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Andhvishwas: खेलते-खेलते मौत से सामना
Andhvishwas ने संभल के एक घर से हंसती-खेलती मासूमियत को छीन लिया। ये कहानी है खजरा ख़ाकम गांव के 10 साल के अंकित की, जो गांव के ही निजी स्कूल में तीसरी कक्षा में पढ़ता था। मंगलवार शाम करीब 6:30 बजे वो अपने घर में ही खेल रहा था। खेलते-खेलते उसने एक पुरानी दराज में हाथ डाल दिया। बस, यहीं से शुरू हुआ मौत का खेल — किसी जहरीले कीड़े ने उसे काट लिया। बच्चे ने जब हाथ में जलन और दर्द की शिकायत की तो मां को बताया। परिजन घबरा गए लेकिन सही इलाज की बजाय Andhvishwas की तरफ भाग पड़े।
ओझा के पास गई मासूम की आखिरी उम्मीद
Andhvishwas के चक्कर में परिजन अंकित को अस्पताल नहीं ले गए। बजाए इसके, वो बच्चे को झाड़-फूंक कराने गांव के ही किसी ओझा के पास ले गए। ओझा ने भी देख लिया कि हालत गंभीर है। उसने खुद सलाह दी कि बच्चे को अस्पताल ले जाओ — लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। ज़हर शरीर में फैल चुका था। परिजन भागे-भागे बहजोई सीएचसी पहुंचे, लेकिन डॉक्टरों के मुताबिक अगर वक्त पर एंटी-वेनम और सही इलाज मिल जाता तो मासूम की जान बच सकती थी।
डॉक्टर ने दी चेतावनी
सीएचसी प्रभारी डॉ. सचिन वर्मा ने साफ कहा कि अगर बच्चे को सही समय पर अस्पताल लाया गया होता तो ज़हर का असर कम किया जा सकता था। परिजन पहले झाड़-फूंक में वक्त गंवाते रहे — और यही Andhvishwas मासूम की जान ले गया। मौत के बाद भी परिजन पीएम कराने को तैयार नहीं हुए और अंकित का शव सीधे घर ले गए। मासूम की आंखों में स्कूल के सपने थे, खेलकूद था — सब खत्म हो गया, सिर्फ अंधविश्वास के कारण।
Andhvishwas: कब तक मारता रहेगा?
Andhvishwas जैसी कुप्रथा सिर्फ गांवों तक सीमित नहीं — आज भी लोग सांप के काटने से लेकर बुखार तक के लिए ओझा-सोखा के पास दौड़ जाते हैं। मेडिकल साइंस से दूर भागकर हम हर साल हजारों बच्चों की जान खो देते हैं। अंकित जैसे मासूम अगर सही वक्त पर सही इलाज पाते तो आज जिंदा होते। सवाल यही है — कब तक Andhvishwas हमारे बच्चों की कब्र खोदेगा?
Andhvishwas: अब भी नहीं चेते तो?
अब वक्त है कि Andhvishwas के इस अंधे कुएं से बाहर निकला जाए। सरकार और प्रशासन को गांव-गांव जाकर जागरूकता फैलानी होगी। स्कूलों में बच्चों को भी बताना होगा कि सांप या जहरीले कीड़े के काटने पर फौरन अस्पताल जाना ही एकमात्र इलाज है। झाड़-फूंक सिर्फ मौत की तरफ धकेलता है, जिंदगी नहीं बचाता।
अंकित की मौत सबक बने
अंकित अब लौटकर नहीं आएगा — पर उसकी कहानी हर गांव-गली में गूंजनी चाहिए। Andhvishwas के अंधेरे को मिटाने के लिए ये जरूरी है। संभल की ये घटना हमें झकझोरती है कि आज भी झाड़-फूंक, ओझा और टोने-टोटके पर यकीन करने की कीमत हमारे मासूम बच्चों को चुकानी पड़ रही है। आइए, इस Andhvishwas को खत्म करें — यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी अंकित के लिए।
Written by khabarilal.digital Desk
 संवाददाता: रामपाल सिंह
  लोकेशन: संभल, यूपी
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