
Bihar Assembly Elections 2025 में कांग्रेस का दम-खम और रणनीति
Bihar Assembly Elections 2025: क्या बिहार में कांग्रेस फिर से राजनीतिक वापसी कर पाएगी?
पटना: बिहार की राजनीति में कांग्रेस की हालात आज़ादी के बाद से लगातार बदलती रही है। कभी सत्ता में रहने वाली पार्टी, आज गठबंधन की सहयोगी पार्टी बनकर सीमित सीटों पर सिमट गई है। इससे बड़ा कांग्रेस का दुर्भाग्य और क्या हो सकता है। कभी जो पार्टी बिहार में सारी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ती थी, आज वो सीटों के लिए अपने सहयोगियों की तरफ देखती है। 2020 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को 70 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिला था, जिसमे से वो केवल 19 सीटें ही जीत सकी। ऐसे में सवाल उठता है — क्या 2025 के चुनाव में ‘बिहार में कांग्रेस’ कोई बड़ा उलटफेर कर पाएगी?

🔍 कांग्रेस के लिए चुनौती बना बिहार का सियासी मैदान
बिहार में एक दौर था जब कांग्रेस का सिक्का चलता था। उसके नाम की तूती बोलती थी। हर तरफ बस बिहार का हाथ कांग्रेस के साथ का नारा दिया जाता था, लेकिन अब हालात बिल्कुल बदल चुके हैं। कांग्रेस सत्ता की दौड़ में दूर-दूर तक दिखाई ही नहीं पड़ती है। बिहार में तो ऐसा लगता है कि, कांग्रेस बस नाम के लिए ही जिंदा है।असल में उसकी जमीन पर क्षेत्रीय दलों ने कब्जा कर रखा है। 1990 के दशक के बाद राज्य में मंडल राजनीति और सामाजिक समीकरणों ने कांग्रेस को धीरे-धीरे हाशिये पर धकेल दिया। राष्ट्रीय स्तर पर भी पार्टी की साख लगातार गिरती चली गई। जिसका असर राज्य के चुनावों पर भी साफ देखा गया। इससे न केवल पार्टी का मनोबल टूटा, बल्कि गठबंधन के भीतर भी उसकी उपयोगिता पर भी सवाल उठने लगे।
गठबंधन की राजनीति में कांग्रेस की ‘कमज़ोर साथी’ की छवि
2020 में बिहार में कांग्रेस ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेतृत्व में महागठबंधन का हिस्सा बनकर चुनाव लड़ा था। उस चुनाव में महागठबंधन को कुल 110 सीटें मिलीं थीं, जिसमें RJD ने 75, कांग्रेस ने 19 और वाम दलों ने 16 सीटें जीतीं थी। उस चुनाव में कांग्रेस का स्ट्राइक रेट गठबंधन के अन्य सहयोगियों, जैसे आरजेडी और लेफ्ट से काफी कम था। लिहाजा जब हार की समीक्षा हुई, तो कांग्रेस को ही ‘कमज़ोर कड़ी’ करार दिया गया।
कांग्रेस को इस बार और कम सीट देने की तैयारी?
इसी नतीजे को देखते हुए आरजेडी(RJD) इस बार के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को और भी कम सीटें देने की प्लानिंग कर रही है। सूत्रों की माने तो ये तय है कि, RJD ने इस बार सीट शेयरिंग में कांग्रेस को कम अहमियत देने का मन बना लिया है,क्योंकि इस बार वो सत्ता को हर हाल में पाना चाहती है। कांग्रेस पर ज्यादा सीटों का दांव RJD खतरे की आहट लग रहा है। कहने में गुरेज नहीं कि, अगर कांग्रेस अपनी संगठनात्मक ताकत नहीं दिखा पाई, तो 2025 में उसे 30 से भी कम सीटें मिल सकती हैं।

