
Political Propaganda Artist
Political Propaganda Artist नेहा सिंह: विरोध के नाम पर व्यूज़ और कमाई का खेल?
Political Propaganda Artist: विरोध या व्यूज़ की राजनीति?
जब भी सरकार कोई नीति लाती है, तो उससे पहले नेहा सिंह राठौर का माइक ऑन हो जाता है। हर बार वही सुर, वही तंज और वही “कब लेब का जवाब?” स्टाइल। लेकिन अब जनता पूछ रही है — ये Political Propaganda Artist बनकर सरकार पर अटैक करना देशहित है या सिर्फ व्यूज़ और कमाई का जरिया? लोकतंत्र में आलोचना जरूरी है, लेकिन जब हर बात में रोना ही रोना हो तो इरादे शक के दायरे में आ जाते हैं।
विरोध के नाम पर गानों की दुकान, मुद्दों की भट्टी में राजनीति की रोटी
नेहा के गानों में अब गंभीरता कम, वायरलिटी ज़्यादा है। जैसे ही कोई चुनाव आता है, उनका नया ‘धुआँधार’ गाना आ जाता है – जिसमें सरकार को लपेटा जाता है, लेकिन हल्की-फुल्की तथ्यों की मार। विरोध का ये स्वर लोक-कलाकार कम, स्क्रिप्टेड एजेंडा ज़्यादा लगता है। जनता के असली मुद्दे गायब, लेकिन ‘ट्रेंडिंग’ में नेहा टॉप पर रहती हैं।
Political Propaganda Artist या विपक्ष की आवाज़?
कई बार नेहा के गानों का समय और भाषा विपक्षी बयानों से इतनी मेल खाती है कि सवाल उठते हैं – क्या ये किसी रणनीति का हिस्सा है? Political Propaganda Artist के तौर पर क्या उनका इस्तेमाल एक टूल की तरह किया जा रहा है? जब सीमाओं पर जवान शहीद होते हैं, या देश किसी संकट से जूझता है – तब भी उनके सुर सरकार को ही दोषी ठहराते हैं। ये संयोग है या सुनियोजित योजना?
क्या सरकार डर रही है या चुप रहने की नीति अपना रही है?
नेहा सिंह हर बार सरकार को टारगेट करती हैं, लेकिन उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं होती। सवाल उठता है – क्या सरकार को डर है कि इस पर कार्रवाई करने से “अभिव्यक्ति की आज़ादी” वाला कार्ड खेला जाएगा? या फिर सरकार उन्हें खुद जनता के सामने एक्सपोज़ होने दे रही है? क्योंकि जब विरोध भी ट्रेंड पर आधारित हो, तो उसकी गंभीरता खुद ही खत्म हो जाती है।
देश को क्या संदेश देती हैं ऐसी ‘आर्टिस्ट’?
एक युवा महिला अगर सच्चे मुद्दों पर आवाज़ उठाती है, तो वह स्वागत योग्य है। लेकिन जब विरोध ही कंटेंट हो, तो यह देश के युवाओं को क्या सिखाता है? क्या देशभक्ति का मतलब केवल सरकार विरोध है? क्या कोई कलाकार बिना पक्षपात के बात नहीं कर सकता? नेहा सिंह जैसी आवाज़ों को खुद तय करना होगा कि वे सच्चाई के लिए लड़ रही हैं या Political Propaganda Artist बनकर रह गई हैं।
विरोध की सीमाएं और व्यूज़ की भूख – कहां है मर्यादा?
नेहा सिंह राठौर का कंटेंट अगर इतना असरदार होता, तो शायद देश में बदलाव आता। लेकिन हकीकत ये है कि अब उनके गाने एक predictable script बन चुके हैं। विरोध भी अब उनका ब्रांड है, और व्यूज़ उनका लक्ष्य। यही कारण है कि लोग अब सवाल पूछ रहे हैं – क्या विरोध भी एक नया प्रोफेशन बन गया है? और अगर हां, तो ऐसे कलाकारों को लेकर समाज को सतर्क रहना चाहिए।
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