भारत में Sheikh Hasina, फांसी की सजा के बाद अब क्या करेंगी ?
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना (Sheikh Hasina) को बांग्लादेश के इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल (ICT-BD) द्वारा मानवता के खिलाफ अपराधों में दोषी ठहराए जाने और मौत की सजा सुनाए जाने के बाद देश की राजनीति में बड़ा भूचाल आ गया है। छात्र आंदोलन से शुरू हुआ ये विवाद अब सीधे बांग्लादेश की सत्ता और उसकी सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी—आवामी लीग—के अस्तित्व पर सवाल खड़े कर रहा है।
हसीना और उनकी पार्टी का भविष्य अब कुछ कानूनी और राजनीतिक निर्णयों पर टिका है, जिनका समय बेहद सीमित है।
Sheikh Hasina के अपील का रास्ता—लेकिन शर्तें बेहद मुश्किल
इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ अपील का विकल्प तकनीकी रूप से मौजूद है, लेकिन इसके लिए सख्त कानूनी शर्तें हैं। ICT कानून की धारा 21 के अनुसार, दोषी को फैसले के 30 दिनों के भीतर गिरफ्तार होना या अदालत में आत्मसमर्पण करना आवश्यक है। तभी सुप्रीम कोर्ट की अपीलेट डिवीजन में चुनौती संभव है।
शेख हसीना के मामले में ये अंतिम तारीख 17 दिसंबर 2025 है।
यदि वो इस तारीख तक बांग्लादेश जाकर आत्मसमर्पण नहीं करतीं, तो अपील का अधिकार स्वतः समाप्त हो जाएगा और मौत की सजा अंतिम हो जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट को अपील पर 60 दिनों के भीतर फैसला सुनाना होता है, जिसका मतलब है कि अधिकतम अंतिम तारीख फरवरी 2026 बनती है।

क्या हसीना बांग्लादेश लौटेंगी? संभावना बेहद कम
शेख हसीना ने ICT को ‘फर्जी, पक्षपातपूर्ण और राजनीतिक रूप से प्रेरित अदालत’ करार दिया है। 5 अगस्त 2024 से वो भारत में शरण लिए हुए हैं और वो अब तक स्वदेश लौटने को तैयार नहीं हुई हैं।
ऐसे में ये संभावना बेहद कम है कि वो गिरफ्तारी देकर अपील का रास्ता अपनाने का जोखिम उठाएँगी।
अगर हसीना ने आत्मसमर्पण नहीं किया, तो:
- उनकी राजनीतिक वापसी लगभग नामुमकिन हो जाएगी,
- आवामी लीग पर लगा प्रतिबंध चुनौती न मिलने के कारण स्थायी हो सकता है,
- पार्टी की मुख्य धुरी कमजोर होकर राजनीतिक नक्शे से गायब होने की कगार पर पहुँच जाएगी।
यानी आने वाले 30 दिन न केवल शेख हसीना बल्कि पूरी आवामी लीग के भविष्य का निर्धारण करेंगे।
हसीना का आरोप—‘ये अदालत असली नहीं, राजनीतिक हथियार है’
मौत की सजा सुनाए जाने के बाद 78 वर्षीय पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि ये फैसला “एक फर्जी अदालत” का है जिसे कोई अंतरराष्ट्रीय वैधता प्राप्त नहीं।
उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि:
- मुकदमा उनकी अनुपस्थिति में चलाया गया,
- उन्हें अपना वकील चुनने का मौका नहीं दिया गया,
- ट्रिब्यूनल सिर्फ आवामी लीग को निशाना बना रहा है जबकि विपक्षी दलों की हिंसा की अनदेखी की जा रही है।
हसीना का दावा है कि ये सब “बांग्लादेश की आखिरी चुनी हुई प्रधानमंत्री को खत्म करने की साजिश” है।
छात्र आंदोलन से फांसी के फैसले तक—15 महीनों की पूरी कहानी
शेख हसीना के खिलाफ ये मुकदमा पिछले 15 महीनों से देश-विदेश में चर्चा में रहा।
- 5 अगस्त 2024: छात्र आंदोलन उग्र, हसीना इस्तीफा देकर भारत पहुँचीं।
- 8 अगस्त 2024: नोबेल विजेता मोहम्मद यूनुस की अगुवाई में अंतरिम सरकार बनी।
- 14 अगस्त 2024: छात्र आंदोलन में हुई मौतों की जांच ICT-BD को सौंपी गई।
- 17 अक्टूबर 2024: हसीना समेत 46 नेताओं के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट।
- फरवरी 2025: UN रिपोर्ट में आंदोलन के दौरान 1,400 मौतों का दावा।
- 1 जून 2025: मुकदमे की औपचारिक सुनवाई शुरू।
- 3 अगस्त 2025: मुख्य सुनवाई शुरू—हसीना अनुपस्थित।
- 23 अक्टूबर 2025: सुनवाई पूरी।
- 17 नवंबर 2025: हसीना और पूर्व गृह मंत्री कमाल को मौत की सजा, पूर्व पुलिस प्रमुख अल-मामून को सरकारी गवाह बनने पर 5 साल की सजा।
पुलिस प्रमुख को मौत की सजा क्यों नहीं?
पूर्व पुलिस IGP चौधरी अब्दुल्ला अल-मामून ने अपनी भूमिका स्वीकार कर ली थी और जुलाई 2025 में सरकारी गवाह बनने की अनुमति पा ली।
इसी कारण उन्हें मौत की सजा के बजाय केवल 5 साल कैद हुई।
इस फैसले ने देश में नई बहस छेड़ दी है—क्या ये न्याय है या राजनीतिक समझौता?
Sheikh Hasina के पास दो ही रास्ते हैं
1. बांग्लादेश लौटकर आत्मसमर्पण करें — अपील का रास्ता खोलें
लेकिन इससे उनका जीवन और राजनीतिक अस्तित्व दोनों जोखिम में पड़ेंगे।
2. शरण में रहकर फैसले को नकारती रहें — लेकिन ये राजनीतिक भविष्य खत्म कर देगा
ऐसा करने पर सजा अंतिम हो जाएगी और आवामी लीग लगभग निर्वात में बदल सकती है।
शेख हसीना का भविष्य अब कानूनी नहीं, राजनीतिक निर्णय पर टिक गया है। यदि वो आत्मसमर्पण नहीं करतीं, तो संभव है कि बांग्लादेश की राजनीति एक ऐसे मोड़ पर पहुंच जाए जहां आवामी लीग जैसी विशाल पार्टी का अंत इतिहास बन जाए। आने वाले 30 दिन बांग्लादेश के लोकतंत्र, राजनीति और सत्ता संतुलन को हमेशा के लिए बदल सकते हैं।

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