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Banda Corruption Exposed : योगी के जीरो टॉलरेंस को चुनौती – बांदा में भ्रष्टाचार का सनसनीखेज खुलासा
Banda News :
बांदा, जहां कभी बुंदेलों की तलवारें चमकती थीं, अब वहां “सजातीय पार्टनरशिप” की चमक ने प्रशासन के कपड़े उतार दिए हैं। Banda Bureaucracy Scam का ये स्क्रिप्ट तो किसी फिल्म से कम नहीं—CM योगी ने भेजा था अफसर भ्रष्टाचार खत्म करने, और वो खुद रिश्वत की थाली में पूड़ी सेंकने बैठ गए।
यूपी के बांदा में ग्रीनलैंड नाम की ज़मीन पर अवैध रूप से खड़ा किया गया शिव कृष्ण मल्टीस्पेशलिस्ट अस्पताल गिराने भेजे गए ADM राजेश वर्मा, अब उसी अस्पताल की 30% हिस्सेदारी में शामिल पाए गए हैं! और कहते हैं कि रिश्ता सजातीय है!
पहले जनता ने सोचा था—बुलडोज़र बाबा के सिपाही आए हैं, कुछ सफाई होगी। पर निकले तो सफाई में ही सेटिंगबाज़! अस्पताल गिरने से पहले ही जेडीयू नेत्री शालिनी पटेल ने जब अनशन किया और “सजातीय लाभ” का आरोप लगाया, तो कई अफसरों की तस्वीरें खुद सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं। एक फोटो में तो ADM साहब, अस्पताल मालिक अरुणेश पटेल और SDM रजत वर्मा के साथ बर्थडे केक काटते दिखे—जैसे हॉस्पिटल नहीं, किसी रिश्तेदार की कोठी में बैठे हों।
जब साजिश पर्दे से बाहर आई:
Banda Corruption Exposed : कमिश्नर की जांच में जो दस्तावेज़ निकले वो तो सीधे अफसरशाही के चुल्लू भर पानी में डूब मरने लायक थे। अस्पताल की डायग्नोस्टिक यूनिट में राजेश वर्मा की पत्नी सोनी वर्मा की 30% हिस्सेदारी, और अरुणेश पटेल की पत्नी डॉ. संगीता की 50% हिस्सेदारी!
बाकी 10-10% में दो और नाम– ताकि कागज़ी साझेदारी को थोड़ा ‘डाइवर्सिफाई’ किया जा सके। लेकिन “फोकस कीवर्ड” में जब Banda Bureaucracy Scam आता है, तो जनता समझ जाती है—ये महज घोटाला नहीं, घोटालों का पावर-पैक कम्बो ऑफर है।
Banda : पार्टनरशिप डीड का ‘बम’ और 42 लाख का खेल
Banda Corruption Exposed :सजातीय मामला है, जरा चुप रहो – वरना ट्रांसफर तुम्हारा हो जाएगा!
जब खबरीलाल.डिजिटल की टीम ने सोचा कि चलो, शालिनी पटेल से बात की जाए — उम्मीद थी कि अब वो सरकार की आंखों पर बंधी भ्रष्टाचार की पट्टी और कानों में ठुंसी रिश्तेदारी की रूई उखाड़ फेंकेंगी। लेकिन जेडीयू नेत्री ने बयान दिया —
“सजातीय मामला है, थोड़ा समझा करो…”
अब गुरू, जब नेता भी सजातीय समीकरणों से टकराने में घबराएं, तो समझ लीजिए कि सत्य की पूछताछ से पहले जाति पूछी जाती है।
हमें समझ नहीं आया कि ये लोकतंत्र है या “जाति-तंत्र!”
सो, पहुंच गए सीधे किसान नेता प्रमोद आज़ाद के पास — क्योंकि अब क्रांति अगर कहीं बची है, तो गांव के चौपाल में ही बची है।बांदा का प्रशासन — अफसर आना नहीं चाहते, और जो आ जाते हैं, वो जाना नहीं चाहते!
प्रमोद आज़ाद बोले — “देखिए साहब, बांदा अब प्रशासनिक पोस्टिंग नहीं, पारिवारिक नियुक्ति केंद्र बन चुका है।”
उन्होंने कहा —“यहां अफसर न पोस्टिंग से आते हैं, न ट्रांसफर से जाते हैं — यहां तो सब कुछ सेटिंग से होता है।
और जब सेटिंग हो जाती है, तो अफसर कहते हैं — ‘बांदा छोड़ दूं? मर जाऊंगा!’”
