3 दिन में ही Nepal में Gen-Z ने PM सुशीला कार्की के खिलाफ खोला मोर्चा
Nepal Update
नेपाल (Nepal) की राजनीति में हालात एक बार फिर से पलट गए हैं। महज तीन दिन पहले प्रधानमंत्री बनीं सुशीला कार्की अब उन्हीं युवाओं के निशाने पर आ गई हैं, जिन्होंने उनके नाम की पैरवी राष्ट्रपति के पास की थी। सोमवार को कार्की के सरकारी आवास के बाहर जेनरेशन-जेड (Gen-Z) आंदोलन से जुड़े लोगों ने जोरदार प्रदर्शन किया।
Nepal में क्यों भड़की जेनरेशन-जेड?
प्रदर्शन का नेतृत्व ‘हम नेपाली’ एनजीओ के सुदन गुरुंग कर रहे थे। उनके साथ वे लोग भी थे जिनके परिजन आंदोलन के दौरान पुलिस की गोलीबारी में मारे गए थे। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि कार्की प्रधानमंत्री बनते ही अपने वादों से मुकर गई हैं और कैबिनेट विस्तार में उन चेहरों को शामिल कर रही हैं जिनका आंदोलन से कोई लेना-देना नहीं रहा।
नेपाली अखबार रतोपति के अनुसार, प्रदर्शनकारियों ने “सुशीला कार्की मुर्दाबाद” के नारे लगाए। उनका कहना है कि कार्की मनमाने फैसले ले रही हैं और आंदोलन की मांगों की अनदेखी कर रही हैं।
अंतरिम कैबिनेट में विवाद
कार्की ने सोमवार (15 सितंबर) को अपनी अंतरिम कैबिनेट में तीन मंत्रियों की नियुक्ति की:
- कुलमान घिसिंग – उर्जा और भौतिक विभाग
- ओम प्रकाश आर्यल – गृह और कानून विभाग
- रामेश्वर खनाल – वित्त विभाग
इस पर सवाल उठाते हुए सुदन गुरुंग ने कहा कि ओम प्रकाश आर्यल कभी आंदोलन का हिस्सा नहीं रहे। उन्हें बालेंद्र साह की सिफारिश पर गृह मंत्री बनाया गया है, जबकि आर्यल साह के कानूनी सलाहकार भी रह चुके हैं। इससे आने वाले चुनाव में मिलीभगत की आशंका जताई जा रही है।

नेपाल में राजनीतिक उठापटक
गौरतलब है कि इससे पहले केपी शर्मा ओली ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। उनके इस्तीफे के बाद राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने संसद भंग कर दी और जेनरेशन-जेड की सिफारिश पर सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया।
कार्की नेपाल की पूर्व चीफ जस्टिस रह चुकी हैं और उन्हें मुख्य रूप से निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी दी गई है। राष्ट्रपति पौडेल ने घोषणा की है कि अगले छह महीने में आम चुनाव कराए जाएंगे। इसके बाद नवनिर्वाचित नेता को कार्की प्रधानमंत्री पद सौंप देंगी।
नेपाल की संसदीय व्यवस्था
नेपाल में प्रधानमंत्री की नियुक्ति प्रतिनिधि सभा के जरिए होती है। इसमें कुल 275 सीटें हैं और सरकार बनाने के लिए 138 सीटों का बहुमत जरूरी होता है।
तीन दिन में ही हालात बदलने से यह साफ है कि नेपाल की राजनीति इस वक्त अस्थिरता के दौर से गुजर रही है। सवाल यह है कि क्या सुशीला कार्की आंदोलनकारियों का भरोसा वापस जीत पाएंगी या फिर जेनरेशन-जेड का यह विरोध उनकी अंतरिम सरकार के लिए बड़ा संकट साबित होगा?
