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Journalist Beaten in Firozabad: लोकतंत्र में स्याही की जगह लाठी
Journalist Beaten in Firozabad Update
फिरोजाबाद का फरिहा इलाका शनिवार की रात लोकतंत्र की नई इबारत लिखता दिखा। फर्क बस इतना था कि इस इबारत में कलम नहीं, लात-घूसे और गाली-गलौज थे। पत्रकार मोनू जैन अरबिंद जब अपने घर लौट रहे थे, तभी अचानक भाजपा मंडल अध्यक्ष देश दीपक चौहान और सभासद अंकित जैन सामने आ गए। नेताओं का काम जनता की सेवा होता है, लेकिन यहां सेवा का मतलब था– पत्रकार की धुलाई। ऐसा हम नहीं कह रहे, ऐसा आरोप है मोनू जैन का।
Journalist Beaten in Firozabad: कपड़े फटे, वीडियो बना सबूत
आरोप है कि, गुस्से में चूर नेताओं ने पहले तो पत्रकार को जमकर गालियां दीं, और जब उन्होंने विरोध किया तो दोनों ने मिलकर उन पर हमला कर दिया। सड़क पर कपड़े फाड़े गए, इज्जत उछाली गई और लोकतंत्र की गरिमा का चीरहरण किया गया। यही नहीं, पीड़ित पत्रकार के पास वीडियो फुटेज भी मौजूद है। पत्रकार ने इसे पुलिस को सौंपने की बात कही है। सवाल यह है कि वीडियो वायरल हो चुका है, लेकिन अब तक कार्रवाई क्यों नहीं?
Journalist Beaten in Firozabad: प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला
यह हमला किसी एक पत्रकार पर नहीं, बल्कि प्रेस की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है। लोकतंत्र की चौथी ताकत को दबंगई से दबाने की कोशिश की गई। पत्रकार समुदाय ने इस घटना को लेकर जमकर विरोध जताया है। उनका कहना है कि अगर आज मोनू जैन अरबिंद पर हमला हुआ है, तो कल किसी और पत्रकार की बारी होगी। फिरोजाबाद की जनता भी पूछ रही है– “क्या अब पत्रकार कलम से नहीं, सिर्फ हेलमेट और बॉडीगार्ड से काम करेंगे?”
Journalist Beaten in Firozabad: पुलिस की भूमिका पर सवाल
पत्रकार ने थाना फरिहा पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है। लेकिन अब तक न गिरफ्तारी, न कार्रवाई। पुलिस की चुप्पी ने इस मामले को और भी गरम कर दिया है। पत्रकारों का आरोप है कि सत्ता के करीबी होने की वजह से पुलिस कार्रवाई से बच रही है। सवाल उठता है– “जब पत्रकार पर हमले का वीडियो सबूत मौजूद है, तब भी पुलिस को चश्मदीद गवाह चाहिए क्या?”
Journalist Beaten in Firozabad: पत्रकारों का अल्टीमेटम
सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होने के बाद पत्रकार समुदाय आक्रोशित हो उठा है। उन्होंने साफ कहा है कि अगर रविवार तक आरोपियों पर कार्रवाई नहीं हुई, तो वे थाने का घेराव करेंगे। एसपी सौरव दीक्षित और एसपी ग्रामीण त्रिगुण विशेन से तत्काल कार्रवाई की मांग की गई है। पत्रकारों ने चेतावनी दी है कि अगर पुलिस चुप रही तो यह आंदोलन फिरोजाबाद से निकलकर पूरे उत्तर प्रदेश में फैल सकता है।
Journalist Beaten in Firozabad: लोकतंत्र का भविष्य कहाँ?
फिरोजाबाद की घटना यह साबित करती है कि सत्ता के नशे में चूर नेता लोकतंत्र की रीढ़ पर हमला करने से नहीं चूकते। पत्रकार, जो जनता और सरकार के बीच सेतु हैं, अगर उन्हीं पर हमले होने लगे, तो लोकतंत्र किस पर टिकेगा? आज मोनू जैन अरबिंद के कपड़े फटे, कल शायद लोकतंत्र की पूरी पोशाक फट जाएगी।

 
         
         
         
        