Banda Illegal Mining
Banda Illegal Mining:उत्तर प्रदेश का बांदा जिला प्रकृति की अनमोल खनन संपदा से भरपूर है, लेकिन यह संपदा अब लुटेरों के लिए स्वर्ण खदान बन चुकी है। अवैध खनन(Banda illegal mining) का काला कारोबार यहां दिन-दहाड़े फल-फूल रहा है, और इस लूट की कमान संभाल रहे हैं खनिज अधिकारी, जो अपनी जिम्मेदारी को कुर्सी तोड़ने और जेब भरने तक सीमित रखते हैं। बांदा की नदियों का सीना छलनी हो रहा है, और खनिज अधिकारी इस बर्बरता पर मौन साधे बैठे हैं। यह सवाल उठता है कि जब अवैध खनन की तस्वीरें सामने हैं, तो प्रशासन की चुप्पी और निष्क्रियता क्या भ्रष्टाचार का पर्याय नहीं है?
Banda Illegal Mining: जब शासन सो जाए, तो अधिकारी लूट का संवैधानिक ठेका बना लेते हैं
बांदा। संवाददाता-दीपक पांडेय।20 जून 2025।
Banda Illegal Mining -बांदा में अब रेत की चोरी नहीं, रेत की लाश पर तंत्र का नाच है।
बांदा में नदियां अब पानी नहीं बहातीं — वहां बहता है सिस्टम का मवाद, और खनिज विभाग का दलालीतंत्र।
मटौंध थाने के उजरेहटा और अक्षरौण गांव में जो हो रहा है, वो “खनन” नहीं, नदी की सामूहिक हत्या है।
और इस हत्या का मास्टरमाइंड कोई नकाबपोश नहीं,
खुद खनिज अधिकारी हैं — जो कुर्सी पर बैठकर लूट के स्पॉट का ‘Live Telecast’ देखते हैं।
Banda Illegal Mining: एक नंबर की आड़ में सौ नंबर का घोटाला!
सरकारी भाषा में इसे कहते हैं – “एक नंबर की खदान”
हकीकत में इसका मतलब है —
“सरकारी लूट का कानूनी जामा पहनाकर नदी को नंगा किया जा रहा है।”
सुबह से शाम तक ट्रैक्टर दौड़ते हैं
रात को ओवरलोड मशीनें गरजती हैं
और अधिकारी?
वो सरकारी कुर्सी पर बैठकर रेट तय करते हैं – प्रति ट्रैक्टर, प्रति ट्रॉली, प्रति चुप्पी!
यहाँ कार्रवाई नहीं होती, यहाँ सौदे होते हैं!
Banda Illegal Mining: डीएम ने पकड़ा ट्रक, तो अधिकारी की कुर्सी क्यों नहीं टूटी?
डीएम भूरेड़ी खदान में छापा मारते हैं —
20 ओवरलोड ट्रक, 3 अवैध मशीनें ज़ब्त!
वाह!
लेकिन सवाल ये है — ये सब खनिज अधिकारी की नाक के नीचे हो रहा था, फिर वो नाक अब तक सलामत क्यों है?
जब पूरे जिले में अवैध खनन 24×7 चल रहा है,
तो खनन अधिकारी आखिर किस गुफा में समाधि लगाए बैठे हैं?
या फिर —
वो खुद ही इस रेत-सिंडिकेट के ‘मैनेजिंग डायरेक्टर’ हैं?
पुलिस की छाया में ट्रैक्टरों की मौत दौड़!
लोकतंत्र गांव, पथरी, चटगन — सब जगह एक ही दृश्य:
ट्रैक्टर रफ्तार से दौड़ते हैं, और पुलिस आराम से मोबाइल पर इंस्टा स्क्रॉल करती है।
रात के अंधेरे में ट्रैक्टर नहीं चलते,
ये लूट की शवयात्रा होती है — जिसमें आगे पुलिस चलती है, पीछे ट्रॉली भरकर रेत।
सूत्र कहते हैं — “पुलिस की मिलीभगत है।”
जनता पूछती है — “तो फिर खनिज अधिकारी का काम क्या है?”
सरकार खामोश है — जैसे पूरा तंत्र ‘रेत में सिर गाड़े ऊंट’ बन चुका है।
आप खनिज अधिकारी हैं या रेत माफिया के CEO?
हर बार एक ही बयान —
“सूचना मिली है, जांच की जाएगी।”
कितनी बार यही झूठ दोहराएंगे रंजन जी?
या फिर अब ये लाइन ट्रैक्टरों पर पेंट करवा दी जाए?
आपकी चुप्पी अब लापरवाही नहीं,
सीधी हिस्सेदारी है।
आप जिम्मेदार नहीं, मुख्य आरोपी हैं।
बांदा की रेत चीख रही है —
“हमें रेत माफिया से नहीं, खनिज अधिकारी से डर लगता है।”
योगी सरकार की आँखों में धूल झोंकते अधिकारी कब पकड़ाएंगे?
योगी आदित्यनाथ जिस पारदर्शिता की बात करते हैं,
बांदा उसका कब्रगाह बन चुका है।
क्या योगी जी की आँखें इसे नहीं देख पा रही हैं?
या फिर बांदा जैसे जिलों में उन्हें कुछ और तस्वीर दिखाई जा रही है ?
जब उजरेहटा में रेत से लाशें निकलेंगी,
तब क्या शासन जागेगा?
या फिर तब तक
खनन अधिकारी “रेत पर राज” और “जनता पर तंज” करते रहेंगे?