कांग्रेस को संगठनात्मक ढांचे में सुधार की दरकार
बिहार में कांग्रेस का संगठन फिलहाल बिखरा हुआ है। जिला, ब्लॉक और पंचायत स्तर पर पार्टी की मौजूदगी नगण्य है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कुछ सक्रिय नेताओं को जिला कमेटियों में शामिल किया है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर कोई ठोस आंदोलन या कार्यक्रम देखने को अभी तक नहीं मिला है, जिससे ये साबित हो सके कि, बिहार कांग्रेस में अभी दम बाकी है। आज के समय में जब हर पार्टी सोशल मीडिया के जरिये अपनी बात आम जनता तक पहुंचा रही है, ऐसी हालत में कांग्रेस अभी अंगड़ाई लेती हुई नजर आ रही है। हालांकि राहुल गांधी ने थोड़ा दम बांधा है, और पिछले कुछ महीनों में वो बिहार में तेजी से सक्रिय हुए हैं।
बिहार के लिए कांग्रेस की मौजूदा रणनीति क्या है?
बिहार चुनाव को देखते हुए राहुल गांधी और कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने बिहार में सक्रियता बढ़ा दी है। राहुल गांधी ने हाल के महीनों में बिहार के कई दौरे किए हैं, उनके इन रैलियों, संवाद और दौरे का मकसद दलित और ओबीसी वर्ग को साधना है। दरभंगा में दलित छात्रों से संवाद उसी की एक कड़ी थी। दरअसल कांग्रेस ने बिहार में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए जातीय समीकरणों पर जोर दिया है। पार्टी का पूरा फोकस जाति आधारित जनगणना और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर है, जो बिहार की राजनीति में हमेशा से अहम रहे हैं।

आम जन को साधने के लिए चुनावी रेवड़ी!
कन्हैया के जरिये जमीन तलाशने की कोशिश
कांग्रेस ने इस बार बिहार में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए कन्हैया कुमार को अपने सेनापति के रूप में मैदान में उतार रखा है। युवाओं को अपने साथ जोड़ने के लिए कन्हैया दिन-रात मेहनत भी कर रहे हैं। रोजगार दो पलायन रोको का नारा देकर युवाओं के बीच जा रहे हैं। लेकिन कन्हैया की ये मेहनत कांग्रेस को जमीन पर खड़ा कर पाएगी, ये कह पाना अभी मुश्किल है। क्योंकि कन्हैया का भी अभी बहुत बड़ा जनाधार बिहार में नहीं है। लिहाजा अकेले दम पर वो बिहार में कांग्रेस की डूबती नैया को बचा लेंगे, ये कह पाना मुश्किल है।
महागठबंधन में कांग्रेस की भूमिका

सीट बंटवारे पर हो सकता है मनमुटाव
बिखरा हुआ है कांग्रेस का वोट बैंक
कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक कभी मुस्लिम, दलित और सवर्ण वर्ग हुआ करता था। लेकिन बदलते वक्त के साथ इसमें भी बदलाव आ चुका है। बिहार में अब मुसलमान वोटर बड़ी संख्या में RJD की तरफ झुके हैं, जबकि दलितों में JDU जैसे क्षेत्रीय दलों की पकड़ है। सवर्ण मतदाता को बीजेपी के वोट बैंक के रूप में गिना जाता है। लिहाजा कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि, कांग्रेस न तो किसी एक वर्ग में मजबूत पकड़ बना पाई है और न ही युवा मतदाताओं को आकर्षित कर पाई है। बिहार में अगर कांग्रेस को अपने जनाधार को फिर से खड़ा करना है, तो उसे जातीय समीकरणों की गहरी समझ के साथ लंबी रणनीति बनानी होगी।
बिहार में कांग्रेस के सामने चुनौतियां क्या?

क्या कांग्रेस बदल पाएगी तस्वीर?

बिहार में कांग्रेस की वापसी आसान नहीं है, लेकिन नामुमकिन भी नहीं। इसके लिए पार्टी को गठबंधन पर निर्भर रहने की बजाय अपनी ज़मीन खुद तैयार करनी होगी। उम्मीदवार चयन में पारदर्शिता, क्षेत्रीय नेतृत्व को बढ़ावा और डिजिटल अभियान की सशक्त रणनीति बनानी होगी। वरना 2025 का चुनाव कांग्रेस के लिए एक और ऐतिहासिक गिरावट का कारण बन सकता है।
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