
Bageshwar Baba के चश्मे, जैकेट और क्रूज यात्रा पर वायरल बवाल ! बाकी धर्मों के गुरुओं से कब पूछा जाएगा सवाल?
Bageshwar Baba News
बाबा बागेश्वर उर्फ पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री (Dhirendra Krishna Shastri) इन दिनों सुर्खियों में हैं, बाबा बागेश्वर (Bageshwar Baba) अपनी ऑस्ट्रेलिया और क्रूज यात्रा को लेकर सोशल मीडिया पर तीखी आलोचना का सामना कर रहे हैं। उनके द्वारा पहने गए महंगे चश्मे और ब्रांडेड जैकेट ने भी लोगों का ध्यान खींचा है। कई लोग उनकी कथनी और करनी के बीच अंतर देख रहे हैं, लोग सवाल उठा रहे हैं कि जो संत सादगी और संन्यास का उपदेश देते हैं, वे खुद विलासिता में क्यों डूबे हैं? लेकिन क्या ये सवाल केवल बाबा बागेश्वर या सनातन धर्म के संतों के लिए ही है? क्या सादगी का ठेका केवल हिंदू संतों के पास है, या ये एक व्यापक मुद्दा है जो सभी धर्मों के धार्मिक गुरुओं से जुड़ा है? आइए, इस विषय पर गहराई से विचार करें और उन धार्मिक गुरुओं का जिक्र करें, जिनमें जाकिर नाइक और पोप शामिल हैं, एक बड़े पक्ष की मान्यता है ये सभी अपने अनुयायियों के दान से ऐशो-आराम की जिंदगी जीते हैं।
बाबा बागेश्वर की वायरल यात्रा
बाबा बागेश्वर, जो बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर के रूप में लाखों भक्तों के बीच लोकप्रिय हैं, बाबा बागेश्वर जून 2025 मतलब इन दिनों ऑस्ट्रेलिया, फिजी और न्यूजीलैंड की यात्रा पर है। इस दौरान उनकी क्रूज यात्रा और महंगे परिधानों, जैसे Gucci के चश्मे और ब्रांडेड जैकेट ने लोगों का ध्यान खींचा है। सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने तंज कसा कि 2019 में साधारण मंदिर से शुरू हुआ उनका सफर अब चार्टर्ड विमानों और लग्जरी तक पहुंच गया है। आलोचकों का कहना है कि जो संत सनातन धर्म की रक्षा और सादगी की बात करते हैं, उनकी ये विलासिता उनके उपदेशों के विपरीत है।
बाबा बागेश्वर के समर्थकों का तर्क जानिए
बाबा बागेश्वर के समर्थकों का तर्क है कि वे संन्यासी नहीं, बल्कि एक कथावाचक और धार्मिक नेता हैं। उन्होंने कभी सन्यास का दावा नहीं किया, और उनकी यात्रा का उद्देश्य विदेशों में सनातन धर्म का प्रचार करना था। वे कहते हैं कि भक्तों द्वारा दिए गए दान का उपयोग धर्म प्रचार और सामाजिक कार्यों जैसे कन्या विवाह, के लिए होता है।
बाबा बागेश्वर के समर्थकों के तर्क के बावजूद फिर भी, सवाल बना रहता है: क्या धार्मिक गुरुओं को सादगी का पालन करना चाहिए, या ये अपेक्षा केवल सनातन संतों से ही की जाती है?
क्या सादगी केवल सनातन संतों की जिम्मेदारी?
सनातन धर्म में सादगी और त्याग को संतों के लिए आदर्श माना जाता है। लेकिन ये धारणा कि केवल हिंदू संतों को ही सादगी का पालन करना चाहिए, एकतरफा लगती है। अन्य धर्मों के धार्मिक गुरु भी अपने अनुयायियों के दान से शानदार जीवन जीते हैं, लेकिन उनकी आलोचना उतनी तीखी नहीं होती है। इस बीच बाबा बागेश्वर ने अपनी आलोचना पर क्या कुछ कह दिया है वो आपको बताएं, उससे पहले कुछ अन्य धर्मों से जुड़े उपदेशकों, धार्मिक गुरुओं और धार्मिक नेताओं के बारे में जान लेते हैं जो अपनी लग्ज़री लाइफस्टाइल के लिए सुर्खियों का हिस्सा रहे हैं
1. ज़ाकिर नाइक: इस्लामिक उपदेशक और उनकी विलासिता !
