
Farooq Abdullah की ऐतिहासिक भावुक रेल यात्रा !
Farooq Abdullah News
कश्मीर घाटी के लिए ये एक ऐतिहासिक पल था जब नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला (Farooq Abdullah) ने हाल ही में श्रीनगर से कटरा तक वंदे भारत ट्रेन में सफर किया। यह महज एक यात्रा नहीं थी, बल्कि उस सपने की हकीकत थी, जिसकी कल्पना 130 साल पहले डोगरा महाराजाओं ने की थी। ट्रेन के भीतर फारूक अब्दुल्ला की आंखों से खुशी के आंसू बह निकले। उन्होंने कहा, “कश्मीर को आखिरकार देश के रेल नेटवर्क से जुड़ते देख मेरा दिल भर आया।”
तीर्थयात्रियों के लिए वरदान वंदे भारत ट्रेन
फारूक अब्दुल्ला को उम्मीद है कि 3 जुलाई से शुरू होने वाली अमरनाथ यात्रा में श्रद्धालु इस आधुनिक ट्रेन का लाभ उठाएंगे। अमरनाथ की गुफा तक पहुंचने के लिए ये ट्रेन यात्रा को न सिर्फ सुगम बनाएगी, बल्कि तीर्थाटन, व्यापार और पर्यटन को भी बढ़ावा देगी।
इतिहास से वर्तमान तक: एक सपने की यात्रा
वंदे भारत ट्रेन के चलने से 272 किलोमीटर लंबी उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेलवे लिंक परियोजना पूर्ण हो गई है। यह परियोजना 2002 में राष्ट्रीय परियोजना घोषित की गई थी, जिसका आखिरी खंड फरवरी 2024 में पूरा हुआ। इसमें 38 सुरंगें और 927 पुल शामिल हैं, जिनमें चेनाब नदी पर बना विश्व का सबसे ऊंचा रेलवे पुल भी है।
Farooq Abdullah: ये लोगों की सबसे बड़ी जीत है
कटरा स्टेशन पर उपमुख्यमंत्री सुरिंदर चौधरी और एनसी अध्यक्ष रतन लाल गुप्ता ने फारूक अब्दुल्ला का स्वागत किया। पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह न केवल यात्रा को सरल बनाएगा, बल्कि “दोनों क्षेत्रों के बीच प्रेम और दोस्ती को भी मजबूती देगा।” उन्होंने इस ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए इंजीनियरों और मजदूरों को विशेष बधाई दी।
डोगरा शासकों का सपना: 19वीं सदी में शुरू हुई थी कल्पना
डोगरा राजवंश के राजा हरि सिंह के पोते विक्रमादित्य सिंह ने इस परियोजना को अपने पूर्वजों की दूरदृष्टि का परिणाम बताया। उन्होंने बताया कि महाराजा प्रताप सिंह के काल में ही 1892 में पहली बार कश्मीर तक रेलवे लाइन लाने की कल्पना की गई थी। ब्रिटिश इंजीनियरों की तीन रिपोर्टों में से एक को मंजूरी मिली, लेकिन यह परियोजना 1925 में महाराजा प्रताप सिंह की मृत्यु के बाद स्थगित कर दी गई।
कई बार रुकी, फिर चली परियोजना: 1983 में रखी गई थी आधारशिला
लगभग छह दशक के बाद, 1983 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जम्मू-उधमपुर-श्रीनगर रेललाइन की आधारशिला रखी। लेकिन 13 वर्षों में मात्र 11 किलोमीटर लाइन ही बन सकी। इसके बाद 1996-97 में प्रधानमंत्री देवेगौड़ा और आईके गुजराल ने परियोजना को फिर से शुरू किया।
43,800 करोड़ की लागत से बनी ऐतिहासिक रेल लाइन
इस रेल मार्ग के निर्माण में भूगर्भीय, पर्यावरणीय और तकनीकी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जिससे परियोजना की लागत 43,800 करोड़ रुपये से अधिक पहुंच गई। लेकिन अंततः यह सपना साकार हुआ और कश्मीर को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाला यह पुल बन गया विकास, एकता और समृद्धि का प्रतीक।
रेल की पटरी पर दौड़ता विकास
वंदे भारत ट्रेन न केवल एक तकनीकी चमत्कार है, बल्कि यह उस समर्पण, संघर्ष और ऐतिहासिक यात्रा की कहानी भी है, जो दशकों से अधूरी थी। फारूक अब्दुल्ला की नम आंखें इस बात की गवाही हैं कि यह सिर्फ रेल नहीं, बल्कि भावनाओं और इतिहास की एक लंबी यात्रा है, जो अब पूरी हो चुकी है।