
"Banke Bihari Temple"
Banke Bihari Temple पर सरकार और सेवायतों के बीच संवाद का जारी, मंत्रीजी ने दो घंटे की ‘मंत्रणा’ में विवाद से ही किया इंकार।
संवाददाता-अमित शर्मा
वृंदावन — जहां राधे-राधे की गूंज के बीच इन दिनों Banke Bihari Temple को लेकर “न्यासी तूफान” उठा हुआ है, वहां रविवार को एक नई कथा जुड़ गई। यूपी सरकार के गन्ना मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण जी, जिन्होंने शायद मंदिरों के इतिहास से ज़्यादा शुगर मिलों की भाप देखी है, पहुंचे Banke Bihari Temple के सेवायतों के बीच मंत्रणा करने। कुल मिलाकर ये दो घंटे की वो बातचीत थी जिसमें बात कम और बयानबाज़ी ज़्यादा हुई।
“सब कुछ ठीक है, कुछ भी गड़बड़ नहीं”—मंत्री जी का चमत्कारी चश्मा(Banke Bihari Temple)
मंत्रीजी बोले, “सेवायत और सरकार में कोई विवाद नहीं।” अब या तो सेवायत 12 दिन से बेमौसम रैली करने का शौक पाल बैठे हैं, या मंत्रीजी को वृंदावन की गलियों में उड़ते विरोध के धुएं से एलर्जी है।
उन्होंने कहा, “सरकार बस श्रद्धालुओं की सुविधा चाहती है।”
भक्त बोले—“तो फिर हमारी आस्था पर अध्यादेश क्यों बरसाया जा रहा है?”
सेवायतों ने सोच रखा था कि मंत्रीजी ज़मीन पर उतरेंगे, पर वो तो सीधे हेलीकॉप्टर मोड में आ गए। बोले, “जो काम होगा, दोनों की सहमति से ही होगा।”
सेवायत बोले—“तो अब तक जो विरोध झेल रहे हैं, वो किसकी सहमति से चल रहा है?”
“संत के हाथ में सत्ता है”—तो सेवा भी संतरी बन जाए?
मंत्रीजी ने एक और मोती निकाला—“संत के हाथ में बागडोर है, वो मंदिरों को दिव्य और भव्य बनाना चाहते हैं।”
अब सवाल ये उठता है—क्या भव्यता का अर्थ है पुरानी गलियों को तोड़कर कॉरिडोर खींचना?
क्या दिव्यता का मतलब है सेवायतों की पूजा-पद्धति पर सरकारी पहरा?
ब्रजवासियों ने तंज़ में कहा—“अब तो हर आरती पर शायद एक अफसर खड़ा हो, पूछेगा कि घंटी कितनी देर बजाई?”
Banke Bihari Temple:कॉरिडोर को जनता ने बताया ‘कोरोडोर’
कॉरिडोर का विरोध कर रहे स्थानीय लोग मंत्री जी के “मंत्रणा दर्शन” से ज़रा भी प्रभावित नहीं हुए।
एक बुज़ुर्ग बोले—“हम तो सोच रहे थे कि मंदिर दर्शन के लिए आए हैं, पर अब लग रहा है कि हमारी ज़मीनें ही तीर्थ बन जाएंगी।”
स्थानीय युवाओं ने ताना मारा—“कॉरिडोर नहीं कोरोडोर है, जो हमारी ज़िंदगी को संक्रमित कर रहा है।”
Banke Bihari Temple:संवाद, सहमति और संदेह का त्रिकोण
इस पूरे नाटक में मंत्रीजी मुस्कुरा रहे हैं, सेवायत चुपचाप नाराज़ हैं, और ब्रजवासी पूछ रहे हैं—“क्या अब मंदिरों का प्रशासन गन्ने के रस से चलेगा?”
4 जुलाई को अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा का अधिवेशन वृंदावन में होना है।
90 से ज्यादा तीर्थों के प्रतिनिधि आने वाले हैं।
वहीं तय होगा कि ये सरकार “सेवा की भाषा” समझती है या “सत्ता का आदेश” बोलती है।
तो, वृंदावन में जारी यह मसला एक तरह से ‘संवाद-राज’ जैसा हो गया है, जहाँ हर कोई बात करता है, लेकिन कोई बात बनी नहीं। मंत्री साहब कहते हैं सरकार और सेवायतों में कोई विवाद नहीं, पर स्थानीय लोग इसे ‘मंदिरों के अधिकारों पर हमला’ मानते हैं।