Amroha citizens in Iran-ईरान में फंसे भारतीय बच्चों को लाने की अपील

Amroha citizens in Iran:युद्ध की आग में फंसे अमरोहा के अपने, दुआओं में डूबे परिजन

Amroha citizens in Iran- अमरोहा की गलियों में इन दिनों सन्नाटा है, और दिलों में दहशत। इजरायल और ईरान के बीच छिड़ी जंग ने अमरोहा के सैकड़ों परिवारों की नींद उड़ा दी है। अमरोहा में रहने वाले कई परिवारों के बच्चे इन दिनों  सिर्फ ज़मीन से नहीं, अपनी उम्मीदों और अपनों से भी दूर हैं। इज़राइल और ईरान के बीच हालिया संघर्ष ने वो कर दिया है, जिसकी कल्पना सिर्फ फिल्मी परदे पर होती थी। मगर अब ये त्रासदी अमरोहा की गलियों में चीख बनकर गूंज रही है, जहां हर घर की दीवारें बस एक ही बात पूछ रही हैं – “हमारा बच्चा कब लौटेगा?”

 ईरान में फंसे बच्चों की कहानी हर आंख को नम कर रही है। जियारत के लिए गए तीर्थयात्री, दीनी तालीम लेने वाले छात्र, और मेडिकल कोर्स करने वाले युवा—सब ईरान में युद्ध की आग में फंस गए हैं। परिजन दिन-रात फोन पर अपनों का हाल ले रहे हैं, लेकिन कमजोर नेटवर्क और सायरनों की गूंज ने चिंता को दोगुना कर दिया है। हर खबर के साथ दिल धड़कता है, और हर दुआ में बस एक ही पुकार है—‘हमारे अपने सलामत लौट आएं।’ 

Amroha citizens in Iran: तालीम, ज्यारत और अब जंग के साए

तीन साल से ईरान में दीनी तालीम हासिल कर रहे शानदार हुसैन नक़वी के बेटे का चेहरा अब मोबाइल स्क्रीन पर कभी-कभी ही दिखता है — वो भी जब नेटवर्क मेहरबान हो जाए। अमरोहा के मोहल्ला हक्कानी, सईदन, छंगा खां और कटरा में दर्जनों परिवार ऐसे ही इंतज़ार की चादर ओढ़े बैठे हैं। किसी का बेटा मेडिकल पढ़ रहा है, कोई ज़ियारत को गया था, और अब सब जंग के बीच फंसे मुसाफिर बन गए हैं।

शानदार हुसैन बताते हैं, “हर सायरन की आवाज के साथ दिल बैठ जाता है। समाचार चैनल ही हमारा सहारा हैं।” अमरोहा के लोग मस्जिदों में दुआएं मांग रहे हैं, और भारत सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि उनके अपनों को जल्द वतन वापस लाया जाए।
परिजनों की सबसे बड़ी चुनौती मोबाइल नेटवर्क है। जैसे ही जंग की गूंज बढ़ती है, वहां इंटरनेट और कॉल सेवा बर्फ हो जाती है। 

ईरान-इज़राइल संघर्ष: जमीनी हालात और डर का साया

13 जून से शुरू हुए हमलों के बाद तेहरान, क़ुम और मशहद जैसे शहरों में अलर्ट जारी है। इज़राइल ने हाल ही में ईरान के मिलिट्री बेस पर जवाबी स्ट्राइक की, जिसके बाद हालात और तनावपूर्ण हो गए। इन परिस्थितियों में भारतीय नागरिकों के लिए वापसी की कोई सीधी राह नहीं दिख रही।

Amroha citizens in Iran: सरकार से अपील: “हमारे बच्चों को जल्द वापस लाया जाए”

अमरोहा के लोगों की मांग अब सरकार की ओर सीधी और सधी हुई है — “हमारे बच्चों को वापस लाइए।”
भारत सरकार ने फिलहाल आधिकारिक रूप से ईरान से नागरिकों को निकालने का ऐलान नहीं किया है, लेकिन स्थानीय लोगों की उम्मीदें अभी भी विदेश मंत्रालय की तरफ टिकी हैं।

“हर न्यूज चैनल ऑन है, हर कॉल वेटिंग में है, और हर दुआ सजदे में है। बस हमारा बच्चा सही-सलामत लौट आए।” — ये कहते हुए एक परिजनों की आंखें भीग जाती हैं।

युद्ध का मंजर और फंसे भारतीय: कितने खतरे में?

इजरायल के हमलों ने ईरान के तेहरान, नतांज, और इस्फहान जैसे शहरों को निशाना बनाया, जहां भारतीय छात्र और तीर्थयात्री मौजूद हैं। ईरान में करीब 10,000 भारतीय फंसे हैं, जिनमें 1,500-2,000 छात्र और 6,000 प्रवासी मजदूर शामिल हैं। तेहरान यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल साइंसेज की छात्रा मेहरीन जफर ने बताया, “हम बेसमेंट में छिपे हैं। सायरन की आवाज और कमजोर इंटरनेट ने हमें परिवार से काट दिया।” केरमानशाह में हालात और खराब हैं, जहां एक अस्पताल पर हमले और छात्रावास में दो कश्मीरी छात्रों के घायल होने की खबर ने दहशत बढ़ा दी है।
क्यूम शहर में फंसे भारतीय तीर्थयात्री भी मुश्किल में हैं। होटल किराए आसमान छू रहे हैं, और सख्त सुरक्षा ने सड़कों पर आवाजाही रोक दी। एक तीर्थयात्री ने कहा, “हम सरकार से गुहार लगाते हैं कि जंग कुछ दिन रुके, ताकि हम निकल सकें।” ये कहानी सिर्फ अमरोहा की नहीं, बल्कि पूरे भारत के उन परिवारों की है, जो अपनों की सलामती की दुआ मांग रहे हैं।

भारत सरकार की कोशिश: उम्मीद की किरण

भारत सरकार ने ईरान में फंसे नागरिकों को निकालने के लिए कमर कस ली है। विदेश मंत्रालय ने 24×7 कंट्रोल रूम बनाया है और तेहरान में भारतीय दूतावास ने आपातकालीन हेल्पलाइन नंबर (+98-9010144557, +98-9015993320) जारी किए हैं। अब तक 110 छात्रों को उर्मिया और तेहरान से आर्मेनिया निकाला गया है, जिनमें 90 कश्मीरी हैं। सरकार ने अजरबैजान, तुर्कमेनिस्तान, और आर्मेनिया के रास्ते निकासी की योजना बनाई है, क्योंकि ईरान का हवाई क्षेत्र बंद है।
युद्ध की आग में फंसे अमरोहावासियों के लिए परिजन दुआओं में जुटे हैं, और भारत सरकार की कोशिशें उम्मीद की किरण बनी हैं। इजरायल-ईरान जंग का अंत कब होगा, ये सवाल अनुत्तरित है, लेकिन अमरोहा की हर मस्जिद, हर घर में बस एक ही पुकार है—‘हमारे अपने सलामत लौटें।’
📍 अमरोहा/रिपोर्ट: जयदेव सिंह

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