
Bihari Temple
Bihari Temple की चौखट पर बैठी वो माँ… जो ठाकुर जी को बचाने निकली है
वो कोई साधारण दिन नहीं था वृंदावन की गलियों का, जब मंदिर के बाहर( Bihari Temple) एक 70 साल की माँ ज़मीन पर बैठी थी – हाथ में तुलसी की माला थी, पर आंखों से अश्रुधारा बह रही थी। उसका शरीर कांप रहा था, लेकिन हृदय से निकल रहा था संकल्प – “मेरे ठाकुर को सरकारी पंजों से बचा लो प्रभु।”
वो माँ अकेली नहीं थी… उसके साथ बैठी थीं सैकड़ों महिलाएं – किसी की गोदी में बच्चा था, कोई मंदिर की सीढ़ियों पर रो रही थी। ये आंदोलन नहीं था, ये आर्त पुकार थी।
Temple के नाम पर सरकार जो कुछ बना रही है, उसे ये महिलाएं विनाश की नींव मानती हैं।
Bihari Temple:“कोरिडोर नहीं, ये तो हमारी आस्था का पोस्टमार्टम है” – एक बेटी की चीत्कार
गोस्वामी समाज और व्यापारी परिवारों की महिलाएं जब मौन में बैठती हैं, तो लगता है वृंदावन खुद चुप है।
3 से 4 बजे का वह एक घंटा जैसे युगों जितना भारी था। उस मौन में चीखें थीं, जिनकी आवाज़ सिर्फ ठाकुर सुन सकते थे।
नीलम गोस्वामी की आंखें छलक पड़ीं – उन्होंने कहा,
“ये ट्रस्ट, ये अधिग्रहण… सब छलावा है। ये कोई विकास नहीं, ये ठाकुर जी के घर की लूट है। क्या कोई अपने पिता का घर किसी अफसर को दे सकता है? ठाकुर हमारा सर्वस्व हैं – उन्हें छूने की इजाजत हम किसी सरकार को नहीं देंगे।”
एक अन्य महिला की बात सुनकर रूह कांप गई –
“अगर ये कोरिडोर बनता है, तो सबसे पहले हम महिलाओं को कुचलना होगा। हम तैयार हैं – अपने ठाकुर के लिए मिट्टी में मिलने को।”
Bihari Temple की दीवारों में सिर्फ पत्थर नहीं, हमारी सांसें बसी हैं
बांके बिहारी मंदिर सिर्फ एक इमारत नहीं… वो हमारी विरासत है, हमारी पहचान है।
सरकार कहती है भीड़ संभालनी है… लेकिन हमारी माएं पूछती हैं –
“भीड़ संभालनी है या ठाकुर को सरकारी घेराबंदी में कैद करना है?”
वृंदावन की महिलाएं कहती हैं – यमुना किनारे सैकड़ों बीघा ज़मीन पड़ी है, वहां सुविधा बना लो। लेकिन मंदिर की आत्मा को मत कुचलो।
एक बच्ची ने अपने माँ से पूछा –
“माँ, ठाकुर जी को भी अब सरकारी बाबू चलाएंगे?”
उस माँ की आंखें डबडबा गईं…
“नहीं बेटा, हम लड़ेंगे। हम अपने ठाकुर को किसी के हवाले नहीं करेंगे।”
ये आंदोलन नहीं, ये आस्था की अंतिम लड़ाई है
सरकार इसे सिर्फ एक Temple मुद्दा मान रही है, लेकिन वृंदावन की हर स्त्री जानती है –
ये लड़ाई मंदिर की नहीं, विश्वास की है।
ये सिर्फ बांके बिहारी जी( Bihari Temple) की नहीं, पूरे सनातन की लड़ाई है।
और अगर इसके लिए वृंदावन की नारियों को प्राण भी देने पड़े, तो वे पीछे नहीं हटेंगी।
उनकी मौन भाषा कह रही थी –
“सरकार लौट जाए… नहीं तो एक दिन वृंदावन की हर बेटी ठाकुर जी के चरणों में बलि हो जाएगी। लेकिन मंदिर नहीं टूटेगा, स्वरूप नहीं बदलेगा, आस्था नहीं बिकेगी।”
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