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प्रशासन की बेरुखी – जिम्मेदारी से मुंह मोड़ते अधिकारी
जल संसाधन विभाग के अधिकारी कटाव स्थल पर पहुंच तो रहे हैं – लेकिन उनकी बातें सुनकर लगता है कि वे सिर्फ खानापूर्ति के लिए आए हैं। एसडीओ प्रवेश कुमार और जूनियर इंजीनियर मणिकांत कुमार जैसे अधिकारियों का रवैया देखिए – जिन्होंने ग्रामीणों के सवालों पर दो टूक कह दिया – “हमारा काम सिर्फ तटबंध देखना है, आपके घर बचाना हमारी जिम्मेदारी नहीं।”
फ्लड फाइटिंग के दावे और जमीनी हकीकत
Bihar का जल संसाधन विभाग हर साल मानसून से पहले फ्लड फाइटिंग की तैयारियों के बड़े-बड़े दावे करता है। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि न तो समय पर बांस-बल्ली पहुंचती है – न बोरी और न ही पत्थर। मजबूर ग्रामीण खुद मिट्टी और बोरी डालकर कटाव रोकने की जद्दोजहद करते हैं।

राजनीतिक चुप्पी: जनप्रतिनिधियों काट रहे मौज?
बिहार के सहरसा जिले में बाढ़ और कोसी नदी के कटाव से ऐसी भयावहता के बावजूद न कोई मंत्री, न विधायक और न ही जिला प्रशासन का कोई बड़ा अधिकारी अब तक कटाव स्थल पर पहुंचा है।
Kosi का कहर – पलायन ही एकमात्र रास्ता?
Sarhasa में कोसी नदी के बढ़ते जलस्तर और कटाव के कारण घोघसाम के ग्रामीण जान-माल बचाने के लिए राजपुर बांध या पश्चिमी तटबंध की ओर पलायन कर रहे हैं। लेकिन यह कोई समाधान नहीं है। हर साल घर-बार छोड़कर भागना क्या इन लोगों का नसीब बन गया है? समाजसेवी आशीष कुमार ने प्रशासन से तत्काल कटावरोधी कार्य शुरू करने की मांग की है, लेकिन प्रशासन की सुस्ती को देखते हुए यह मांग भी हवा में गुम होने की आशंका है।
ग्रामीणों की पुकार: स्थायी समाधान चाहिए
सहरसा में कोसी नदी से तबाही और बेबसी हर साल की तस्वीर बन चुकी है। ग्रामीण अब आपातकालीन राहत से तंग आ चुके हैं। उनकी मांग है कि सरकार कोसी के कटाव को रोकने के लिए स्थायी उपाय करे। रिवेटमेंट दीवार, पत्थरों से भराव और नदी के बहाव में वैज्ञानिक बदलाव जैसे कदम उठाए जाएं। अगर समय रहते इन पर ध्यान नहीं दिया गया, तो आने वाले सालों में पूरा इलाका कोसी की लहरों में समा जाएगा।
सरकार के खोखले दावे – बातें बड़ी-बड़ी – काम कुछ नहीं!
कोसी के कटाव से ग्रामीणों का जीवन उजड़ रहा है – लेकिन प्रशासन और बिहार सरकार की नींद नहीं टूट रही। क्या यह लोग सिर्फ वोटबैंक हैं – जिन्हें हर पांच साल में याद किया जाता है? बाढ़ नियंत्रण के नाम पर अरबों रुपये खर्च करने का दावा करने वाली सरकार क्या सिर्फ कागजों पर योजनाएं बनाती है? अगर वाकई में ग्रामीणों की चिंता है, तो फिर कटावरोधी कार्यों में देरी क्यों? अधिकारियों की बेरुखी और नेताओं की चुप्पी इस बात का सबूत है कि कोसी के किनारे बसे लोगों की जिंदगी सरकार की प्राथमिकता में नहीं है।

 
         
         
        