 
                  Trump की Nobel लॉबिंग नाकाम, वेनेज़ुएला की मारिया माचाडो ने रचा इतिहास
Nobel Peace Prize-2025 News
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लंबे समय से खुद को “शांति का रक्षक” बताते रहे हैं। कई बार उन्होंने खुलकर कहा कि वे दुनिया में स्थिरता लाने के लिए काम कर रहे हैं और इसी कारण उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार (Nobel Peace Prize-2025 ) मिलना चाहिए। लेकिन 2025 का शांति का नोबेल जब वेनेज़ुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरीना माचाडो (Maria Corina Machado) को मिला, तो ट्रंप के सारे दावे धराशायी हो गए। आइए जानते हैं, आखिर क्यों नाकाम रही ट्रंप की नोबेल लॉबिंग और कैसे माचाडो ने ये सम्मान अपने नाम किया।
Nobel की कहानी: “मौत के व्यापारी” से मानवता के मसीहा तक
अल्फ्रेड बर्नहार्ड नोबेल, जिनके नाम पर यह पुरस्कार दिया जाता है, वही व्यक्ति हैं जिन्होंने डायनामाइट का आविष्कार किया था। विज्ञान के इस आविष्कार ने जितना निर्माण में योगदान दिया, उतना ही विनाश भी किया। जब एक अख़बार ने गलती से उनकी मृत्यु की खबर छापी और हेडलाइन दी — “The Merchant of Death is Dead” यानी “मौत का व्यापारी मर गया”, तो नोबेल भीतर से हिल गए।

उन्होंने तय किया कि मरने के बाद उनकी पहचान एक विनाशक नहीं, बल्कि मानवता के सेवक के रूप में होनी चाहिए। यही कारण था कि उन्होंने अपनी संपत्ति एक ट्रस्ट में दान कर दी, जिससे हर साल उन लोगों को सम्मानित किया जा सके जो विज्ञान, साहित्य, और शांति के लिए मानवता का भला करें।
पहला नोबेल पुरस्कार 1901 में दिया गया था। और आज, यह सम्मान दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार बन चुका है।
क्यों नॉर्वे में दिया जाता है “Peace Prize”?
हालांकि नोबेल स्वीडन के थे, लेकिन उन्होंने अपनी वसीयत में लिखा कि शांति का पुरस्कार नॉर्वे की संसद की समिति द्वारा दिया जाएगा। वजह थी — स्वीडन की सैन्यवादी नीतियों से असहमति और नॉर्वे की तटस्थ छवि।
इसलिए आज भी, बाकी सभी नोबेल पुरस्कार स्टॉकहोम (स्वीडन) में दिए जाते हैं, लेकिन शांति का नोबेल ओस्लो (नॉर्वे) में।
ट्रंप का सपना और नोबेल कमेटी की ना
2025 के नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा से पहले, ट्रंप के करीबी सूत्रों ने दावा किया था कि व्हाइट हाउस ने कई देशों से ट्रंप के नाम की सिफारिश करवाई है। ट्रंप ने यह कहते हुए खुद को योग्य बताया था कि उन्होंने इज़राइल-हमास युद्धविराम, यूक्रेन-रूस वार्ता, और एशिया में शांति प्रयासों में योगदान दिया।

उनके समर्थक मंत्रियों और रिपब्लिकन नेताओं ने भी उन्हें “modern history का सबसे बड़ा शांति निर्माता” बताया। लेकिन जब परिणाम आया, तो ट्रंप का नाम सूची में नहीं था।
नोबेल कमेटी के एक सदस्य ने कहा —
“ट्रंप के प्रयास अभी स्थायी शांति में नहीं बदले हैं। उनकी नीतियां विभाजनकारी रही हैं, न कि एकीकृत।”
इस फैसले ने दिखाया कि नोबेल कमेटी “राजनीतिक शक्ति” नहीं बल्कि “नैतिक साहस” को पुरस्कृत करती है।
कौन हैं मारिया कोरीना माचाडो?
मारिया कोरीना माचाडो वेनेज़ुएला की एक साहसी विपक्षी नेता हैं, जिन्होंने अपने देश में लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आज़ादी की लड़ाई शांतिपूर्ण तरीकों से लड़ी।
उन्होंने सरकार के दमन और सेंसरशिप के बावजूद जनता के अधिकारों की आवाज़ बुलंद की।

नोबेल कमेटी ने अपने बयान में कहा —
“मारिया माचाडो ने लोकतंत्र की रक्षा के लिए अहिंसक संघर्ष का उदाहरण पेश किया है।”
उनकी जीत सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों की जीत मानी जा रही है।
क्या नोबेल राजनीति से परे है?
ट्रंप समर्थकों ने इसे “राजनीतिक पक्षपात” बताया, लेकिन विश्लेषक कहते हैं कि नोबेल कमेटी ने इस बार और भी मजबूत संदेश दिया —
“Peace without propaganda” — यानी प्रचार नहीं, सिद्धांतों पर आधारित शांति।
नोबेल कमेटी ने दिखाया कि ये पुरस्कार किसी सरकार, दबाव या मीडिया ट्रेंड से प्रभावित नहीं होता।

नोबेल की विरासत और महत्व
नोबेल फाउंडेशन की कुल संपत्ति आज के समय में लगभग ₹2,500 करोड़ है, और 2025 में हर विजेता को 11 मिलियन स्वीडिश क्रोनर (लगभग ₹8 करोड़) दिए गए।
123 साल बाद भी ये फंड आत्मनिर्भर और पारदर्शी है — जैसे नोबेल ने चाहा था।
“पावर नहीं, प्रिंसिपल्स जीतते हैं”
डोनाल्ड ट्रंप ने राजनीति के मंच से शांति का दावा किया, लेकिन नोबेल कमेटी ने दिखाया कि शांति का रास्ता प्रचार से नहीं, सिद्धांतों से जाता है।
मारिया माचाडो की जीत इस बात की गवाही है कि असली ताकत हथियारों में नहीं, अवाज़ उठाने के साहस में होती है।
नोबेल की यही विरासत है —
जहां सत्ता हार सकती है, लेकिन सच्चाई हमेशा जीतती है।
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