संभल में Bhagwantpur Temple Land Dispute ने तूल पकड़ लिया है। माता भगवन्तपुर वाली देवी मंदिर की मेला भूमि पर नगर पालिका द्वारा सत्संग भवन निर्माण की कोशिशों के खिलाफ मंदिर ट्रस्ट तीसरे दिन भी धरने पर बैठा है। गाटा संख्या 638 को मंदिर भूमि मानने वाले राजस्व दस्तावेज़ों के उलट पालिका 633 को पकड़कर निर्माण करा रही थी। अब ट्रस्ट की वैधता तक को संदेह में डालने की कोशिशें हो रही हैं। जनता पूछ रही है — ये आस्था है या गाटा घोटाले का नंगा नाच?
✍️ Written by: Khabrilal.Digital Desk
संभल के बहजोई में नगर पालिका ने आस्था की चूड़ियाँ नहीं, गाटा नंबर की हथकड़ियाँ पहनाने की ठान ली है। मां भगवन्तपुर वाली देवी मंदिर के ठीक सामने, मेला भूमि में सत्संग भवन बनाने का टेंडर निकाल कर, उन्होंने सीधा-सपाट संदेश दिया –
“इस शहर में मंदिर से बड़ा हमारा नक्शा है, और भगवान से ऊपर हमारी सील।”
तीसरे दिन भी मंदिर कमेटी धरने पर बैठी रही, लेकिन पालिका की कानों में वही “कागज़ी शंख” बज रहा है – गाटा 633, गाटा 638, गाटा जो भी हो… ज़मीन अपनी है, क्योंकि रजिस्टर में हमने लिख दिया है!
फिलहाल काम रुका है… लेकिन पालिका कब नया पन्ना दिखा दे, कौन जाने!
पालिका ने जैसे-तैसे फिलहाल निर्माण कार्य पर रोक तो लगा दी है – शायद जनता के गुस्से या कोर्ट के डर से। लेकिन जब सत्ता की कलम झूठ की दवात में डूबी हो, तो कब कौन-सा नया दस्तावेज़ निकले और जमीन को फिर से “पालिका की” बता दिया जाए, कहा नहीं जा सकता।
“यहां झूठ ठेके पर छपता है, और आस्था कोर्ट की फाइलों में गाटा नंबर बन जाती है।”
जिस भूमि पर माता भगवन्तपुर वाली देवी का मंदिर है, वो गाटा संख्या 638 में दर्ज है। लेकिन पालिका ने चतुराई से 633 नंबर के रजिस्टर में घुसकर उसे “अपनी मेला भूमि” बता दिया। मकसद साफ़ है –
“जहां जनता सिर झुकाए, वहां ठेका झोंको। जहां श्रद्धा हो, वहां स्कीम ठोंको।”
मंदिर ट्रस्ट जब कोर्ट पहुंचा, तो पालिका के वकील ने हलफनामे में खुद ही बता दिया – “नहीं-नहीं, हम तो मेला भूमि में निर्माण नहीं कर रहे हैं, मंदिर से कोई लेना-देना नहीं।” लेकिन असलियत ये है कि पालिका खुद नहीं जानती वो बना क्या रही है, और तोड़ क्या रही है – श्रद्धा या संरचना?
Bhagwantpur Temple Land Dispute
गाटा नंबर में घालमेल: पालिका का नया खेल—जहां ज़मीन दिखी, वहां अपना झंडा गाड़ दिया!
असल में पूरा झगड़ा दो गाटा नंबरों का है—638 और 633। 👉 गाटा संख्या 638 में माता भगवन्तपुर वाली देवी का मंदिर राजस्व विभाग के अभिलेखों में साफ दर्ज है। लेकिन कमाल देखिए—पालिका ने सत्संग भवन बनाने का जो टेंडर निकाला, वो गाटा 638 पर दिखाया गया, और अब तहसीलदार ने अपनी रिपोर्ट में मंदिर को ही 633 में चिपका दिया! इसके जरिये पालिका अपना मकसद हल करना चाहती है।
मतलब ये कि –
“जिस फाइल में फायदा हो, मंदिर वहीं रख दो। जो स्कीम में फिट बैठे, गाटा नंबर उसी में घुसेड़ दो।”
अब इस राजस्व तिकड़मबाज़ी से दो सवाल खड़े होते हैं –
क्या नगर पालिका ने जानबूझकर गाटा संख्या बदलकर टेंडर जारी किया?
