
Vrindavan Corridor Protest: सांसद को घेरा, गोस्वामी महिलाएं बोलीं – हमे ‘कॉरिडोर’ नहीं, श्रद्धा चाहिए!
Vrindavan Corridor Protest में आया घरेलू तड़का – महिलाओं ने सांसद को सुनाई भक्ति की खरी-खरी
वृंदावन, जहां कभी मुरली बजती थी, अब वहां मेगा प्रोजेक्ट के नाम पर बुलडोज़र गूंज रहा है। और इस बुलडोज़र की आवाज़ सुनकर गोस्वामी समाज की महिलाएं सीधे पहुंच गईं सांसद हेमा मालिनी के द्वार — हां, वही हेमा मालिनी जो कभी बासुंरी वाली राधा बनी थीं, आज उन्हीं के सामने “श्रद्धा की सुरक्षा” का ज्ञापन लहराया गया।
कॉरिडोर? किस खुशी में? ताकि ठाकुर जी के दर्शन के लिए जनता लाइन में लगे और गोस्वामी समाज ‘गेट कीपर’ बन जाए? माफ कीजिए, यहां भक्ति है, बजट नहीं।

🔥 ज्ञापन नहीं, भक्ति का भड़का हुआ पटाखा था ये! Vrindavan Corridor Protest में 21वां दिन, आस्था का विस्फोट
नीलम गोस्वामी, जिनकी आंखों में आंसू कम और ज्वालामुखी ज़्यादा थे, बोलीं – “हम सेवा करते हैं, लंच ब्रेक लेकर ठेके नहीं चलाते! यह मंदिर ठाकुर जी का घर है, यहां कॉरिडोर नहीं, चरनामृत बहता है!”
महिलाएं बोले जा रही थीं – “हेमा जी, संसद में उठाइए इस मुद्दे को! श्रद्धा को कोई DPR (Detailed Project Report) नहीं चाहिए। ये आस्था है, पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप नहीं।”
हेमा मालिनी का जवाब? वही पुराना स्क्रिप्टेड डायलॉग — “मैं बात करूंगी… अधिकारियों से…”
बहनें बोलीं – “मैडम, बात तो हम भी बहुत करते हैं, लेकिन ठाकुर जी के सामने। फर्क सिर्फ इतना है कि वहां वादा नहीं, कृपा मिलती है।”
मंदिर में ‘कॉरिडोर’ चाहिए या ‘कलेक्शन’? गोस्वामी बोले – हम पुरोहित हैं, पियॉन नहीं!
Vrindavan Corridor Protest में गोस्वामी समाज की बात सिर्फ जमीन की नहीं है – ये असल में “श्रद्धा की सुपारी लेने” का विरोध है। अगर कल कॉरिडोर बना, तो परसों टिकट लगेगा, फिर VIP दर्शन होगा, और उसके बाद — ‘भक्ति ऑन सब्सक्रिप्शन।’
व्यापारी महिलाएं भी आग उगल रही थीं – “सरकार कहती है व्यवस्था होगी… तो क्या व्यवस्था का मतलब है, दुकान छीनकर दिलासा देना?”
हेमा जी! वृंदावन कोई सेट नहीं है, जहां आप ‘सीन’ शूट करें – यहां भक्ति होती है, बैकअप नहीं!
सांसद हेमा मालिनी की बात में वही बॉलीवुड वाली डिप्लोमेसी थी – “सबको खुश रखेंगे, कुछ न कुछ करेंगे…”
और पीछे से प्रशासन सोच रहा था – “सबसे अच्छा समाधान: कॉरिडोर बना दो, भक्ति का पोस्टर लगा दो, और पब्लिक को दर्शन का पासबुक पकड़ा दो!”
पर नहीं… इस बार महिलाएं ठान चुकी हैं —
“या तो सरकार अध्यादेश वापस ले, या हम दर्शन के रास्ते में बैठ जाएंगे – तब न प्रोजेक्ट चलेगा, न प्रसाद बंटेगा।”
न निष्कर्ष निकला, न अध्यादेश हिला – लेकिन ज्ञापन से आया नया मोड़!
सांसद ने आश्वासन दे दिया, ज्ञापन ले लिया, और प्रशासन ने चैन की साँस ली। महिलाओं ने कहा – “ठीक है, कुछ दिन रुक जाते हैं। लेकिन अगर जवाब न आया तो अगली बार सिर्फ ज्ञापन नहीं, भजन के साथ धरना भी होगा!”
Vrindavan Corridor Protest अब ठहरा नहीं है, ये बस भक्तिपूर्वक इंतज़ार कर रहा है – कि कहीं से कोई समझदारी की बिजली चमके, और कॉरिडोर के नाम पर आस्था की नींव न डगमगाए।
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