
Baghpat solution day
Baghpat solution day:जनता उम्मीद लेकर पहुंची थी समाधान दिवस में, लेकिन अफसर मोबाइल में खोए रहे; समाधान की जगह मिला उपेक्षा का स्वाद।
संवाददाता-राहुल चौहान
बागपत का ‘Solution Day’ बना सरकारी मज़ाक!
Baghpat solution day की हकीकत तब उजागर हुई जब आमजन अपनी शिकायतें लेकर बड़ौत तहसील पहुंचे, लेकिन सामने बैठी अफसरशाही अपनी ही मस्ती में खोई नजर आई। जिलाधिकारी अस्मिता लाल की मौजूदगी में आयोजित इस समाधान दिवस का दृश्य ऐसा था मानो कोई सोशल मीडिया महोत्सव चल रहा हो—कोई व्हाट्सएप पर चैट कर रहा था, कोई रील्स देख रहा था, तो कोई यूट्यूब पर वीडियो में मग्न था। जिस मंच को लोगों ने अपनी आखिरी उम्मीद समझकर चुना, वहां उन्हें सिर्फ उपेक्षा, बेरुखी और अफसरों की असंवेदनशीलता मिली। Baghpat solution day में जो हुआ, उसने इस सरकारी पहल की गंभीरता पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है।
Instagram देख रहे थे अफसर, जनता को देखना गवारा न किया:Baghpat solution day
जब जनता अपनी समस्याएं लेकर मंच के सामने पहुंची, तब कोई अफसर व्हाट्सएप पर चैटिंग में व्यस्त था, कोई इंस्टाग्राम पर रील्स देख रहा था, तो किसी का ध्यान यूट्यूब के वीडियो में गुम था। ये solution day था या entertainment day? यही सवाल वहां मौजूद लोगों की आंखों में तैरता रहा। सबसे शर्मनाक बात तो ये रही कि इतने वरिष्ठ अधिकारी—डीएम, एसडीएम, तहसीलदार—सब मौजूद थे, लेकिन किसी ने अपने मोबाइल में खोए साथियों को टोकने की जहमत नहीं उठाई।

solution day बना ‘औपचारिकता डे’ – जनता को मिला दिखावा
सरकार के करोड़ों खर्च करने के बावजूद जब solution day जैसे मंच जनता के लिए कोई समाधान न बन सकें, तो साफ जाहिर है कि अफसरशाही ने इस व्यवस्था को महज़ औपचारिकता बना दिया है। जनता की आखिरी उम्मीद भी अगर उपेक्षा की भेंट चढ़ जाए, तो ये सवाल सिर्फ बागपत के नहीं, पूरे सिस्टम के बन जाते हैं।
मुख्यमंत्री की चेतावनी बेअसर, अधिकारी बेलगाम
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद कई बार मंचों से कह चुके हैं कि जनता की सुनवाई में लापरवाही बर्दाश्त नहीं होगी। लेकिन बड़ौत का ये solution day दिखा रहा है कि चेतावनियों का ज़मीनी स्तर पर कोई असर नहीं। क्या मुख्यमंत्री की बातों को अफसर हल्के में ले रहे हैं? या फिर उन्हें मालूम है कि कोई कार्रवाई नहीं होगी?
प्रशासनिक लापरवाही या मौन स्वीकृति?Baghpat solution day
डीएम अस्मिता लाल की मौजूदगी में यह सब कुछ हुआ—और उन्होंने कुछ नहीं कहा। इससे या तो यह मान लिया जाए कि यह लापरवाही “मौन स्वीकृति” पा चुकी है, या फिर अधिकारी खुद भी इस उपेक्षा को गंभीर नहीं मानते। सवाल उठता है कि क्या ऐसी कार्यशैली से solution day जैसे कार्यक्रमों का कोई औचित्य रह जाता है?
अब जनता नहीं चुप बैठेगी – Accountability चाहिए!Baghpat solution day
जनता ने अब तय कर लिया है कि केवल “समाधान दिवस” के बैनर से उन्हें बहलाया नहीं जा सकता। जब तक solution day सचमुच समाधान देने वाला दिन नहीं बनता, तब तक जनता सवाल पूछेगी—और जवाब भी मांगेगी। डीएम अस्मिता लाल पर अब ज़िम्मेदारी है कि वो सिर्फ बैठक में मौजूद न रहें, बल्कि इस तरह की लापरवाही पर कड़ी कार्रवाई भी करें।
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