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यह Banke Bihari Corridor Protest अब सिर्फ विरोध नहीं, वृंदावन की आत्मा बचाने की लड़ाई बन चुका है।
संवाददाता-अमित शर्मा
Banke Bihari Corridor: ठाकुर जी की भूमि पर सरकारी फावड़ा — आस्था का कत्ल लाइव चल रहा है!
वृंदावन में आज आस्था नहीं, सत्ता का प्लानिंग बोर्ड घूम रहा है। जहां भजन बजता था, अब बुलडोजर की गूंज है। ठाकुर जी का नाम लेकर वोट मांगने वालों ने अब ठाकुर जी के दरबार पर ही कॉरिडोर का ठेका लटका दिया है। यही कारण है कि आज पूरे शहर में Banke Bihari Corridor Protest का उबाल है — भक्तों की आंखों में आंसू हैं, और नेताओं की आंखों में 500 करोड़ की चमक। न श्रद्धा बची, न शरम — सिर्फ नक्शे हैं, जिसमें आस्था की कब्र पहले से खोदी जा चुकी है।
Banke Bihari Corridor Protest
वृंदावन की गलियों में आज भजन नहीं, सिसकियाँ गूंज रही हैं। वो मंदिर जहाँ कभी चीरहरण पर रास होता था, अब मशीनों की धूल में दफ्न हो रहा है। सरकार ने विकास के नाम पर आस्था की चादर खींच ली है, और भक्तों की आंखों में जो आंसू हैं, वो किसी जलस्त्रोत से कम नहीं। ठाकुर जी के आंगन में अब श्रद्धा नहीं, सर्वे की नक़्शेबाज़ी उतर आई है। ये वही लोग हैं जो चुनावों में मथुरा-वृंदावन को ‘सनातन की आत्मा’ कहते नहीं थकते, मगर अब वही आत्मा उनके प्लानिंग बोर्ड में काटी-छांटी जा रही है।
जहाँ ठाकुर जी की पूजा होती थी, वहाँ अब निर्माण की योजना है
यह कॉरिडोर नहीं, श्रद्धा के मुंह पर सरकारी थप्पड़ है। 275 परिवारों को उजाड़ने का सपना देख रही है वो सत्ता, जो रामराज्य का झूठा गीत गाती है। सेवायतों के घरों में अब घंटियों की जगह चिंता बज रही है। व्यापारी, सेवायत और श्रद्धालु — सब पूछ रहे हैं, क्या ठाकुर जी अब सरकारी ज़मीन के काग़ज़ों में दर्ज हो जाएंगे? कॉरिडोर की आड़ में सरकार ने एक ऐसी सड़क बना दी है, जो सीधे दिलों को रौंदते हुए गुजर रही है। पुनर्वास की योजना सिर्फ काग़ज़ पर है — भावनाओं का कोई ब्लू प्रिंट नहीं।
“ठाकुर जी को नहीं छोड़ेंगे, चाहे प्राण चले जाएं” – ये कोई नारा नहीं, प्रतिज्ञा है
प्रदर्शन कर रही महिलाओं की आंखों में आंसू नहीं, अंगारे हैं। एक वृद्धा ने कांपते हुए हाथों से कहा – “बिहारी जी को सरकार नहीं छू सकती, वो हमारे हैं, हमारी सांसों में बसते हैं।” ये लोग मुआवज़े की मांग नहीं कर रहे, ये विरासत की रक्षा कर रहे हैं। परंपरा को विस्थापन के दायरे में लाना, एक सभ्यता को मिटाने जैसा है। राधा-रमन की रेखाएं अब पुलिस की बेरिकेडिंग में छुपा दी गई हैं। सवाल यह नहीं कि सरकार क्या दे रही है, सवाल यह है – सरकार क्या छीन रही है?
Banke Bihari Corridor:मंदिर की दान पेटी से जमीन खरीदी जाएगी? ये कैसा विकास है?
श्रद्धालुओं की आस्थाओं से भरे दान को अब उन्हीं भक्तों के सिर पर गिराने की तैयारी है। व्यापारी पूछ रहे हैं — “क्या ठाकुर जी के चरणों में चढ़ाया पैसा, अब उन्हीं के घर उजाड़ने में खर्च होगा?” मंदिर की सीढ़ियों पर बैठे लोग अब भजन नहीं गा रहे, बल्कि प्रलाप कर रहे हैं। वो कह रहे हैं – “हमने मंदिर बनाया, अब मंदिर ही हमें मिटा रहा है!” जो मंदिर भक्तों के बलिदान से खड़ा हुआ, वो अब योजनाओं के नीचे कुचला जा रहा है। यह विकास नहीं, यह विनाश का आह्वान है।
हेमा मालिनी अब वृंदावन की नहीं, संसद की भाषा बोल रही हैं
पूर्व जिलाध्यक्ष मधु शर्मा ने ठीक कहा – “एक महिला सांसद होकर वृंदावन की महिलाओं की पीड़ा न समझना, धिक्कार है!” 17 जून को हेमा मालिनी ने कहा था, वे सीएम तक बात पहुँचाएंगी — लेकिन आज तक न जवाब मिला, न भरोसा। प्रदर्शन में बैठी राधा गोस्वामी बोलीं – “हम अपने ठाकुर जी को कहीं नहीं जाने देंगे, चाहे कुछ भी हो जाए!” यह वह तड़प है, जो सिर्फ भूमि के लिए नहीं, आत्मा के लिए लड़ी जा रही है। और अगर सांसद भी इस तड़प को न सुने, तो सवाल सिर्फ राजनीति का नहीं, इंसानियत का हो जाता है।
Banke Bihari Corridor:सरकार ने मोरपंख को खुरपी बना दिया, और रास को नींव की खुदाई
जहाँ प्रेम गली हुआ करती थी, अब नोटों के नक़्शे खींचे जा रहे हैं। एक ओर नंदगांव की परंपरा है, दूसरी ओर विकास के नाम पर काग़ज़ों की मारामारी। वृंदावन को इंटीरियर डिज़ाइनिंग प्रोजेक्ट बना दिया गया है, जैसे ठाकुर जी का आंगन कोई रिसॉर्ट हो। जो सरकारें आस्था को ‘ब्रांड’ बनाना चाहती हैं, उन्हें समझना चाहिए — ठाकुर जी न कभी बिके हैं, न बिकेंगे। इस ज़मीन पर जो टुकड़ा भी उठेगा, वो दिलों से उठेगा, और वो आवाज़ हर कोने में गूंजेगी – “बिहारी जी को मत छूना!”

 
         
         
         
        