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Banke Bihari Corridor: जब सरकार की जिद, श्रद्धा की दीवार से टकराई
📍 लोकेशन-मथुरा
🎤संवाददाता-अमित शर्मा
ब्रज की धरती पर कुछ पक रहा है — Banke Bihari Corridor अब सिर्फ एक विकास परियोजना नहीं रहा, बल्कि आस्था और सत्ता के बीच की खींचतान बन चुका है। वृंदावन से उठी विरोध की लपटें अब नंदगांव होते हुए बरसाना तक पहुंच चुकी हैं। राधा रानी मंदिर में पुजारियों ने साफ कह दिया है — “गलियों की आत्मा बचाओ, न कि VIP का रास्ता बनाओ।”
बरसाना के श्री जी मंदिर में पुजारियों की मीटिंग हुई, जिसमें तय हुआ कि सेवायत और स्थानीय लोग वृंदावन में चल रहे विरोध प्रदर्शन में शरीक होंगे। बैनर, पोस्टर, और नारों के बीच एक बात साफ है — ब्रज के मंदिरों को ‘कॉरिडोराइज’ करना अब आसान नहीं।
Banke Bihari Corridor: कॉरिडोर नहीं, विरासत बचाओ आंदोलन!
बरसाना के पुजारी ललित बोले तो लहर फैल गई — “पहले VIP कल्चर खत्म करो, फिर कॉरिडोर की बात करो।” उनका तर्क यह है कि हर VIP को 10 गाड़ियों और पुलिस की कतार के साथ दर्शन की छूट चाहिए, तो फिर गलियों का क्या कसूर? यही कुंज गलियां तो वृंदावन की आत्मा हैं, जो भक्तों को बांके बिहारी जी तक जोड़ती हैं। अगर इन्हें तोड़ दिया गया, तो वृंदावन अपनी पहचान खो बैठेगा।
हिमांशु गोस्वामी ने बांके बिहारी मंदिर के मुख्य द्वार पर सौ से ज़्यादा दीप जलाकर विरोध किया और कहा — “CM योगी जी के सामने अधिकारियों ने जो अंधेरा फैला रखा है, उसे भगवान स्वयं ही दूर करें।”
इन नारों और दीयों के उजाले में एक सवाल अंधेरे से बाहर निकल आया है — क्या सरकार वाकई ब्रज की आत्मा को समझ रही है?
बात बनेगी कैसे, जब दोनों तरफ ज़िद ही ज़िद है?
एक तरफ सरकार है जो Banke Bihari Corridor को तीर्थाटन की क्रांति मान रही है, और दूसरी तरफ पुजारी हैं, जो इसे श्रद्धा की ताबूत बताते हैं। दोनों ही पक्ष अपने-अपने ‘धर्म’ पर अड़े हुए हैं — प्रशासन विकास का धर्म निभा रहा है और सेवायत आस्था का।
अब ज़रूरत है एक “बीच का रास्ता” निकालने की। ऐसा रास्ता जो ब्रज की गलियों को तो न छेड़े, पर तीर्थयात्रियों की सुविधा का भी समाधान दे। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि न सरकार झुकना चाहती है और न सेवायत मौन रहना चाहते हैं।
जब श्रद्धा और सत्ता भिड़े, तो कौन जीते?
ब्रज की जनता, पुजारी और सेवायत अब एक स्वर में पूछ रहे हैं — “क्या बांके बिहारी जी VIP संस्कृति से ऊपर नहीं? क्या विरासत का मूल्य सिर्फ कंक्रीट में मापा जाएगा?” कॉरिडोर की सोच अगर दिल्ली से आई है, तो विरासत की चेतना मथुरा से निकली है। और यह चेतना सिर्फ विरोध नहीं, एक आंदोलन बनती जा रही है।
क्या दीपों की ये रोशनी सरकार के गलियारे तक पहुंचेगी? या फिर हर दीया सरकारी योजनाओं की तेज़ हवाओं में बुझा दिया जाएगा?

 
         
         
         
         
        
मध्यम मार्ग अपनायें।