 
                  Fatehpur News : मकबरा विवाद ने प्रशासन की चिंता बढ़ाई, यूपी की सियासत हाई
Fatehpur News: उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में एक 400 साल पुराने मकबरे को लेकर विवाद ने तूल पकड़ लिया है. ये मकबरा, जिसे मकबरा-ए-संगी के नाम से जाना जाता है, अब हिंदू संगठनों के दावे के केंद्र में है, जो इसे प्राचीन मंदिर बताकर पूजा-अर्चना और सौंदर्यकरण की मांग कर रहे हैं. इस विवाद ने न केवल स्थानीय प्रशासन, बल्कि पूरे राज्य की पुलिस और राजनीति को हिलाकर रख दिया है.
विवाद का जड़: मकबरा या मंदिर?
फतेहपुर के आबूनगर के रेडइया इलाके में स्थित मकबरा-ए-संगी को इतिहासकार औरंगजेब के फौजदार अब्दुल समद और उनके बेटे अबु मोहम्मद की कब्र से जोड़ते हैं. ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार, 1699 में अब्दुल समद की मृत्यु के बाद उनके बेटे ने 1710 में इस पत्थर से बने मकबरे का निर्माण करवाया था. हालांकि, हिंदू पक्ष का दावा है कि इस स्थान पर पहले भगवान शंकर और श्रीकृष्ण का मंदिर था, जिसे तोड़कर मकबरा बनाया गया. उनका कहना है कि मकबरे की संरचना में कमल, त्रिशूल जैसे हिंदू धार्मिक चिह्न मौजूद हैं, साथ ही परिक्रमा मार्ग और धार्मिक कुआं भी है, जो मस्जिद या मकबरे में नहीं पाए जाते.
विवाद की शुरुआत और हिंसा
11 अगस्त 2025 को हिंदूवादी संगठनों ने मकबरे को मंदिर बताकर वहां पूजा-अर्चना की और तोड़फोड़ की कोशिश की. इस घटना के बाद मुस्लिम समुदाय की ओर से पत्थरबाजी हुई, जिससे तनाव बढ़ गया. पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए भारी बल तैनात किया. मकबरे की सुरक्षा के लिए तीन स्तर की बैरिकेडिंग की गई, गलियां बंद कर दी गईं, और ड्रोन व सीसीटीवी से निगरानी शुरू की गई. बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर, कौशांबी और प्रतापगढ़ से अतिरिक्त पुलिस टीमें बुलाई गईं.

पुलिस ने इस मामले में 10 लोगों के खिलाफ नामजद और 150 अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है. नामजद आरोपियों में बजरंग दल के जिला संयोजक, समाजवादी पार्टी और बीजेपी के कुछ स्थानीय नेता शामिल हैं. हालांकि, अभी तक किसी भी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हो सकी है, जिसके लिए पांच पुलिस टीमें गठित की गई हैं.

जमीन का विवाद
इस विवाद की जड़ में जमीन का स्वामित्व भी है. 1927-28 में अंग्रेजों ने फतेहपुर की 28 बीघा जमीन को दो परिवारों, गिरधारी लाल रस्तोगी और मानसिंह परिवार, के बीच बांटा था. 1970 में मानसिंह परिवार ने अपनी हिस्से की जमीन रामनरेश सिंह को बेच दी, जिन्होंने इसे प्लॉट में बांटकर बेच दिया. 2007 में मुस्लिम पक्ष ने इस जमीन पर दावा किया, और 2012 में एसडीएम कोर्ट ने इसे उनके नाम कर दिया. हिंदू पक्ष का कहना है कि येस्वामित्व गलत तरीके से हस्तांतरित किया गया. वर्तमान में येजमीन राष्ट्रीय संपत्ति घोषित है, लेकिन विवाद खत्म नहीं हुआ.
सियासी तूल और आरोप-प्रत्यारोप
इस मुद्दे ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है. समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने एक वीडियो साझा कर दावा किया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने मंत्री को विधानसभा में आरोपियों के नाम पढ़ने से रोका. सपा का आरोप है कि हिंसा करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही, जबकि पुलिस का दावा है कि जांच चल रही है. इस बीच, जन्माष्टमी तक मकबरे के आसपास कड़ी सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने का फैसला लिया गया है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
इतिहासकारों का कहना है कि मकबरा-ए-संगी का निर्माण मुगल काल में हुआ था, और इसके ऐतिहासिक महत्व को नकारा नहीं जा सकता. दूसरी ओर, हिंदू पक्ष के दावे पुरातात्विक सर्वेक्षण की मांग कर रहे हैं, ताकि येसाबित हो सके कि क्या येस्थान पहले मंदिर था. येविवाद उत्तर प्रदेश में हाल के वर्षों में मंदिर-मस्जिद और मकबरा-मंदिर जैसे कई अन्य विवादों की कड़ी में शामिल हो गया है.
अब क्या होगा?
फतेहपुर का ये विवाद न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी संवेदनशील है. प्रशासन की कोशिश है कि स्थिति को और बिगड़ने से रोका जाए. इस बीच, स्थानीय लोग शांति और सौहार्द की अपील कर रहे हैं, ताकि इस ऐतिहासिक शहर की शांति भंग न हो.

 
         
         
        