
Male Commission को लेकर मीनाक्षी भराला का विवादित बयान
बागपत में महिला आयोग की सदस्य मीनाक्षी भराला ने कहा, “पुरुष ही करते हैं ज्यादातर अपराध, इसलिए Male Commission की मांग बेमतलब है।”
संवाददाता:राहुल चौहान।लोकेशन:बागपत
बागपत में इस बार गर्मी बढ़ने का कारण सूर्य देव नहीं बल्कि एक बयान है, वो बयान जिसे सुनकर आपके भी होश गुम हो जाएंगे। Male Commission यानी “पुरुष आयोग” की मांग पर जब देशभर में बहस गरमा रही थी, उसी समय उत्तर प्रदेश महिला आयोग की सदस्य मीनाक्षी भराला ने माइक पर आकर ऐसा झन्नाटेदार बयान ठोका कि मर्दों के होश ही उड़ गए।
मीनाक्षी भराला ने सोनम रघुवंशी केस पर बोलते हुए कहा, “पुरुष आयोग की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि अपराध करते तो पुरुष ही हैं।” अब ये बयान सुनकर बागपत की जनता सोच में है – क्या अब से हर मर्द को सुबह उठकर अपराधी मान लिया जाएगा?
“Male Commission” की मांग पर बवाल क्यों?
देश के कई हिस्सों में जब पुरुष अधिकारों को लेकर सवाल उठ रहे थे, तो मीनाक्षी जी ने अपने बयान से उन्हें दो इंच और नीचे धकेल दिया।
उनका कहना था – “दो-चार मामलों से पुरुष दहशत में हैं? ज़रा आंकड़े देखिए। 90% अपराध पुरुष करते हैं। तो आयोग किसके लिए चाहिए?”
अब भाई, यही तर्क अगर कोई पुरुष किसी महिला के लिए दे देता तो महिला आयोग की मीटिंग नहीं, हंगामा हो जाता।
यहां बागपत की गलियों में अब चर्चे यही हैं कि क्या अगला कदम यह होगा कि हर पुरुष को सुबह-सुबह थाना जाकर “गुनाह नहीं किया आज” का सर्टिफिकेट दिखाना पड़ेगा?
मीडिया पर भी फूटा ग़ुस्सा
महिला आयोग की इस फायरब्रांड सदस्य ने मीडिया को भी लपेटे में ले लिया।
कहा गया – “मीडिया को सोनम और मुस्कान के केस को हाईलाइट करना बंद करना चाहिए। इससे देश की महिलाओं की छवि खराब हो रही है।”
वाह! यानी मुद्दे से ज्यादा उसे दिखाना बुरा है?
मतलब चोरी हुई हो तो चिल्लाना मत, वरना मोहल्ले की इज्जत चली जाएगी?
बागपत की जनता बोले – “हम भी इंसान हैं”
बागपत के कई सामाजिक संगठनों ने इस बयान की आलोचना की है। उनका कहना है कि Male Commission की मांग इसलिए उठ रही है क्योंकि पुरुष भी फर्जी मुकदमों और चरित्र हनन का शिकार हो रहे हैं।
एक युवक ने चुटीले अंदाज में कहा, “अब तो लगता है दहेज नहीं, बयानबाज़ी से ही शादी टूटेगी!”
एक और बुज़ुर्ग बोले – “बेटियों के लिए बेटी बचाओ योजना है, बेटों के लिए ‘बयान बचाओ योजना’ बननी चाहिए!”
क्या “Male Commission” वाकई बेमतलब है?
अगर यही लॉजिक है कि “ज्यादातर अपराध पुरुष करते हैं इसलिए उन्हें कोई मंच न मिले”, तो फिर लोकसभा में भी कोई पुरुष सांसद क्यों हों?
या फिर महिला आयोग की ज़रूरत भी ना होती अगर सिर्फ 2% महिलाओं पर ही अत्याचार होते?
कहानी सीधी है – हक़ और ज़िम्मेदारी दोनों को बराबरी से तौला जाए, तभी न्याय टिकता है।
वरना ये “बयान शास्त्र” महिलाओं को भी नहीं बचा पाएगा जब पलटवार शुरू होंगे।
बागपत में Male Commission पर दिए गए बयान से एक बात तो साफ है – अब देश सिर्फ कानून से नहीं, बयानों से भी चलने लगा है।
पर सवाल वही पुराना है – क्या मर्द होना अब गुनाह है?