Pakistan की नई रणनीति कितनी कारगर होगी समझिए
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पाकिस्तान (Pakistan) एक बार फिर भारत के खिलाफ कूटनीतिक और सामरिक मोर्चा खोलने की कोशिश में लगा है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में मात खाने के बाद अब वो नाटो (NATO) की तर्ज पर एक नया “इस्लामिक सैन्य गठबंधन” खड़ा करने की कोशिश कर रहा है। इसका मकसद है मुस्लिम देशों को एक मंच पर लाकर भारत के खिलाफ रणनीतिक घेराबंदी करना। इस प्रयास को पाकिस्तान की लंबे समय से चली आ रही महत्वाकांक्षा—इस्लामी दुनिया का नेतृत्व करने की चाह—से जोड़कर देखा जा रहा है।

Pakistan की नई पहल: सैन्य गठबंधन का सपना
हाल ही में पाकिस्तान के उप-प्रधानमंत्री इशाक डार ने दावा किया कि कई इस्लामी देश सऊदी-पाकिस्तान रक्षा समझौते में रुचि दिखा रहे हैं। उनका कहना है कि अगर अधिक देश इस समझौते में शामिल होते हैं, तो ये नाटो जैसा सैन्य गठबंधन बन सकता है।

ये बयान ऐसे समय में आया है जब पाकिस्तान ने सऊदी अरब के साथ एक रणनीतिक रक्षा समझौता किया है, जिसमें ये तय किया गया है कि किसी एक देश पर हमला होने की स्थिति में दोनों देश उसे अपने खिलाफ हमला मानेंगे। इस समझौते पर ऐसे समय हस्ताक्षर किए गए जब इजराइल द्वारा कतर पर हमले की आशंका उभर रही थी।
भारत के लिए सुरक्षा चिंता क्यों?
अगर पाकिस्तान ऐसा कोई गठबंधन खड़ा करने में सफल होता है, तो भारत के लिए एक नई सुरक्षा चुनौती खड़ी हो सकती है।
- ये एक बहुपक्षीय मंच बन सकता है जहां पाकिस्तान भारत विरोधी एजेंडा को अंतरराष्ट्रीय समर्थन के साथ आगे बढ़ा सकता है।
- ऐसे संगठन के गठन से पाकिस्तान को कश्मीर जैसे मुद्दों पर वैश्विक मुस्लिम समर्थन हासिल करने का एक और प्लेटफॉर्म मिल सकता है।
क्या वास्तव में संभव है “इस्लामिक NATO”?
हालांकि पाकिस्तान की ये महत्वाकांक्षा सुनने में बड़ी लगती है, लेकिन इसकी राह आसान नहीं है।
- भीतरी मतभेद: मुस्लिम देशों के आपसी संबंधों में गंभीर मतभेद हैं—जैसे सऊदी बनाम ईरान, कतर बनाम UAE, तुर्की बनाम मिस्र।
- भरोसे की कमी: अरब देशों में ईरान को लेकर गहरी आशंकाएं हैं, जिससे किसी भी “इस्लामिक सैन्य गठबंधन” की नींव कमजोर पड़ सकती है।
- पहले भी हुई असफलताएं: इस्लामिक नाटो जैसे विचार दशकों से उठते रहे हैं, लेकिन हर बार ये सिर्फ चर्चा तक ही सीमित रह जाते हैं।
अमेरिका से मोहभंग और नई उम्मीदें
हाल के वर्षों में पश्चिम एशिया में अमेरिकी प्रभाव कमजोर पड़ा है। विशेषकर जब वाशिंगटन कतर पर मिसाइल हमले को रोकने में असफल रहा, तब कई अरब देश अमेरिका पर अपनी सुरक्षा के लिए पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहते। यही कारण है कि अब वे “स्थानीय विकल्पों” की तलाश में हैं—और पाकिस्तान, एकमात्र मुस्लिम परमाणु शक्ति होने के नाते, उन्हें विकल्प नजर आ रहा है।

कितना असरदार होगा पाकिस्तान का ये कदम?
पाकिस्तान की ये पहल एक रणनीतिक चाल हो सकती है, लेकिन ये कितनी दूर तक जाएगी, ये कई देशों की अंदरूनी राजनीति, आपसी संबंधों और अंतरराष्ट्रीय समीकरणों पर निर्भर करता है। भारत को इस स्थिति का गंभीरता से मूल्यांकन करते हुए अपने राजनयिक और रक्षा तैयारियों को और मजबूत करना होगा।
कुल मिलाकर, ये एक और साजिश है, लेकिन इसकी सफलता तय नहीं है। भारत को सतर्क जरूर रहना होगा, पर घबराने की जरूरत नहीं है।

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