ADM राजेश वर्मा तीन साल से बांदा में हैं, प्रमोशन भी हुआ, पोस्टिंग भी मिली — लेकिन “मन नहीं लगा” तो लौट आए यहीं।
कहते हैं कि जिस ज़िले में अरुणेश पटेल जैसे सजातीय सखा मिल जाएं, वहां कौन दिल्ली की ठंडी हवा सूंघने जाएगा?
जब अफसर का रिश्ता चाय नहीं, बिज़नेस पार्टनरशिप से तय होता है!
प्रमोद आज़ाद ने साफ कहा — “राजेश वर्मा और अरुणेश पटेल की वायरल तस्वीरें देखकर लगा, ये रिश्ता सिर्फ जातीय नहीं, शेयर होल्डिंग वाला भी है!”
और अब जब पार्टनरशिप डीड भी निकल आई है, जिसमें वर्मा साहब की पत्नी 30% की भागीदार हैं —
तो सवाल उठता है कि ये अस्पताल था या ‘ब्यूरोक्रेसी बिजनेस लिमिटेड’?
आजाद बोले —
“ऐसे सजातीय गठजोड़ समाज के लिए सीधी बीमारी हैं। इलाज ये नहीं कर रहे, बल्कि बीमारी के लिए स्टॉकिस्ट बने बैठे हैं।”
और अंत में उन्होंने वही वाक्य कहा जो अब बांदा की जनता का अघोषित राष्ट्रीय गीत बन चुका है —
“इस सरकार में न मोर नाचेगा, न बारिश होगी… बस रिश्ता निभाया जाएगा।”
बुलडोजर बाबा का डर और सजातीय सत्ता का खेल – विपक्ष भी हक्का-बक्का!
फिर हमने सोचा, चलो विपक्ष से ही पूछ लेते हैं – “ये रिश्ता क्या कहलाता है?”
खबरीलाल डिजिटल की टीम पहुंची कांग्रेस जिलाध्यक्ष राजेश दीक्षित के पास।
पहले तो वो बोले नहीं… एक बार बुलडोज़र बाबा की मूंछ और जेल की दीवारें आंखों के सामने घूम गईं — और जैसे कोई पुरानी साज़िश वाली फिल्म की टीज़र देख ली हो, थोड़े सहम गए।
लेकिन फिर विपक्षी DNA जागा, और राजनीतिक सजातीय रिश्ते का चीरहरण शुरू हुआ।
राजेश दीक्षित ने कहा –
“ये मामला सिर्फ रिश्तेदारी का नहीं, सत्ता की सजातीय गठजोड़ वाली साझेदारी का है। ये सीधा सीधा बुलडोज़र बाबा की जीरो टॉलरेंस नीति को जूता दिखाने जैसा है।”
अब सवाल ये है कि जब सरकार के ही अफसर सजातीय खेल में 30% की हिस्सेदारी लेकर अवैध अस्पताल चला रहे हैं –
तो क्या अब जीरो टॉलरेंस की जगह ज़ीरो एक्सन नीति चल रही है?
Banda : अवैध अस्पताल और पार्टनरशिप डीड की कहानी
Banda Corruption Exposed :
42 लाख की ज़मीन और अफसरशाही का ‘सजातीय भू-संस्कार’!
अब ज़रा सोचिए गुरू – क्या कोई 30% की पार्टनरशिप सिर्फ हॉस्पिटल की टाइल्स और फर्नीचर शिफ्ट कराने के एवज में मिलती है?
हमने भी यही पूछा और फिर जुट गए खोजबीन में।
सामने आया वो ‘42 लाख’ का चुपचाप खेल, जिसमें हरा-भरा ग्रीनलैंड एक ही झटके में कमर्शियल बंगला प्लॉट बन गया!
और जिस चेक पर साइन थे, वो किसी साधारण बाबू के नहीं – ‘नमामि गंगे’ के एडीएम और नव-नियुक्त BDA सचिव मदन मोहन वर्मा के थे।
जी हां! वही वर्मा जी जिन्हें हाल ही में संदीप केला से चार्ज छीनकर बीडीए का नया रिमोट कंट्रोल सौंपा गया है।
अब सवाल उठता है –
क्या गंगा को स्वच्छ करने के नाम पर बांदा में ‘भू-माफिया गंगा स्नान’ कराया जा रहा है?
42 लाख जमा कर, ग्रीनलैंड को रातों-रात कमर्शियल बनवाने का फायदा किसे मिला?
बिल्डिंग वैध नहीं थी, अस्पताल का नक्शा पास नहीं था, फिर भी ज़मीन का ‘धार्मिक कमर्शियल ट्रांसफॉर्मेशन’ कैसे हो गया?
