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बांदा/संवाददाता-दीपक पांडेय: Sanskrit Education को लेकर सोशल मीडिया पर चाहे जितनी जय-जयकार कर लो, धरातल पर हाल ऐसा है कि संस्कृत पढ़ाने के नाम पर अब सिर्फ सरकारी खजाने का दोहन किया जा रहा है। बांदा जिले के नरैनी ब्लॉक के ग्राम पुंगरी में स्थित श्री महावीर संस्कृत उ.मा. विद्यालय की हालत देखकर यह तय कर पाना मुश्किल है कि यह शिक्षा का मंदिर है या पुरातत्व विभाग का अवशेष।

खास बात ये है कि इस खंडहरनुमा विद्यालय में Sanskrit Education के नाम पर सरकार वेतन दे रही है, भत्ते दे रही है, लेकिन जो नहीं दे रही—वो है शिक्षा! न छात्रों की संख्या तय है, न शिक्षकों का ठिकाना। हां, दस्तावेजों में सबकुछ इतना पारदर्शी है कि भ्रांतियों की भी आंखें चौंधिया जाएं।
Banda में Sanskrit Education के नाम पर सरकारी धन का हवन
ग्राम पुंगरी के श्री महावीर संस्कृत विद्यालय की स्थिति किसी पोस्ट-अपोकैलिप्टिक फिल्म से कम नहीं। दो-तीन कमरों में कहीं झाड़ू पड़ा है, कहीं मिट्टी का चूल्हा। भवन ऐसा कि अगर छात्र गलती से आ भी जाएं, तो वे पढ़ाई से पहले मलबे से जूझेंगे। ग्रामीणों का दावा है कि यहां तैनात शिक्षक तो सालों से दिखाई नहीं दिए, पर वेतनमान में कोई कटौती नहीं।

सरकारी दस्तावेजों में इस विद्यालय में 15 छात्र पढ़ रहे हैं। लेकिन जब कोई इन छात्रों को ढूंढने निकलता है, तो या तो गांववाले कंधे उचकाते हैं या हँसी रोक नहीं पाते। इस गुप्त शिक्षा योजना में न कक्षा है, न घंटी बजती है, और न ही पाठ्यक्रम चलता है। लेकिन फिर भी सरकारी फाइलों में सब कुछ ‘शानदार’ है।
Sanskrit Education के मंदिरों में हो रहा चूल्हे का पाठ
इस विद्यालय को देखिए तो जान जाइएगा कि शिक्षा की देवी को किस तरह सरकारी सिस्टम की चक्की में पीसा जा रहा है। ग्रामवासियों का कहना है कि यह विद्यालय पिछले 30 वर्षों से बस कागज़ों में ही फल-फूल रहा है। अधिकारियों ने आंखें ऐसे मूंद ली हैं जैसे सूर्यग्रहण हो गया हो।
Sanskrit Education के नाम पर खोले गए अन्य विद्यालयों की स्थिति भी कम नहीं। शिक्षक हैं तो छात्र नहीं, छात्र हैं तो भवन नहीं, और भवन है तो उसमें सब कुछ है—बस शिक्षा नहीं।
Sanskrit Education का ऐसा अपमान किसी विदेशी आक्रमण से नहीं, हमारे अपने सिस्टम से हो रहा है। बांदा के पुंगरी गांव में जो हो रहा है वो सिर्फ एक गांव की त्रासदी नहीं, सनातन संस्कृति की चुपचाप होती हत्या है। सरकार को अगर वास्तव में संस्कृत और सनातन धर्म की चिंता है, तो इन विद्यालयों की पड़ताल कर दोषियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करनी चाहिए। नहीं तो भविष्य में संस्कृत सिर्फ भाषणों में जीवित रह जाएगी, और संस्कृत विद्यालय – सरकारी पेंशन प्लान बनकर रह जाएंगे।

 
         
         
         
        