Bulandshahr women hospital shame
Bulandshahr Women Hospital Shame की तस्वीर तब उभर कर सामने आई जब एक गर्भवती महिला को इलाज से ठुकरा दिया गया और उसकी डिलीवरी अस्पताल के बाहर ई-रिक्शा में हो गई।
ई-रिक्शा बना लेबर रूम, डॉक्टर बनीं दर्शक!
Bulandshahr Women Hospital में मंगलवार की रात जो हुआ, उसने सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था के चेहरे से आखिरी परदा भी हटा दिया। एक गर्भवती महिला—अन्नपूर्णा, दर्द में तड़पती हुई, अस्पताल में भर्ती , लेकिन डॉक्टर ने ना जांच की, ना दिल दिखाया, सीधे बाहर का रास्ता दिखाया, कहा: “कहीं और ले जाओ, नहीं तो मेरठ रेफर कर देंगे। यहाँ नहीं होगा।”
डॉक्टर साहिबा का “मेडिकल परामर्श” यही था – मरीज को भगाओ!
परिजन रोते-गिड़गिड़ाते रहे कि “एक बार देख तो लीजिए”, लेकिन जवाब में डॉक्टर ने न सिर्फ इलाज से इनकार किया, बल्कि अभद्रता भी कर डाली। ऐसा परिजनों का आरोप है. हद तब हो गई जब परिजन उसे वापस लेकर निकले और ई-रिक्शा में बिठा ही रहे थे कि वहीं पर महिला की डिलीवरी हो गई।
Bulandshahr Women Hospital- डिलीवरी अस्पताल में नहीं, शर्म की ज़मीन पर हुई!

यह कहानी किसी फिल्म की नहीं, बुलंदशहर की हकीकत है — जहां गर्भवती की डिलीवरी अस्पताल के अंदर नहीं, ई-रिक्शा की सीट पर हुई।
जिन हाथों में बच्चा होना था, वहां सरकारी अस्पताल की बेरुख़ी ने दस्तक दी।
मातृत्व चीखता रहा, दीवारें चुप रहीं — दर्द से भरा जीवन वहीं जमीन पर जन्मा।
डॉक्टर अंदर थीं, बाहर दर्द का प्रसव चल रहा था — लेकिन संवेदना शायद छुट्टी पर थी।
क्या सरकारी अस्पताल अब प्रतीक्षालय नहीं, श्मशान के गेट बनते जा रहे हैं?
बच्चा बच गया, इसलिए सिस्टम के माथे पर पसीना नहीं आया।
कागज़ों में सब सही है, जमीन पर सिर्फ ईंटों की शर्म बाकी है।
अगर यही है सरकार की स्वास्थ्य नीति, तो रजाई ओढ़कर मतृत्व की लाश ढंकनी पड़ेगी।
Bulandshahr Women Hospital-स्वास्थ्य मंत्री से सवाल – ये ‘बेटी बचाओ’ है या ‘मरीज़ भगाओ’?
स्वास्थ्य मंत्री जी, ये है आपकी ‘माँ बनने की सुविधा’ — जहां माँ बनने से पहले अस्पताल ही छोड़ देती है!
डॉक्टर मेडिकल कॉलेज से थीं, पर मेडिकल की नहीं, नाटकशाला की डिग्री लग रही थी।
जवाब मांगने पर प्रिंसिपल मनीष जिंदल साहब का फोन भी ‘डिसचार्ज’ मिला।
क्या संवेदनशीलता की कॉलर ट्यून अब “अभी व्यस्त हैं” हो चुकी है?
सरकार बताएं, डॉक्टरों को संवेदना का कोई मेडिकल डिप्लोमा दिया जाता है या नहीं?
यह अस्पताल है या सरकारी दलालों का ठिकाना, जो प्राइवेट की तरफ धक्का दे रहे हैं?
‘बेटी बचाओ’ के पोस्टर दीवारों पर हैं, पर ज़मीनी हकीकत में बेटी वहीं रो रही है।
स्वास्थ्य मंत्री जी, क्या कभी बिना काफिले के ऐसे अस्पतालों में खुद भी चक्कर लगाएंगे?
