक चुके हैं, तो दिल थाम के बैठ जाइए—क्योंकि पार्टी को खुद नहीं पता कि कब अध्यक्ष मिलेगा! पाँच महीने पहले पार्टी ने कहा था “बस दो दिन और”, फिर “अगले हफ्ते”, फिर “जनवरी तक”, अब जून भी निकल रहा है और जनता अब “मिशन अध्यक्ष खोजो” अभियान चला सकती है। लगता है, बीजेपी में अध्यक्ष चुनना कोई Tinder पर मैच ढूंढने से भी मुश्किल काम हो गया है।
पुराना अध्यक्ष, नई एक्सटेंशन पॉलिसी
2022 में जब भूपेंद्र सिंह चौधरी को अध्यक्ष बनाया गया था, तब किसी ने नहीं सोचा था कि वो ‘एक्सटेंशन वाले बाबा’ बन जाएंगे। जेपी नड्डा के कार्यकाल के साथ उनका भी कार्यकाल जुड़ा रहा — ऐसा लग रहा है मानो दोनों की नौकरी एक ही कॉर्पोरेट HR पॉलिसी पर टिकी हो। पार्टी भले “डेडलाइन” पर चलने का दावा करती हो, लेकिन यहाँ डेडलाइन को भी ब्रेक लेकर चाय पीने भेज दिया गया है।
जातीय गणित और BJP UP President की रेस
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो BJP UP President बनने की रेस में पिछड़े वर्ग से लेकर ब्राह्मण वर्ग तक सब कतार में खड़े हैं। कोई संघ से सेटिंग कर रहा है, तो कोई दिल्ली के गलियारों में नज़रें घुमा रहा है। इस पूरे खेल में सिद्धांतों और संगठन की बात पीछे छूट गई है, और अब सवाल ये है कि आखिर किसका ‘जातीय गणित’ सही बैठेगा? पंचायत चुनाव से लेकर 2027 की विधानसभा तक का भविष्य इसी पर टिका है।
कार्यकर्ता करें इंतज़ार, पार्टी करे एनालिसिस
अब सवाल ये है कि देरी की वजह क्या है? दरअसल, बीजेपी का “कार्यकर्ता-आधारित संगठन” अब पावर-पॉइंट प्रेजेंटेशन और बैलेंस शीट आधारित बन गया है। हर नेता का ‘वोट बैंक स्कोर’ चेक हो रहा है, जैसे किसी बैंक से लोन लेना हो। संगठन चुनाव पूरे हो चुके हैं, जिलाध्यक्ष भी आ चुके हैं, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष के लिए जैसे RSVP का इंतज़ार हो रहा हो—“हां भाई, कौन आ रहा है, कौन नहीं?”
B.L. संतोष का ‘प्रॉमिस डेट’ और उसका फ्लॉप शो
बीएल संतोष जी ने लखनऊ दौरे में 15 जनवरी तक नाम फाइनल करने की बात कही थी। कार्यकर्ताओं ने सोचा, “बिलकुल हो जाएगा”, लेकिन फिर 15 गई, 30 गई, और अब आधा साल भी चला गया। कहीं ऐसा न हो कि अगले लोकसभा चुनाव के वक्त भी कार्यकर्ता यही पूछते मिलें, “भाई, अध्यक्ष कौन है हमारे यहां?”
नेशनल लेवल पर भी वही कहानी
मजेदार बात ये है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष के मामले में भी बीजेपी ने यही नीति अपनाई है। नड्डा जी का कार्यकाल भी एक्सटेंशन पर चल रहा है, मानो पार्टी ने “रिटायरमेंट” शब्द को ही पार्टी से सस्पेंड कर दिया हो। सिद्धांतों पर आधारित पार्टी जब कुर्सी तय करने में इतनी मशक्कत कर रही हो, तो समझ लीजिए “सबका साथ, सबका एक्सटेंशन” ही नया नारा है।
BJP UP President की तलाश: चुनाव से पहले ही उलझन में संगठन
इस पूरी गुत्थी से यही समझ आता है कि बीजेपी अब “बैठकों की पार्टी” बनती जा रही है, जहां फैसले से ज़्यादा उसकी प्रक्रिया को पॉलिश किया जाता है। कार्यकर्ता चाहे जितनी बार पूछ लें, “कब मिलेगा नया अध्यक्ष?” पार्टी का जवाब है: “थोड़ा ठहरो, गुणा-भाग अभी बाकी है।”
विचार शील लेख।