Fertilizer Vendor Protest – संभल के बहजोई मुख्यालय पर शनिवार को ऐसा माहौल था जैसे किसानों के खाद-बीज वाले गुस्से ने कलक्ट्रेट में भी फसल लहरा दी हो! उधर एग्रो इनपुट डीलर्स एसोसिएशन के बैनर तले विक्रेताओं ने डीएम दफ्तर के सामने नारे ऐसे लगाए कि कलक्ट्रेट की दीवारों ने भी शायद सोच लिया होगा — “अब तो कुछ करना पड़ेगा!”
📍 Location: संभल
🗞️Reporter: रामपाल सिंह
✅ Written by khabarilal.digital Desk
बहजोई में कलक्ट्रेट पर प्रदर्शन, CM-राज्यपाल को ज्ञापन, लाइसेंस समर्पण की चेतावनी
संभल, 28 जून 2025: संभल के बहजोई मुख्यालय पर शनिवार को खाद-बीज विक्रेताओं ने ऐसा हंगामा मचाया कि कलक्ट्रेट की दीवारें भी गूंज उठीं! एग्रो इनपुट डीलर्स एसोसिएशन के बैनर तले व्यापारियों ने कृषि विभाग के ‘छापेमारी तमाशे’ के खिलाफ जमकर नारेबाजी की और मुख्यमंत्री- राज्यपाल के नाम डीएम को ज्ञापन सौंपा। उनका गुस्सा साफ था—कृषि अधिकारी ‘प्रताड़ना’ का डंडा चला रहे हैं, और अगर मांगें नहीं मानी गईं, तो सारे व्यापारी सामूहिक रूप से लाइसेंस सरेंडर कर देंगे। अब ये तो वही बात हुई कि ‘या तो हमारी सुनो, या फिर खेती को बिना खाद-बीज के भटकने दो!’
Fertilizer Vendor Protest –छापेमारी या सियासी ड्रामा?
खाद, बीज और कीटनाशक विक्रेताओं का कहना है कि कृषि विभाग की छापेमारी किसी जासूसी फिल्म से कम नहीं। दुकानों पर धमककर लाइसेंस निलंबन और ECA एक्ट के तहत मुकदमे ठोकने की धमकी दी जा रही है। व्यापारियों का आरोप है कि यह सब ‘मानसिक प्रताड़ना’ का हिस्सा है, जिससे पूरे प्रदेश में भय का माहौल है। एक व्यापारी ने तंज कसते हुए कहा, “कृषि अधिकारी साहब को लगता है कि हमारी दुकानें नहीं, बल्कि कोई खजाना मिल गया है, जो रोज लूटने आते हैं!”

व्यापारियों की मांगें भी कम ‘लहरदार’ नहीं हैं। उनका कहना है कि उर्वरक की ढुलाई में 25-30 रुपये का खर्च आता है, लेकिन सरकार सिर्फ 4-5 रुपये देती है। ऊपर से कंपनियां 30-40% ‘जबरन’ प्रोडक्ट्स थोप देती हैं, और अगर कोई उत्पाद अधोमानक निकलता है, तो जिम्मेदारी निर्माता कंपनी की होनी चाहिए, न कि दुकानदार की। लेकिन नहीं, लाइसेंस तो बेचारे व्यापारी का ही निलंबित होता है!
मजबूरी में बढ़े दाम: अधिकारियों की ‘मोटी कमाई’?
खाद-बीज विक्रेताओं ने खुलासा किया कि उन्हें मजबूरी में उर्वरक और कीटनाशक ऊंचे दामों पर बेचना पड़ता है। क्यों? क्योंकि कंपनियां यूरिया को 250-252 रुपये में बिल करती हैं, जबकि सरकार ने खुदरा मूल्य 266.50 रुपये तय किया है। ढुलाई का खर्चा, जबरन थोपे गए प्रोडक्ट्स, और ऊपर से अधिकारियों की ‘छापेमारी की चमक’—यह सब व्यापारियों को ‘मजबूरी’ में महंगे दाम वसूलने को मजबूर करता है। एक व्यापारी ने चुटकी लेते हुए कहा, “अधिकारी साहब की जेब तो भर रही है, लेकिन हमारी दुकानें खाली! क्या करें, उनकी ‘खेती’ तो हमें लूटकर ही लहलहा रही है!”
यह इशारा कहीं न कहीं कृषि अधिकारियों के भ्रष्टाचार की ओर है। व्यापारियों का कहना है कि छापेमारी के नाम पर ‘वसूली’ का खेल चल रहा है। अगर मांगें पूरी न हुईं, तो वे सामूहिक लाइसेंस समर्पण करेंगे, जिससे किसानों को खाद-बीज की किल्लत का सामना करना पड़ सकता है।
भ्रष्टाचार का पुराना राग: आंकड़े चीखते हैं
खाद-बीज व्यापार में भ्रष्टाचार और अनियमितताएं कोई नई कहानी नहीं। हाल के वर्षों में कई मामले सामने आए हैं:
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बाराबंकी (2025): खाद-बीज व्यापारियों ने छापेमारी और लाइसेंस निलंबन के खिलाफ प्रदर्शन किया, आरोप लगाया कि विभाग भय का माहौल बना रहा है।
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हिसार (2025): नकली खाद की शिकायतों पर किसानों ने 27 जून को प्रदर्शन की चेतावनी दी। व्यापारियों ने बताया कि सरकारी खाद की कमी के चलते कालाबाजारी बढ़ रही है।
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कौशाम्बी (2024): 31 दुकानों पर छापेमारी में एक दुकान का लाइसेंस निलंबित, डीएपी को 1350 रुपये की जगह 1700 रुपये में बेचने का आरोप।
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CAG रिपोर्ट (2023): देश में 20-30% ग्रामीण परियोजनाओं में गुणवत्ता मानकों का उल्लंघन, जिससे अरबों रुपये का नुकसान हुआ।
ये आंकड़े साफ बताते हैं कि कृषि विभाग की ‘छापेमारी’ का निशाना अक्सर छोटे व्यापारी बनते हैं, जबकि असली ‘खेल’ कहीं और चल रहा है।
Fertilizer Vendor Protest –‘हमें इंसाफ दो, नहीं तो लाइसेंस लो!’
एग्रो इनपुट डीलर्स एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री को ज्ञापन में साफ कहा—सरकार निर्धारित दरों पर उर्वरक उपलब्ध कराए, जबरन टैगिंग बंद करे, और अधोमानक उत्पादों की जिम्मेदारी निर्माता कंपनियों पर डाले।
Fertilizer Vendor Protest आगे की राह: हंगामा या हल?
संभल के खाद-बीज विक्रेताओं का गुस्सा जायज है। उनकी मजबूरी और अधिकारियों की ‘वसूली’ की कहानियां पुरानी हैं। लेकिन सवाल यह है—क्या सरकार उनकी मांगों पर ध्यान देगी, या फिर यह प्रदर्शन भी ‘जांच’ की फाइलों में दफन हो जाएगा?
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