Reality of Bihar schools

Reality of Bihar schools: 2 कमरे में 300 बच्चे – बिहार के स्कूल का सच देखो सुशासन बाबू!

Reality of Bihar schools: ऐसी बदहाली में स्कूल चलाकर बच्चों का भविष्य कैसे बनाएंगे नीतीश जी?

Reality of Bihar schools: राजधानी पटना के बाढ़ अनुमंडल के बेलछी प्रखंड में स्थित उत्क्रमित मध्य विद्यालय, बराह की स्थिति शिक्षा व्यवस्था की बदहाली की कहानी बयां करती है। जहां सरकार शिक्षा की गुणवत्ता और स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं के सुधार के बड़े-बड़े दावे करती है, वहीं इस स्कूल की हकीकत मौजूदा नीतीश सरकार में इन दावों की पोल खोलती है।
300 बच्चों के लिए सिर्फ दो कमरे उपलब्ध हैं, जिनमें से एक कमरा मध्याह्न भोजन (मिड-डे मील) पकाने के लिए इस्तेमाल हो रहा है। यानी, जहां बच्चों को ज्ञान की रोशनी मिलनी चाहिए, वहां चूल्हे की आग जल रही है।

खाने की जगह और खेलने का मैदान भी नहीं

Reality of Bihar schools: स्कूल में तो बच्चों के बैठने के लिए पर्याप्त जगह है और ही खाना खाने के लिए उचित व्यवस्था। बच्चे खुले आसमान के नीचे, धूप और बारिश की मार झेलते हुए पढ़ाई करने को मजबूर हैं। कभी जमीन पर, तो कभी बरामदे में बैठकर पढ़ाई होती है।

दरी, कालीन या बेंच जैसी बुनियादी सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। इतनी जगह भी नहीं कि सारे बच्चे एक साथ बैठकर खाना खा सकें, जिसके कारण उन्हें बारी-बारी से भोजन करना पड़ता है।

खेल का मैदान तो इस स्कूल के लिए एक दूर का सपना है। बच्चे सड़क किनारे या स्कूल के सामने की निजी जमीन पर खेलने को मजबूर हैं। हाल ही में हुई बारिश के बाद बच्चे गंदे पानी में खेलते देखे गए, जो सरकारी लापरवाही का जीवंत उदाहरण है।

स्कूल प्रशासन की चुप्पी, सरकारी उदासीनता

Reality of Bihar schools: जब पत्रकारों ने स्कूल के प्रधानाध्यापक से बच्चों की संख्या और शिक्षकों की उपस्थिति के बारे में जानकारी मांगी, तो उन्होंने जवाब देने से साफ इनकार कर दिया। यह स्कूल प्रशासन की जवाबदेही की कमी और मामले को दबाने की कोशिश को दर्शाता है। प्रखंड विकास पदाधिकारी जयकुंडल प्रसाद ने बताया कि स्कूल में एक नया कमरा बन रहा है, लेकिन निर्माण पूरा होने तक इसे स्कूल को सौंपा नहीं जाएगा। तब तक बच्चे बरामदे और जमीन पर ही पढ़ाई और भोजन के लिए जूझते रहेंगे।

शिक्षा का मंदिर या उपेक्षा का अड्डा?

Reality of Bihar schools: जहां किताबों की जगह धूल और कक्षा की जगह बरामदा हो, वहां बच्चों का भविष्य कैसे उज्ज्वल हो सकता है? यह स्कूल बिहार की शिक्षा व्यवस्था की दयनीय स्थिति का प्रतीक है। सरकार को कागजी योजनाओं और समीक्षाओं से बाहर निकलकर जमीनी हकीकत पर ध्यान देने की जरूरत है। शिक्षा सिर्फ नीतियों में नहीं, बल्कि नीयत में भी होनी चाहिए। सुन रहे हैं सीएम नीतीश जी?

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