“जांच होगी” – सिस्टम का सिर दर्द का पेन किलर

CMS साहब बोले: “जांच होगी” — जैसे कोई घिसी-पिटी स्क्रिप्ट पढ़ी जा रही हो।
हर हादसे के बाद यही लाइन मिलती है — जांच, फाइल, ठंडा मामला!
जिनके साथ जुल्म हुआ, उन्हें कार्रवाई नहीं, न्याय चाहिए।
लेकिन सरकारी सिस्टम में जांच का मतलब है – इंतज़ार करो, भूल जाओ, माफ कर दो।
क्या संवेदनहीनता की कोई फाइल बंद भी होती है कभी?
जिन्हें लेबर पेन हो रहा था, उन्हें जांच की भाषा समझ नहीं आती।
अगर सब कुछ जांच में ही सुलझना होता, तो न्यायालय नहीं, रिपोर्ट सेंटर खुले होते।
Bulandshahr Women Hospital-सरकारी अस्पताल बना प्राइवेट की मंडी!
“प्राइवेट में ले जाओ” – ये लाइन अब डॉक्टरों का नया स्थायी डायलॉग हो गया है।
ये वही डॉक्टर हैं, जो सरकारी तनख्वाह में निजी लालच का टॉनिक पिए बैठे हैं।
अस्पताल में न इलाज है, न जवाब — बस रेफर, टाल और भगाओ की तिकड़ी है।
क्या ये डॉक्टर अब मरीज नहीं, ग्राहक ढूंढने निकले हैं?
सरकारी अस्पताल अब सिर्फ बोर्ड है, इलाज का रास्ता कहीं और मुड़ जाता है।
गरीब औरतों की कोख अब व्यापार की सीढ़ी बन चुकी है।
जो दर्द लेकर आई थी, वही डॉक्टर अब दर्द की वजह बन रहे हैं।
ये हॉस्पिटल नहीं, स्वास्थ्य व्यवस्था की वेंटिलेटर पर पड़ी लाश है।
एक सवाल, जो हर नागरिक को पूछना चाहिए
सरकार बताए – क्या गरीब की डिलीवरी अस्पताल में होगी या ई-रिक्शा में ही चलती रहेगी?
क्या बच्चा जन्म लेने से पहले सिस्टम की लापरवाही में दम नहीं तोड़ देगा?
यदि अगली बार जच्चा-बच्चा ना बच पाए, तो क्या कोई डॉक्टर जेल जाएगा या सिस्टम फिर सो जाएगा?
कब तक महिला अस्पतालों को “शोक सभाओं का प्रतीक्षालय” बने रहने दिया जाएगा?
क्या ये लोकतंत्र है या लापरवाही का ड्रामा?
सरकार कहां है जब एक माँ अस्पताल की सीढ़ी पर दर्द से चिल्ला रही होती है?
क्या स्वास्थ्य मंत्री सिर्फ उद्घाटन के लिए होते हैं या जनसुनवाई के लिए भी?
अगर जवाब नहीं है, तो कम से कम शर्म रखिए – वो भी कभी ज़िंदा हुआ करती थी।
सरकारी अस्पतालों की सड़ांध: आंकड़े चिल्लाते हैं
2023: रामपुर में एक Pregnant Woman की मौत, झोलाछाप डॉक्टर की लापरवाही।
2024: बिलासपुर के सिम्स अस्पताल में लेबर वार्ड में गायब डॉक्टर, तड़पती रही गर्भवती।
2025: बांगरमऊ में सिटी हॉस्पिटल की लापरवाही से प्रसूता की मौत, लाइसेंस रद्द।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के अनुसार, उत्तर प्रदेश में मातृ मृत्यु दर (MMR) 2022-23 में 176 प्रति लाख जीवित जन्म थी। क्या यह आंकड़ा स्वास्थ्य मंत्री को नहीं झकझोरता? Bulandshahr Women’s Hospital जैसे अस्पतालों में Pregnant Woman की जान से खिलवाड़ क्यों? स्वास्थ्य व्यवस्था का यह काला चेहरा कब बदलेगा?