ज़ाकिर नाइक, एक चर्चित इस्लामिक उपदेशक, अपनी विलासितापूर्ण जीवनशैली मतलब लग्ज़री लाइफस्टाइल के लिए भी जाने जाते हैं। मलेशिया में निर्वासन में रहते हुए, नाइक कथित तौर पर आलीशान अपार्टमेंट्स और महंगे साधनों का उपयोग करते हैं। उनके संगठन, इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन (IRF), को धार्मिक अनुयायियों और समर्थकों से भारी मात्रा में दान मिलता है, जिसके उपयोग पर सवाल उठे हैं। नाइक के महंगे सूट, लग्जरी कारें और विदेशी यात्राएं उनकी सादगी के दावों पर सवाल उठाती हैं। भारत में उनके खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग और अवैध फंडिंग के आरोप भी लगे हैं, जिनमें दान के पैसे के दुरुपयोग का जिक्र है। हालांकि, उनके समर्थक इसे “इस्लाम के प्रचार” के लिए जरूरी मानते हैं, लेकिन आलोचक इसे विलासिता का प्रतीक मानते हैं।
2. पोप और वेटिकन की शान
ईसाई धर्म के सबसे बड़े धर्मगुरु या सर्वोच्च नेता, पोप, वेटिकन सिटी में रहते हैं, जो दुनिया के सबसे धनी धार्मिक केंद्रों में से एक है। वेटिकन की संपत्ति अरबों डॉलर में आंकी जाती है, जिसमें सोने के भंडार, कला संग्रह और रियल एस्टेट शामिल हैं। पोप, जो सादगी के लिए जाने जाते हैं, फिर भी वेटिकन के आलीशान संसाधनों का उपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, पोप की विदेश यात्राएं चार्टर्ड विमानों (जिन्हें “शेफर्ड वन” कहा जाता है) से होती हैं, और उनकी सुरक्षा और आवास पर लाखों डॉलर खर्च होते हैं।
पिछले कुछ पोप, जैसे पोप बेनेडिक्ट XVI महंगे परिधानों ख़ासकर हस्तनिर्मित जूते और डिजाइनर चश्मे के लिए आलोचना झेल चुके हैं। वेटिकन को अनुयायियों से मिलने वाले दान और चर्च की आय से चलाया जाता है, लेकिन इसकी भव्यता और धन-संपदा पर सवाल उठते रहे हैं। फिर भी, पोप की विलासिता को अक्सर “संस्था की गरिमा” के रूप में देखा जाता है, न कि व्यक्तिगत ऐशो-आराम के रूप में।
3.अन्य इस्लामिक मौलाना और धार्मिक नेता
सऊदी अरब के कुछ धार्मिक नेता, जो इस्लाम के कट्टर नियमों का प्रचार करते हैं, निजी जेट, महंगे वाहन और आलीशान महलों में रहते हैं। सऊदी शाही परिवार के कुछ सदस्य, जो धार्मिक नेतृत्व भी करते हैं, अपनी अकूत संपत्ति और यूरोप में छुट्टियां मनाने के लिए चर्चित रहे हैं। पाकिस्तान के मौलाना तारिक जमील, जो सादगी का उपदेश देते हैं, उन पर भी महंगे कपड़े और लग्जरी कारों के इस्तेमाल के लिए सवाल उठे हैं।
4.ईसाई टेलीवेंजलिस्ट
अमेरिका के पादरी केनेथ कोपलैंड और जोएल ओस्टीन जैसे टेलीवेंजलिस्ट अपनी विलासिता के लिए कुख्यात हैं। कोपलैंड, जिनके पास निजी जेट और कई आलीशान हवेलियां हैं, की संपत्ति करीब 760 मिलियन डॉलर आंकी जाती है। जोएल ओस्टीन 10 मिलियन डॉलर की हवेली में रहते हैं और लाखों डॉलर की किताबें बेच चुके हैं। उनके उपदेश भौतिक समृद्धि पर केंद्रित हैं, जिसे वे “ईश्वर की कृपा” कहते हैं, लेकिन आलोचक इसे अनुयायियों के दान का दुरुपयोग मानते हैं।
5.सिख धर्म गुरु
