CL Gupta World School ने RTE Act के तहत बच्ची को एडमिशन
RTE Act यानी शिक्षा का अधिकार कानून का एक ताकतवर उदाहरण Moradabad में देखने को मिला, जब CL Gupta World School ने नियम के बावजूद बच्ची को दाखिला देने से मना कर दिया। परिवार ने CM Yogi Adityanath के जनता दरबार में गुहार लगाई और कुछ ही मिनटों में स्कूल को नियम के आगे झुकना पड़ा। यह मामला साफ करता है कि देशभर में RTE Act को स्कूल सिर्फ कागजों में मानते हैं, जमीन पर नहीं। अब सवाल है — क्या हर गरीब को अपने बच्चे की शिक्षा के लिए मुख्यमंत्री के दरबार तक जाना पड़ेगा?
मुरादाबाद।✍️ संवाददाता: सलमान युसूफ।24 जून 2025
“मम्मी, मुझे स्कूल जाना है… सबके साथ पढ़ना है…”
ये शब्द थे उस मासूम बच्ची के, जिसे अपने हक के लिए मुख्यमंत्री दरबार तक जाना पड़ा। मामला है मुरादाबाद के प्रतिष्ठित सीएल गुप्ता वर्ल्ड स्कूल का, जहां RTE (Right To Education) के तहत चयनित बच्ची का एडमिशन दो-दो नोटिस के बावजूद टाल दिया गया। लेकिन कहते हैं ना, जिसके साथ सच्चाई होती है, उसके साथ सरकार भी खड़ी होती है — और इस बार खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उस बच्ची की आवाज बन गए।
📚 शिक्षा का अधिकार बना मज़ाक?
RTE एक्ट 2009, यानी “शिक्षा का अधिकार कानून” — भारत सरकार द्वारा लागू एक संवैधानिक कानून है, जिसके तहत 6 से 14 साल की उम्र तक के बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का हक है। निजी स्कूलों को हर साल RTE के तहत 25% सीटें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के बच्चों के लिए आरक्षित रखनी होती हैं।
लेकिन कागजों पर लागू इस कानून की जमीनी हकीकत कुछ और ही है। मुरादाबाद के सीएल गुप्ता वर्ल्ड स्कूल ने इस कानून की न सिर्फ अवहेलना की, बल्कि DM के दो नोटिसों को भी हवा में उड़ा दिया।
👊 जनता दरबार में गूंजा इंसाफ का स्वर
अपनी बच्ची के साथ न्याय की उम्मीद लेकर एक माँ जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के जनता दरबार पहुंची, तो वहां से जो आदेश निकला, उसने मुरादाबाद प्रशासन और स्कूल की नींद उड़ा दी।
सीएम ने मुरादाबाद के जिलाधिकारी अनुज कुमार सिंह को सख्त निर्देश दिए — “बच्ची का RTE के तहत तत्काल एडमिशन कराओ।”
बस फिर क्या था, आनन-फानन में स्कूल के दरवाज़े खुले और वो बच्ची, जिसे बार-बार लौटा दिया गया था, अब उसी स्कूल में दाखिल हो चुकी है।
स्कूलों की मनमानी पर सवाल
यह कोई पहला मामला नहीं है। उत्तर प्रदेश समेत देश के कई राज्यों में निजी स्कूलों द्वारा RTE नियमों की धज्जियां उड़ाना आम बात हो चुकी है।
दस्तावेज़ों में खामियां बताकर बच्चों को टालना
EWS वर्ग के बच्चों से भेदभावपूर्ण व्यवहार
एडमिशन प्रक्रिया को जटिल बनाकर गरीबों को बाहर करना
ये सब शिक्षा के बाजारीकरण की खुली तस्वीर है। सवाल ये है कि जब एक मुख्यमंत्री के आदेश पर ही कानून का पालन हो, तो आम आदमी की पहुंच में न्याय कैसे आएगा?
समझिए, RTE Act क्या है?
पूरा नाम: Right To Education Act, 2009
लक्ष्य: 6-14 साल तक के बच्चों को निशुल्क, अनिवार्य और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना
प्रावधान: प्राइवेट स्कूलों में 25% सीटें EWS वर्ग के बच्चों के लिए
लाभार्थी: आर्थिक रूप से कमजोर परिवार, अनुसूचित जाति/जनजाति, दिव्यांग बच्चे
सरकार के आदेश के बाद क्या हुआ?
सीएल गुप्ता वर्ल्ड स्कूल ने आनन-फानन में बच्ची को दाखिला दिया
प्रशासन की ओर से सख्त चेतावनी
शिक्षा विभाग ने मामले की रिपोर्ट शासन को भेजी
RTE Act-अब जरूरी है कि…
✅ RTE कानून की निगरानी के लिए हर ज़िले में कमेटी हो
✅ स्कूलों की मनमानी पर भारी जुर्माना लगे
✅ ऑनलाइन पोर्टल पर RTE दाखिलों की पारदर्शिता हो
✅ आम जनता को RTE के अधिकारों की जानकारी दी जाए
RTE Act-खबरी लाल की बात
अगर एक बच्ची को मुख्यमंत्री के दरबार में जाना पड़े, तब जाकर उसे शिक्षा का अधिकार मिले — तो ये सिर्फ एक स्कूल की नहीं, पूरे सिस्टम की हार है।
मुरादाबाद का ये मामला अब एक मिसाल बन चुका है, लेकिन क्या बाकी स्कूलों में भी कानून का डर होगा? या हर गरीब को भी मुख्यमंत्री के सामने गिड़गिड़ाना पड़ेगा?
शिक्षा अधिकार है, भीख नहीं। इसे छीनना नहीं पड़े, ये सरकार और सिस्टम की जिम्मेदारी है।
