बांदा दुष्कर्म: 3 साल की बच्ची की मौत, ‘बेटी बचाओ’ का नारा खोखला, समाज कब जागेगा?
लोकेशन: बांदा/संवाददाता:-गुल मुहम्मद
Banda rape: वह सिर्फ तीन साल की थी। एक छोटी-सी फूल-सी बच्ची, जिसके लिए दुनिया खिलौनों, मां की गोद और पिता के प्यार तक सीमित थी। लेकिन बांदा के चिल्ला थाना क्षेत्र में एक हैवान ने उसकी मासूमियत को नोंच डाला। Banda rape की यह घटना हर उस इंसान के दिल को झकझोर देती है, जो इंसानियत में यकीन रखता है। एक तीन साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म की सनसनीखेज वारदात ने न सिर्फ बांदा को, बल्कि पूरे समाज को शर्मसार कर दिया। सात दिन तक जिंदगी और मौत से जूझने के बाद, वह मासूम हमेशा के लिए खामोश हो गई।
बांदा मेडिकल कॉलेज से कानपुर के हायर सेंटर रेफर की गई इस बच्ची ने सातवें दिन दम तोड़ दिया। उसका नन्हा शरीर हैवानियत की दर्दनाक कहानी बयां कर रहा था। पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पंचायतनामा भरकर पोस्टमार्टम के लिए कानपुर हायर सेंटर भेजा। लेकिन सवाल यह है—क्या पोस्टमार्टम उस दर्द को बयां कर पाएगा, जो उस मासूम ने सहा? क्या यह समाज कभी उस मां के आंसुओं का जवाब दे पाएगा, जिसने अपनी बेटी को खो दिया?
Banda rape : पुलिस की कार्रवाई, लेकिन इंसाफ अधूरा
बांदा दुष्कर्म की इस घटना में पुलिस ने त्वरित कार्रवाई की। चिल्ला थाना क्षेत्र में मंगलवार रात 9 बजे सूचना मिली कि एक तीन साल की बच्ची लापता है। पुलिस ने तुरंत मामला दर्ज कर तलाश शुरू की। संदिग्धों से पूछताछ के बाद आरोपी सुनील निषाद को मुठभेड़ में गिरफ्तार किया गया, जिसके पैर में गोली लगी। उसे इलाज के बाद जेल भेज दिया गया। बांदा के पुलिस अधीक्षक पलाश बंसल ने आश्वासन दिया कि जल्द चार्जशीट दाखिल कर सख्त सजा दिलाई जाएगी।
लेकिन क्या यह कार्रवाई उस मासूम को वापस ला सकती है? क्या जेल की सलाखें उस मां के दर्द को कम कर सकती हैं? बांदा दुष्कर्म ने एक बार फिर साबित किया कि हमारी व्यवस्था में इंसाफ देर से मिलता है, और कभी-कभी तो मिलता ही नहीं।
‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’: नारा या मजाक?
“बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ”—यह नारा हर गली-नुक्कड़ पर सुनाई देता है। लेकिन बांदा दुष्कर्म की यह घटना बताती है कि यह नारा कितना खोखला है। जब एक तीन साल की बच्ची अपने घर के पास सुरक्षित नहीं, तो बेटियों को पढ़ाने की बात कितनी दूर की कौड़ी है? सरकार ने 2015 में इस योजना की शुरुआत की थी, जिससे बेटियों को सम्मान और सुरक्षा मिले। लेकिन बांदा दुष्कर्म जैसे मामले साबित करते हैं कि नारे और योजनाएं सिर्फ कागजों तक सीमित हैं। यहां सवाल उठता है-
क्यों एक मासूम को जंगल में खून से लथपथ पाया गया?
क्यों ग्रामीणों को कैंडल मार्च निकालकर फांसी की मांग करनी पड़ी?
क्यों समाज और व्यवस्था बेटियों को बचाने में नाकाम है?
समाज में हैवानियत: वासना के भेड़िए कब तक?
