
बांके बिहारी कॉरिडोर का विरोध
बांके बिहारी कॉरिडोर को बताया ‘राक्षस’, थालियों से गूंजा विरोध का स्वर
वृंदावन में प्रस्तावित बांके बिहारी कॉरिडोर को लेकर विरोध लगातार तेज़ होता जा रहा है। सोमवार को मंदिर के सेवायतों ने अनोखे ढंग से विरोध जताया—उन्होंने थाली बजाकर इस परियोजना को ‘कॉरिडोर रूपी राक्षस’ करार दिया। यह सांकेतिक विरोध किसी राजनीतिक आंदोलन से कम नहीं था। सेवायत देव गोस्वामी ने कहा कि जिस तरह कोरोना के समय देशवासियों ने थाली बजाकर महामारी के खिलाफ लड़ाई का संदेश दिया था, वैसे ही अब वे इस अवांछित विकास मॉडल के खिलाफ चेतावनी दे रहे हैं।

थाली बजाकर जताया गुस्सा, बोले- कॉरिडोर से नष्ट होगी परंपरा
सेवायतों का आरोप है कि बांके बिहारी कॉरिडोर के नाम पर मंदिर की पारंपरिक व्यवस्था, सेवा-पूजा पद्धति और उनकी सदियों पुरानी विरासत को नष्ट करने की कोशिश की जा रही है। सेवायत हिमांशु गोस्वामी, करण गोस्वामी, निखिल गोस्वामी, सोमनाथ गोस्वामी, अर्जुन गोस्वामी और तुषार गोस्वामी सहित सैकड़ों सेवायत प्रदर्शन में शामिल हुए।
देव गोस्वामी ने खबरीलाल.डीजिटल के संवाददाता से कहा—
“ये सिर्फ ईंट-पत्थर का कॉरिडोर नहीं, बल्कि यह हमारी आस्था, परंपरा और गोस्वामी समाज की पहचान पर हमला है।”
बांके बिहारी कॉरिडोर पर प्रशासन और सेवायतों की टकराव की स्थिति
जहां एक ओर प्रशासन लगातार बांके बिहारी कॉरिडोर को काशी मॉडल की तरह सफल विकास परियोजना बता रहा है, वहीं सेवायत समाज इसे पूरी तरह नकार रहा है। गोस्वामीजन मानते हैं कि ट्रस्ट और कॉरिडोर व्यवस्था से उनका अधिकार सीमित किया जा रहा है।
पिछली बैठकें अधिकारियों और गोस्वामीजनों के बीच बिना नतीजा खत्म हो चुकी हैं। इसके बावजूद, प्रशासन दावा कर रहा है कि किसी के अधिकार या धार्मिक व्यवस्था से छेड़छाड़ नहीं होगी।
विकास या वर्चस्व? सेवायतों की चिंता है वास्तविक
सेवायतों की आशंका है कि मंदिर के नाम पर बनने वाला ट्रस्ट धीरे-धीरे धार्मिक व्यवस्था को सरकारी नियंत्रण में ले आएगा। इसके जरिए न केवल गोस्वामी समाज को हाशिए पर डालने की कोशिश की जा रही है, बल्कि वृंदावन की असली ब्रज संस्कृति पर भी खतरा मंडरा रहा है।
उन्हें यह भी डर है कि कॉरिडोर निर्माण के नाम पर आसपास की दुकानों, मकानों और गली-गुजारों को उजाड़ा जाएगा, जिससे स्थानीयों का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाएगा।
विरोध की राजनीति या सांस्कृतिक प्रतिरोध?
सेवायतों का विरोध महज़ प्रशासनिक निर्णय के खिलाफ नहीं, बल्कि यह एक सांस्कृतिक और धार्मिक प्रतिरोध बन चुका है। बांके बिहारी मंदिर केवल ईंट-पत्थर की इमारत नहीं, बल्कि वृंदावन की आत्मा है। इस आत्मा से छेड़छाड़ को सेवायत समाज सीधा आघात मान रहा है।
उनका कहना है कि—
“जो लोग बाहर से आकर वृंदावन का नक्शा बदलना चाहते हैं, वे उसकी आत्मा को नहीं समझ सकते।”
अब आगे क्या? क्या बढ़ेगा विरोध?
प्रशासन फिलहाल संवाद का रास्ता अपनाए हुए है, लेकिन सेवायतों की एकजुटता और उनका विरोध प्रदर्शन संकेत दे रहा है कि मामला आगे और गरमाएगा। थाली बजाकर किया गया यह प्रदर्शन सिर्फ शुरुआत मानी जा रही है। गोस्वामीजन अब वृंदावनवासियों और संत समाज को साथ लेकर एक बड़ा मोर्चा बनाने की तैयारी में हैं।
थालियों की गूंज में छुपी है सांस्कृतिक चेतावनी
बांके बिहारी कॉरिडोर विकास की दिशा में एक बड़ी योजना भले हो, लेकिन जिस अंदाज़ में इसे लागू करने की कोशिश हो रही है, वह स्थानीय धार्मिक समाज के लिए चिंता का विषय बन गया है। थाली बजाकर दिया गया यह प्रतीकात्मक संदेश दरअसल एक सांस्कृतिक चेतावनी है—विकास यदि परंपरा की कीमत पर होगा, तो विरोध स्वाभाविक है।
मथुरा से खबरीलाल.डीजिटल के लिए अमित कुमार की रिपोर्ट