जो बीजेपी कभी जातिगत जनगणना का विरोध करती थी। जो बीजेपी एक हैं तो सेफ हैं का नारा देती थी। जाति के बजाए धर्म की सियासत पर जोर देती थी। आखिर ऐसा क्या हो गया, उस बीजेपी ने कमंडल छोड़कर मंडल के सियासत की तैयारी शुरू कर दी है।
जातिगत जनगणना पर कैबिनेट की मुहर
मोदी कैबिनेट ने जातिगत जनगणना को हरी झंडी दे दी है। जिसके बाद अब जातिगत जनगणना का रास्ता साफ हो गया है। मोदी सरकार के इस फैसले का सभी विपक्षी दलों ने स्वागत किया है। और सभी दल इसे अपनी जीत बता रहे हैं। राहुल गांधी इसे कांग्रेस की जीत बता रहे हैं। तो आरजेडी इसे लेकर अपनी पीठ थपथपा रही है। समाजवादी पार्टी भी श्रेय लेने में पीछे नहीं है। कहने का लब्बोलुआब यही है कि, हर दल इसे अपनी जीत बता रहा है।
बीजेपी दिखा रही विपक्षियों को आइना!
बीजेपी ने भी इस मुद्दे पर हवा निकालने में देर नहीं की। बीजेपी नेता और कैबिनेट मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि,कांग्रेस और उसके सहयोगी दल केवल अपने राजनीतिक उद्देश्य के लिए जातिगत जनगणना कराना चाहते थे। जबकि बीजेपी सभी वर्गो जातियों के विकास के लिए जातिगत जनगणना कराना चाहती है।
मोदी कैबिनेट ने क्यों दी हरी झंडी?
दरअसल हाल के चुनावों खासकर लोकसभा में राहुल गांधी समेत सभी विपक्षी दलों ने जोर-शोर से जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाया था।जिसका उन्हें फायदा भी मिला था।नतीजा बीजेपी की सीटें घट गईं। तभी से विपक्ष इस मुद्दे को हर जगह उठाता चला आ रहा है।जिसके बाद बीजेपी ने भी अपनी चुनावी चाल बदलने का फैसला किया।
बीजेपी को भविष्य में होगा फायदा?
शायद बीजेपी को भी ये समझ में आ गया था कि,यदि आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव और उसके बाद होने वाले पंजाब और यूपी चुनाव में जीत हासिल करनी है।तो जातिगत जनगणना करानी होगी।साथ ही अगर लोकसभा चुनाव में जीत का परचम लहराना है, तो पिछड़े, दलितों को अपने साथ लाना ही होगा। क्योंकि इन जातियों के वोट के बगैर बंपर बहुमत हासिल करना मुश्किल होगा।
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