बांदा दुष्कर्म की यह घटना अकेली नहीं है। उत्तर प्रदेश में 2025 में रेप के कई मामले सामने आए हैं, जो समाज की गंदी मानसिकता को उजागर करते हैं:
कानपुर (जून 2025): 5 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या की कोशिश, आरोपी फरार।
लखनऊ (जून 2025): ढाई साल की बच्ची से रेप, आरोपी दीपक वर्मा एनकाउंटर में ढेर।
बलरामपुर (जून 2025): 5 साल की बच्ची से दुष्कर्म, सपा नेताओं ने फांसी की मांग की।
जौनपुर (अप्रैल 2025): 5 साल की बच्ची से रेप, कोर्ट ने 26 दिन में सजा सुनाई।
ये मामले बताते हैं कि वासना के भेड़िए हर कोने में छिपे हैं। बांदा दुष्कर्म में एक तीन साल की बच्ची को निशाना बनाया गया, जो न तो अपनी बात कह सकती थी, न ही अपनी रक्षा कर सकती थी। आखिर क्यों समाज ऐसी मानसिकता को पनपने देता है? क्यों पड़ोस में रहने वाले लोग ही हैवान बन जाते हैं? क्यों हमारी बेटियां अपने घरों में भी सुरक्षित नहीं?
Banda rape :सवाल जो हर दिल में गूंज रहे हैं
बांदा दुष्कर्म ने कई सवाल खड़े किए हैं, जिनका जवाब न समाज के पास है, न व्यवस्था के पास:
क्यों एक तीन साल की बच्ची को ऐसी हैवानियत का शिकार होना पड़ा?
क्यों ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा सिर्फ दीवारों पर लिखा रह गया?
क्यों पुलिस की तत्परता के बावजूद मासूम की जान नहीं बच सकी?
क्यों समाज ऐसी घटनाओं पर चुप्पी साध लेता है?
क्यों वासना के भेड़ियों को ऐसी सजा नहीं मिलती, जो मिसाल बने?
ये सवाल सिर्फ बांदा दुष्कर्म तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे देश की लचर व्यवस्था पर चोट करते हैं।
लचर कानून और व्यवस्था: कब होगा बदलाव?
भारतीय कानून में 12 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ रेप के लिए सख्त सजा का प्रावधान है—आजीवन कारावास या मृत्युदंड। लेकिन बांदा दुष्कर्म जैसे मामलों में सजा की राह लंबी और जटिल क्यों है? NCRB के मुताबिक, रेप मामलों में सजा की दर बेहद कम है। जौनपुर में 26 दिन में सजा एक अपवाद है, लेकिन ज्यादातर मामले सालों तक लटके रहते हैं।
क्यों त्वरित सुनवाई हर मामले में नहीं होती?
क्यों पीड़ित परिवार को ही समाज और कानून की मार झेलनी पड़ती है?
क्यों बांदा दुष्कर्म की मासूम को इंसाफ से पहले मौत मिली?
Banda rape :समाज को जागने का वक्त
बांदा दुष्कर्म की यह मासूम बच्ची अब इस दुनिया में नहीं है। उसकी चीखें, उसका दर्द, और उसकी मां के आंसू हमें जगाने के लिए काफी हैं। यह सिर्फ पुलिस या कानून की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी है। हमें अपने बच्चों को सुरक्षित माहौल देना होगा। पड़ोसियों पर नजर रखनी होगी, बच्चों को जागरूक करना होगा, और सबसे जरूरी—इस मानसिकता को बदलना होगा, जो ऐसी घटनाओं को जन्म देती है।
मासूम की चीखें व्यर्थ नहीं जानी चाहिए
बांदा दुष्कर्म की यह तीन साल की बच्ची अब हमारी बेटी नहीं रही। लेकिन उसकी चीखें हमें चैन से सोने न दें। उसकी मां की पुकार हमें झकझोरती रहे। ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा तब तक खोखला रहेगा, जब तक हमारी बेटियां सुरक्षित नहीं होंगी। यह वक्त है कि समाज जागे, कानून सख्त हो, और वासना के भेड़ियों को ऐसी सजा मिले, जो दूसरों के लिए सबक बने। उस मासूम की आत्मा को शांति तभी मिलेगी, जब हम वादा करें—कोई और बेटी ऐसी हैवानियत का शिकार नहीं बनेगी।
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घासीराम निषाद
2 days ago
अत्यन्त दु:खद खबर…😥
ईश्वर दिवंगत आत्मा को शान्ति प्रदान करें…🙏💐
ॐ शान्ति ॐ
अत्यन्त दु:खद खबर…😥
ईश्वर दिवंगत आत्मा को शान्ति प्रदान करें…🙏💐
ॐ शान्ति ॐ