सिख धर्म में सादगी को महत्व दिया जाता है, लेकिन कुछ आधुनिक धर्म गुरुओं पर विलासिता के आरोप लगे हैं। उदाहरण के लिए, बाबा राम रहीम, जो सिख धर्म से प्रेरित डेरा सच्चा सौदा का प्रमुख है, अपनी शानदार जीवनशैली के लिए चर्चित है, उसके पास लग्जरी कारें, डिजाइनर कपड़े और निजी हेलिकॉप्टर तक देखे गए। हालांकि बाद में उस पर आपराधिक आरोप सिद्ध हुए, लेकिन उसके उदय के समय लाखों अनुयायी उनकी विलासिता को “गुरु की महिमा” मानते थे।
6. बौद्ध धर्म के कुछ लामा
तिब्बती बौद्ध लामा सोग्याल रिनपोछे पर विलासिता और अनैतिक व्यवहार के आरोप लगे हैं। वे महंगे होटलों में रुकते थे और भक्तों के दान से ऐशो-आराम की जिंदगी जीते थे। उनके निजी जीवन पर सवाल उठे।
सादगी का दोहरा मापदंड
ये स्पष्ट है कि विलासिता का मुद्दा केवल सनातन संतों तक सीमित नहीं है। जाकिर नाइक से लेकर पोप तक, कई धार्मिक गुरु अपने अनुयायियों के दान से शानदार जीवन जीते हैं। लेकिन सवाल ये है कि आलोचना का निशाना ज्यादातर हिंदू संत क्यों बनते हैं? इसका एक कारण सनातन धर्म में सादगी और त्याग की गहरी सांस्कृतिक अपेक्षा हो सकती है। दूसरा कारण मीडिया और सोशल मीडिया का चयनात्मक रवैया है, जहां हिंदू संतों की छोटी-सी भी बात को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है, जबकि अन्य धर्मों के नेताओं की समान जीवनशैली पर कम ध्यान दिया जाता है। तीसरा सबसे बड़ा और अहम कारण ये है कि हिंदू या यूं कहें सनातन ही एक ऐसा धर्म है जहां आलोचना को भी सहर्ष स्वीकार कर लिया जाता है, बाकि अन्य धर्मों में अपेक्षाकृत किसी धर्मगुरु की छोटी सी भी आलोचना को उस विशिष्ट धर्म के खिलाफ उठाया गया कदम मान लिया जाता है, सनातन ही वो धर्म है जिसमें भगवान के एक स्वरुप को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है, तो उन्हीं भगवान के दूसरे स्वरुप को माखनचोर, छलिया, रणछोर जाने क्या-क्या नहीं कह दिया जाता. फिर भी न किसी व्यक्ति की भावनाएं आहत होती है और न ही धर्म खतरे में आता है। जो बताता है कि सनातन धर्म कितना उदारवादी है। ऐसे में किसी व्यक्ति विशेष की हरकत पर उसे सनातनी परंपराओं से जोड़ देना सरासर गलत है।
बाबा बागेश्वर का पक्ष
बाबा बागेश्वर ने अपनी आलोचना का जवाब देते हुए कहा कि उनकी यात्रा का उद्देश्य सनातन धर्म का प्रचार था, और वे किसी मुनाफे के लिए नहीं गए। उनके समर्थक तर्क देते हैं कि आधुनिक युग में धर्म प्रचार के लिए संसाधनों की जरूरत होती है, और भक्तों का दान इसका हिस्सा है। उनकी युवा छवि और सोशल मीडिया की मौजूदगी ने उन्हें एक सेलिब्रिटी बाबा बना दिया है, जिससे उनकी हर गतिविधि पर नजर रहती है।
सादगी का ठेका किसका?
धार्मिक गुरुओं की विलासिता पर सवाल उठाना जरूरी है, लेकिन ये सवाल सभी धर्मों के संतों या उन धर्मों नेताओं के लिए समान रूप से उठना चाहिए। सादगी का ठेका न तो केवल सनातन संतों का है, न ही बाबा बागेश्वर का। जाकिर नाइक की महंगी जीवनशैली हो, वेटिकन की भव्यता हो, या टेलीवेंजलिस्ट्स की लग्जरी, सभी पर समान नजर होनी चाहिए। अगर धार्मिक गुरु सादगी का उपदेश देते हैं, तो उनकी जीवनशैली उसका पालन करनी चाहिए। अनुयायियों की भी जिम्मेदारी है कि वे अपने दान के उपयोग पर नजर रखें। धर्म का असली उद्देश्य आध्यात्मिक उन्नति और समाज सेवा है, न कि भौतिक विलासिता। सवाल उठाना हर नागरिक का अधिकार है—लेकिन बिना किसी दोहरे मापदंड के।