जब सेटिंग ही नीति हो जाए, तो सजातीय रिश्ता ही शासन बन जाता है!
इस खेल में एक बात कॉमन है – सरनेम: वर्मा, काम: गर्मा!
राजेश वर्मा, रजत वर्मा, और अब मदन मोहन वर्मा – हर कुर्सी पर सजातीय सहमति का अघोषित संविधान बैठा हुआ है।
मदन मोहन वर्मा की भूमिका को लेकर अब सवाल उठने लगे हैं –
क्या चार्ज छीनने और चुपचाप जमीन कमर्शियल कराने की ‘वर्मा नीति’ भी कोई नई सरकारी योजना है?
ये सब सुनकर अब तो जनता भी कह रही है –
“नमामि गंगे नहीं गुरू, अब तो नमामी भ्रष्टाचार अभियान चल रहा है।”
कमिश्नर साहब बोले – जांच हो रही है, और हम बोले – चूरन कौन सी दुकान से लिया?
हमें पहले से पता था गुरू – जब भी अफसरशाही पर सवाल उठाओ, जवाब में ‘जांच की चूरन’ की पुड़िया ज़रूर थमाई जाएगी।
और हुआ भी वही!
चित्रकूट धाम मंडल के कमिश्नर अजीत कुमार से हमने पूछा – कि जब ADM राजेश वर्मा की पत्नी की 30% हिस्सेदारी की डीड सामने आ चुकी है, अस्पताल चल रहा है, अफसर फोटो में बर्थडे पार्टी कर रहे हैं,
तो अब और क्या चाहिए – कांड लाइव हो रहा है!
लेकिन कमिश्नर साहब ने वही पुरानी जांच कथा दोहरा दी।
“पार्टनरशिप डीड सामने आई है, जांच चल रही है… पूरी रिपोर्ट आने तक इंतजार करें…”
अब जनता पूछ रही है –
“रिश्तेदारी पहले उजागर हो गई, लाभ पहले बंट गया, जमीन पहले कमर्शियल हो गई… अब कौन-सी जांच बाकी है – कैटरिंग बिल का ऑडिट?”
कमिश्नर साहब की आवाज़ में वही साउंड ट्रैक था जो हर स्कैम के बाद बजता है –
“हम गंभीर हैं… हम देख रहे हैं… हम जाँच कर रहे हैं…”
और जवाब में जनता बोली –
“हम पिट रहे हैं… हम लूट रहे हैं… हम इंतजार कर रहे हैं!”
Banda Corruption Exposed : इस करप्शन पर चलेगा योगी का डंडा?
Banda News :
जांच होगी या जलेबी बनेगी? जनता पूछ रही है, सरकार चुप है!
बांदा की गलियों में अब एक ही चर्चा है – “पार्टनरशिप की डीड असली है या सिर्फ फर्जीवाड़े की स्क्रिप्ट?”
स्थानीय नेता हों या जागरूक नागरिक — सबकी आंखों में आक्रोश है, पर होठों पर शक भी।
क्योंकि बांदा में सब जानते हैं – यहां भ्रष्टाचार की फाइलें नहीं चलतीं, सेटिंग की सीढ़ियां चढ़ाई जाती हैं।
लोगों को डर है कि ये मामला भी जांच के नाम पर रुमाल में बांध कर ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा।
कभी डीड को फर्जी बताकर, कभी जांच को लंबा बताकर, तो कभी अफसर को ट्रांसफर करके —
कहानी वही, स्क्रिप्ट वही, नायक वही, विलेन वही — बस जनता हर बार मूर्ख।
यह पूरा मामला बांदा में अफसरशाही की ‘सजातीय सेटिंग’ संस्कृति का आईना है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की Zero Tolerance नीति यहां Ground Zero पर Hero Tolerance में बदल चुकी है।
न बुलडोज़र चला, न इस्तीफ़ा आया, न ज़मीन खाली हुई – हां, पार्टी पक्की चल रही है।
अब सवाल ये है —
“क्या इस बार भी जांच की जलेबी में ये मामला लपेटकर खा लिया जाएगा?”
या कोई ईमानदार हाथ उठेगा, जो इस घोटाले की गर्दन पकड़ेगा?”
जनता पूछ रही है,
“ये रिश्ता क्या कहलाता है?”,
और सरकार शायद अब भी पार्टनरशिप की डेट एक्सपायरी देख रही है!
Written by khabarilal.digital Desk
संवाददाता: दीपक पांडेय
लोकेशन: बांदा, यूपी
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