
Ground Zero-जब कलेक्टर साहब पैदल निकले, तब संभल की जनता ने अपनी फरियादें फाइल में नहीं, सीधे दिल में दर्ज करवा दीं
जब कलेक्टर साहब पैदल निकले, तब संभल की जनता ने अपनी फरियादें फाइल में नहीं, सीधे दिल में दर्ज करवा दीं – Ground Zero बन गया प्रशासन का नया मंत्र।
लोकेशन: संभल | रिपोर्टर: रामपाल सिंह
जब दफ्तर निकल पड़ा दफ्तर से बाहर – Ground Zero स्टाइल में!
संभल वालों, अब शिकायत दर्ज करने के लिए ना लाइन में लगना पड़ेगा, ना बाबूजी के मूड के हिसाब से फाइल खिसकेगी। क्योंकि अब संभल के DM राजेंद्र पैंसिया खुद Ground Zero पर उतर चुके हैं।
यानी अब दफ्तर की दीवारें नहीं, जनता की भीड़ ही बन चुकी है प्रशासन का नया हॉल।
हुआ यूं कि एक दिन डीएम साहब प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद अपने दफ्तर की ओर पैदल ही लौट रहे थे (हां, पैदल! मतलब गाड़ी वाला चकाचौंध नहीं, जनता वाला जमीनी स्टाइल)। तभी रास्ते में एक भीड़ दिखी – नारे नहीं, निवेदन था। शिकायत नहीं, उम्मीद थी। और फिर?
डीएम साहब वहीं खड़े हो गए, जैसे कोई साक्षात ‘चलती चौपाल’ लग गई हो।
कलेक्टर साहब ने ना कुर्सी देखी, ना पंखा – जनता की फिक्र में वही फुटपाथ बन गया Mini Collectorate।
Ground Zero सुनवाई: जहां समस्या नहीं, समाधान खड़ा मिलता है
Ground Zero अब सिर्फ युद्ध क्षेत्र का शब्द नहीं रहा, संभल में ये प्रशासनिक वसुधैव कुटुंबकम बन गया है।
डीएम पैंसिया ने वहीं खड़े-खड़े अधिकारियों को कॉल लगाया – “बोलिए जनाब, फाइल में रखूं या फील्ड में भेजूं?”
और फिर शुरू हुआ फील्ड एक्शन का लाइव टेलीकास्ट – जो मौजूद था सिर्फ जनता के लिए।
एक बुजुर्ग महिला की ज़मीन विवाद हो या एक युवक की राशन कार्ड की समस्या – सबका समाधान ऑन द स्पॉट।
और क्या कहा डीएम साहब ने?
“अब जो भी शिकायत करेगा, उसका समाधान वहीं होगा – फाइलों में नहीं, फील्ड पर। ताकि कोई भी व्यक्ति दोबारा यहां तक ना आना पड़े।”
जनता ने ताली नहीं, आंखों से आशीर्वाद दिए।
जब अफसर बन जाए ‘ग्राउंड स्टाफ’
संभल वालों, अब वो जमाना गया जब जनता बोली और प्रशासन सोया।
अब अफसर खुद कह रहे हैं –
“बैठो नहीं, चलो! Ground Zero ही हमारा मीटिंग हॉल है।”
सवाल ये नहीं कि डीएम साहब बाहर क्यों निकले,
सवाल ये है कि बाक़ी अफसर कब तक एसी रूम में Excel Sheet घुमा-घुमा के धरती की सच्चाई से बचते रहेंगे?
DM पैंसिया ने बताया कि “जो समस्या दफ्तर के भीतर आती है, उसका दर्द बाहर ज़्यादा दिखता है।”
अब ये डायलॉग नहीं, काम की स्क्रिप्ट है। और बाकी ज़िलों के अफसरों के लिए एकदम रेड-सिग्नल।
जनता का Verdict: संभल में अब ‘भरोसा’ चलता है
आज जब हर जिले में सुनवाई सिर्फ लिपिकीय लोरी बनकर रह गई है, तब संभल की ये Ground Zero सुनवाई एक उम्मीद है।
यहां अफसर चेहरा नहीं, समाधान बन चुके हैं। और जनता अब अपनी शिकायत ‘मायूस’ नहीं, ‘मजबूत’ होकर दर्ज कर रही है।
अगर देश के बाकी जिलों में भी ऐसे Ground Zero डीएम टपक जाएं, तो समझो शिकायत निवारण केंद्र नहीं, सीधा समाधान मंत्रालय खुल जाएगा।
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