 
                  Banda News: पुलिस-प्रशासन की ऐसी लापरवाही देखी है क्या ?
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Banda News: उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में प्रशासनिक लचरता और दबंगों के प्रभाव ने एक आम नागरिक को इतना मजबूर कर दिया कि उसे न्याय की गुहार के लिए आमरण अनशन का रास्ता चुनना पड़ा. नरैनी तहसील की ग्राम पंचायत पुकारी के निवासी गणेश प्रसाद पुत्र शंकर लाल द्विवेदी पिछले तीन वर्षों से अपनी समस्या को लेकर अधिकारियों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उनकी फरियाद सुनने वाला कोई नहीं है. ये मामला न केवल प्रशासन की निष्क्रियता को उजागर करता है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में आम लोगों की बेबसी को भी सामने लाता है.

हज़ारों खर्च, नतीजा सिफर !
गणेश प्रसाद की शिकायत उनके पड़ोसी राजा उमलिया उर्फ रामबालक पुत्र काशी प्रसाद से जुड़ी है. गणेश का आरोप है कि रामबालक जानबूझकर अपने घर का गंदा पानी उनकी जगह पर बहा रहा है, जिससे उनके घर के आसपास गंदगी और कीचड़ का आलम रहता है. इससे न केवल उनकी दिनचर्या प्रभावित हो रही है, बल्कि बीमारियों का खतरा भी बना हुआ है. इस समस्या को लेकर गणेश पिछले तीन साल से स्थानीय प्रशासन और अधिकारियों के पास शिकायत कर रहे हैं. इस दौरान उनके हजारों रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन कोई समाधान नहीं मिला.

DM साहब की भी नहीं सुनते अधिकारी ?
बीते 23 जून 2025 को गणेश ने एक बार फिर बांदा के जिलाधिकारी (डीएम) को शिकायती पत्र सौंपा. इस पत्र के जवाब में डीएम ने नरैनी के सर्कल ऑफिसर (सीओ) और उप-जिलाधिकारी (एसडीएम) को सख्त निर्देश दिए कि स्थानीय थाना स्तर पर जांच कराकर कानून का पालन सुनिश्चित किया जाए और पीड़ित की समस्या का निस्तारण किया जाए. लेकिन इन निर्देशों का कोई असर नहीं हुआ. न तो कोई अधिकारी मौके पर पहुंचा और न ही कोई कार्रवाई हुई. हताश और निराश गणेश प्रसाद अब आमरण अनशन पर बैठ गए हैं, ताकि उनकी आवाज प्रशासन तक पहुंचे.
 
 
लापरवाही बेहिसाब, कौन देगा जवाब ?
ये घटना प्रशासनिक व्यवस्था पर कई सवाल खड़े करती है. आखिर क्यों एक आम नागरिक को अपनी छोटी-सी शिकायत के लिए इतने लंबे समय तक भटकना पड़ रहा है? डीएम के सख्त निर्देशों के बावजूद स्थानीय अधिकारी क्यों निष्क्रिय हैं? क्या दबंगों का प्रभाव इतना है कि प्रशासन उनके सामने लाचार हो जाता है? गणेश प्रसाद का अनशन न केवल उनकी व्यक्तिगत लड़ाई है, बल्कि ये उन तमाम लोगों की आवाज है जो प्रशासनिक उदासीनता और दबंगई का शिकार हैं.

आखिर कब होगा समाधान ?
अब सवाल ये है कि गणेश प्रसाद की ये लड़ाई कब तक चलेगी? क्या प्रशासन उनकी गुहार सुनेगा, या वो इस लचर सिस्टम के सामने हार मान लेंगे? उनके अनशन का स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर पड़ सकता है. ऐसे में जरूरी है कि प्रशासन तत्काल इस मामले में हस्तक्षेप करे और गणेश प्रसाद को न्याय दिलाए. साथ ही, ये घटना हमें ये सोचने पर मजबूर करती है कि जब तक प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार और जवाबदेही नहीं आएगी, तब तक आम लोग अपनी छोटी-छोटी समस्याओं के लिए यूं ही भटकते रहेंगे.

 
         
         
         
        