"Tooti Sadak in Aligarh:
Tooti Sadak in Aligarh की ये कहानी केवल एक गांव की नहीं, बल्कि उस पूरे तंत्र की पोल खोलती है जो चुनावों में सड़क बनवाने का वादा करता है और बाद में गड्ढों की संख्या तक गिनने नहीं आता। असनेता गांव के छात्र-छात्राएं, महिलाएं और बुज़ुर्ग आज भी जान जोखिम में डालकर इस सड़क से रोज़ गुजरते हैं। पचास से ज़्यादा शिकायतों के बावजूद अफसरों की चुप्पी बताती है कि ‘विकास’ सिर्फ विज्ञापनों तक सीमित है।
अलीगढ़ की ‘सड़क’ नहीं, अफसरशाही की खुदाई चल रही है!
“यह सड़क नहीं, विकास का पोस्टमॉर्टम स्थल है। यहां हर कदम पर सरकार की नीयत फिसलती है और हर गड्ढा अफसरों की अकर्मण्यता का गवाह है।”
“गांव असनेता में सड़क टूट गई है या प्रशासन की रीढ़—अब फर्क करना मुश्किल है।”
यहां हर सुबह छात्र स्कूल नहीं, युद्ध के मैदान की ओर निकलते हैं—पीठ पर बस्ता, जेब में टिफिन और आंखों में डर। क्योंकि ये सड़क अब सड़क नहीं, कीचड़ और गड्ढों का सिलसिला बन चुकी है। बारिश हो तो झील, सूखा हो तो धूल का अंधड़।
पचास बार शिकायत, लेकिन अफसरों की आत्मा अब भी ‘डू नॉट डिस्टर्ब’ मोड पर!
ग्रामीणों ने चिल्ला-चिल्ला कर थक गए कि “सड़क बनवाओ सरकार!”
लेकिन अफसरों की हालत कुछ ऐसी है जैसे:“वो सरकार हैं साहब, आवाज़ नहीं सुनते, वोटों की गणना करते हैं!”
शिकायतें अब गांव की दीवारों पर टंगी हैं और उम्मीदें प्रधान की चौखट पर दम तोड़ चुकी हैं। PWD वालों को भेजा तो उन्होंने गड्ढों को ‘सांस्कृतिक विरासत’ बताकर छोड़ दिया।
स्कूल जाना है? तो पहले पैर में पट्टी बंधवाओ!
Tooti Sadak in Aligarhहर दिन बच्चों की यूनिफॉर्म बदलने से पहले, गांव वाले सोचते हैं – “क्यों न उन्हें मरीन कमांडो की ट्रेनिंग दिलवा दी जाए?”
पढ़ाई बाद की बात है, रास्ता पार करना ही सबसे बड़ी डिग्री है।“विकास के नारों से पेट नहीं भरता, सड़क पर खड़े गड्ढे पूछते हैं – मेरा ठेकेदार कौन है?”
नेता जी के पोस्टर में सड़क बनती है, असल में नहीं।
Tooti Sadak in Aligarhचुनावों में सड़क विकास का पहला वादा होती है। लेकिन अब तो हालत यह है कि
“जिस नेता के वादे में सड़क थी, अब उसके ट्विटर बायो में ही बची है।”
विधायक जी, मंत्री जी और ग्राम प्रधान—सब सड़क के मुद्दे पर ऐसे गायब हैं जैसे सरकारी अस्पताल से डॉक्टर। बस गाड़ी चढ़ी हो तो सड़क की याद आती है।
प्रशासन मौन, लेकिन ग्रामीणों का धैर्य अब टूट चुका है।
Tooti Sadak in Aligarhगांव वालों ने अब ठान लिया है —
“अब की बार सड़क नहीं, तो गाड़ी नहीं रोकेंगे! नेता जी का स्वागत कुछ खास तरह से करेंगे।”
अब तो बच्चे भी कहने लगे हैं –
“मम्मी स्कूल भेजो मत, सड़क में गोता लगाने का मन नहीं!”
अब सवाल यह नहीं कि Tooti Sadak कब बनेगी, सवाल ये है कि अफसरों की कुर्सी कब हिलेगी? बच्चे कीचड़ में गिरते रहें, बुज़ुर्ग गड्ढों में फंसते रहें, किसान सड़क पर ट्रैक्टर नहीं खींच पा रहा—और इधर ग्राम पंचायत और ज़िला प्रशासन केवल टेंडर की फाइलें घुमा रहा है। लगता है शासन-प्रशासन इस टूटी सड़क को “विकास की विरासत” मान चुका है, और जनता की तकलीफ को ‘आदत’ बनाने पर तुला है। अब गांव वाले भी कहने लगे हैं—“सड़क नहीं तो वोट नहीं, गड्ढे हैं तो गुस्सा भी लावा है!”
लोकेशन: अलीगढ़
संवाददाता: राहुल कुमार शर्मा
