UP में जातिगत प्रदर्शन पर बैन: सियासी संग्राम और सामाजिक सवाल
UP News Update
उत्तर प्रदेश (UP) की योगी आदित्यनाथ सरकार ने जाति-आधारित राजनीतिक रैलियों और सार्वजनिक जातिगत प्रदर्शनों पर प्रतिबंध लगाने का बड़ा फैसला लिया है। सरकार का कहना है कि इस तरह की गतिविधियां “सार्वजनिक व्यवस्था” और “राष्ट्रीय एकता” के लिए खतरा बन सकती हैं। आदेश के बाद से ही राज्य की सियासत गरमा गई है।
अखिलेश यादव का तीखा सवाल
समाजवादी पार्टी प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस फैसले का विरोध करते हुए गंभीर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि केवल जातिगत प्रदर्शन पर रोक लगाने से समस्या खत्म नहीं होगी। असली चुनौती है – हजारों सालों से समाज में जड़ जमाए जातिगत भेदभाव को कैसे मिटाया जाएगा?
अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए लिखा कि –
- 5000 सालों से चले आ रहे जातिगत भेदभाव को मिटाने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे?
- वेशभूषा, प्रतीक चिन्ह या परंपराओं से जुड़े भेदभाव को खत्म करने की योजना क्या है?
- लोगों से मिलने-जुलने पर नाम से पहले जाति पूछने की मानसिकता कैसे बदलेगी?
- किसी का घर धुलवाने या झूठे आरोप लगाकर बदनाम करने जैसी भेदभावपूर्ण सोच का अंत कैसे होगा?

इलाहाबाद हाई कोर्ट का आदेश बना आधार
दरअसल, यह फैसला इलाहाबाद हाई कोर्ट के 16 सितंबर 2025 के निर्देशों पर आधारित है। कोर्ट ने कहा था कि पुलिस दस्तावेजों में जाति का विवरण दर्ज करने की प्रथा बंद की जाए, सिवाय उन मामलों के जहां यह कानूनन जरूरी हो, जैसे एससी/एसटी एक्ट। कोर्ट ने सरकार को यह कदम उठाने का निर्देश देते हुए कहा था कि जातिगत पहचान को प्रशासनिक दस्तावेजों में शामिल करना समाज में विभाजन को बढ़ावा देता है।
राजनीति पर असर
यूपी सरकार का यह कदम उन राजनीतिक दलों के लिए चुनौती बन सकता है जो लंबे समय से जाति-आधारित समीकरणों पर अपनी राजनीति खड़ी करती आई हैं। समाजवादी पार्टी, बसपा, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, निषाद पार्टी और अपना दल जैसी पार्टियां अक्सर जातिगत रैलियां आयोजित करती रही हैं। ऐसे में यह प्रतिबंध उनके राजनीतिक कार्यक्रमों को सीधा प्रभावित करेगा।
UP सरकार का बड़ा दावा
यूपी सरकार का दावा है कि यह फैसला सामाजिक सद्भाव और राष्ट्रीय एकता की दिशा में उठाया गया कदम है। वहीं विपक्ष का कहना है कि जातिगत भेदभाव सिर्फ प्रतिबंधों से खत्म नहीं होगा, इसके लिए समाज में गहरी जड़ें जमा चुकी सोच को बदलना होगा।
यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में यह आदेश केवल कानून तक सीमित रहता है या फिर समाज में जातिगत असमानता को मिटाने की दिशा में कोई ठोस बदलाव लाने का जरिया बनता है।
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