 
                  Bareilly News: शिकायत न सुने जाने के दर्द से बिलख उठी पीड़ित
Bareilly News Update
Bareilly News: संपूर्ण समाधान दिवस, जिसे सरकार ने आम जनता की समस्याओं के तुरंत समाधान के लिए शुरू किया था, आज सवालों के घेरे में है.
फरीदपुर तहसील में शनिवार को आयोजित इस समाधान दिवस की घटना ने ये साबित कर दिया कि अच्छे इरादों से शुरू की गई योजनाएं भी अगर सही तरह से लागू न हों, तो जनता का भरोसा टूटने में देर नहीं लगती. इस आयोजन में जो हुआ, उसने न केवल प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठाए, बल्कि ये भी दिखाया कि सिस्टम में अभी बहुत कुछ ठीक करने की जरूरत है.
मुख्य विकास अधिकारी देवयानी की अध्यक्षता में हुए इस समाधान दिवस में करीब 200 शिकायतें दर्ज हुईं. इनमें ज्यादातर मामले राजस्व, ब्लॉक, पूर्ति और पुलिस विभाग से जुड़े थे. दस शिकायतों का मौके पर ही निपटारा भी किया गया, जो सुनने में अच्छा लगता है. लेकिन एक घटना ने इस पूरे आयोजन की सार्थकता पर सवालिया निशान लगा दिया.

ये कैसा समाधान दिवस ?
एक साधारण ग्रामीण महिला, अपनी शिकायत लेकर समाधान दिवस पहुंची. उसने जैसे ही अपनी बात रखने की कोशिश की, कोतवाल राधेश्याम, एसडीएम मल्लिका नयन, तहसीलदार सुरभि राय और लेखपाल ने बिना उसकी पूरी बात सुने ही अपनी सफाई देनी शुरू कर दी. ये दृश्य देखकर हर कोई हैरान रह गया. पुष्पा को अपनी बात रखने का मौका तक नहीं मिला. हताशा और बेबसी में उसने टेबल पर सिर पटक लिया, जिसने वहां मौजूद सभी लोगों को झकझोर दिया.
सिस्टम की सच्चाई उजागर !
ये घटना सिर्फ एक महिला की पीड़ा की कहानी नहीं है, बल्कि ये उस सिस्टम की सच्चाई को उजागर करती है, जहां अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से भागते नजर आते हैं. ग्रामीणों का कहना था कि जब अफसर ही पीड़ित की बात सुनने को तैयार नहीं, तो समाधान दिवस का क्या मतलब? ये आयोजन, जो जनता की समस्याओं का समाधान करने के लिए शुरू किया गया था, कहीं दबाव और डर का मंच तो नहीं बन गया? अगर अधिकारी पीड़ितों की आवाज दबाने और दबंगों का साथ देने लगें, तो आम आदमी का प्रशासन पर से भरोसा उठना स्वाभाविक है.
ऐसे कैसे होगा संपूर्ण समाधान?
संपूर्ण समाधान दिवस का मकसद था कि लोग अपनी समस्याएं सीधे अधिकारियों तक पहुंचा सकें और उन्हें तुरंत न्याय मिले. लेकिन जब ऐसे आयोजन औपचारिकता बनकर रह जाएं, तो ये न केवल सरकार की साख को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि जनता के मन में निराशा भी भरता है. ये घटना इस बात का सबूत है कि सिस्टम में कहीं न कहीं खामियां हैं. अगर सरकार चाहती है कि जनता का भरोसा बरकरार रहे, तो उसे ऐसे आयोजनों की सख्त निगरानी करनी होगी. अधिकारियों की जवाबदेही तय करनी होगी, ताकि कोई पुष्पा अपनी बात कहने के लिए सिर न पटकने को मजबूर हो. अगर ऐसा नहीं हुआ, तो “संपूर्ण समाधान दिवस” कहीं “संपूर्ण समस्या दिवस” बनकर न रह जाए.

 
         
         
        