क्या तहसील प्रशासन भी उसी कागज़ी सुरंग में घुस चुका है जहां सत्य, आस्था और ज़मीन तीनों गायब हैं?
“यहां गाटा नंबर नहीं बदलता, यहां ज़मीन की पहचान बदल दी जाती है – और आस्था को सरकारी योजना का सबजेक्ट बना दिया जाता है।”
पालिका की कागज़ी पूजा: “मंदिर को छेड़ा नहीं, बस बगल में ही छेड़छाड़ कर ली!”
पालिका के बचाव में तर्क बड़ा मासूम है –
“हम मंदिर को छू नहीं रहे, मेला भूमि में सत्संग भवन बना रहे हैं।”
अब ज़रा सोचिए—जिस ज़मीन पर मंदिर है, वहीं से लगे हिस्से में जब सरकारी निर्माण होगा, तब न धार्मिक गरिमा बचेगी, न जन-भावना की जगह।
“ये वही बात हुई जैसे कोई कहे – हम मृतक का शरीर नहीं जला रहे, बस उसी चिता के पास लकड़ी की दुकान खोल ली है।”
पालिका ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं –
श्रद्धा को सरकारी बाउंड्री में जकड़ना,
जमीन की पहचान बदलना,
और विरोध करने वालों पर ही ‘अतिक्रमण’ का आरोप मढ़ना।
PAC तैनात.. पर आस्था के घाव कौन सा बल सील कर सकता है? Bhagwantpur Temple Land Dispute
धरना स्थल पर PAC के जवान तैनात हैं। ट्रस्ट के लोग भले धरने पर बैठे हों, पर असली डर ये है कि
“पालिका फिर कब कौन-सा नया कागज़ उठाकर कह दे – अब तो ये ज़मीन भी हमारी।”
DM ने दोनों पक्षों को बुलाकर मामला शांत करने की कोशिश की – लेकिन ये “शांति” वैसी है जैसे तेजाब के ऊपर गुलाब जल छिड़कना।
“पालिका जब अपने दस्तावेज़ खुद बनाती है, जांच खुद करती है, और रिपोर्ट में मंदिर की जगह खुद तय कर लेती है – तब DM की मध्यस्थता भी पंचायती मज़ाक लगती है।”
धरना नहीं, आस्था की अंतिम चौकी: ट्रस्ट को ही अवैध बताकर पालिका क्या कहना चाहती है?
धरने पर बैठे हैं – संजीव साउंड, हिमांशु डॉन, कन्हैया लाल आदती, मनोज आरएसएस, गौरवकांत शर्मा, राजकुमार गोंड, अरुण गोस्वामी, गोपाल शर्मा, नरेंद्र कुमार समाजसेवी, चैतन्य सिंह, भुवनेश कुमार, सतीश शर्मा RRS, राजेश बादशाह, विजय कुमार, धर्मेंद्र कुमार, कमल कुमार उर्फ बंटी ठाकुर – यानी वो लोग, जो न तो ठेकेदार हैं, न दलाल, बल्कि मंदिर और माटी के लिए सीना ताने बैठे हैं।
और इधर नगर पालिका क्या कर रही है? अब उसे मंदिर ट्रस्ट की वैधता पर ही शक होने लगा है।
जैसे कोई चोर कहे – “घर का मालिक ही नकली है, ताले की चाबी मेरी होनी चाहिए।”
जिनके पूर्वजों ने मंदिर बसाया, पूजा की, मेला चलाया, वही लोग आज गाटा और गुट के नाम पर “अतिक्रमणकारी” ठहरा दिए गए हैं। पालिका का इरादा अब सिर्फ ज़मीन पर नहीं, श्रद्धा के स्वत्वाधिकार पर भी कब्जा करने का है।
“ये मामला अब आस्था बनाम प्रशासन नहीं रहा – ये अब ‘भगवान बनाम बाय-लॉज’ हो चुका है!”
खबरीलाल का बड़ा सवाल: Bhagwantpur Temple Land Dispute
“संभल में अब मंदिरों की पहचान गाटा नंबर से तय होती है? अगर पालिका की फाइल में नाम न हो, तो देवी भी ज़मीन पर किराएदार मानी जाती हैं।”?